बाबा नागार्जुन के
जन्म शताब्दी वर्ष
पर उनकी एक कविता
अग्निबीज
अग्निबीज
तुमने बोए थे
रमे जूझते,
युग के बहु आयामी
सपनों में, प्रिय
खोए थे !
अग्निबीज
तुमने बोए थे
तब के वे साथी
क्या से क्या हो गए
कर दिया क्या से क्या तो,
देख–देख
प्रतिरूपी छवियाँ
पहले खीझे
फिर रोए थे
अग्निबीज
तुमने बोए थे
ऋषि की दृष्टि
मिली थी सचमुच
भारतीय आत्मा थे तुम तो
लाभ–लोभ की हीन भावना
पास न फटकी
अपनों की यह ओछी नीयत
प्रतिपल ही
काँटों–सी खटकी
स्वेच्छावश तुम
शरशैया पर लेट गए थे
लेकिन उन पतले होठों पर
मुस्कानों की आभा भी तो
कभी–कभी खेला करती थी !
यही फूल की अभिलाषा थी
निश्चय¸ तुम तो
इस 'जन–युग' के
बोधिसत्व थे;
पारमिता में त्याग तत्व थे

बाबा नागार्जुन की शत शत नमन |
ReplyDeleteबोये अग्निबीज आज कौसानी में ठंडी हवा खा रहे हैं ।
ReplyDeletebaabaa naagaarjun ki rachna padhavaane ke liye bahut-2 dhanyavaad.
ReplyDeletebaba ko yaad karke...unki yaad dilaa ke badaa punyy paayaa aapne...hamaree badhaaiyaan!
ReplyDeleteबाबा नागार्जुन को नमन!
ReplyDeleteबाबा नागार्जुन की कविता पढ़ाने के लिये आभार
ReplyDeleteब्लॉगिंग में ५ वर्ष पूरे अब आगे… कुछ यादें…कुछ बातें... विवेक रस्तोगी