Thursday, July 8, 2010

सब कुछ अचानक !


अचानक
( ओरहान वेली की कविता )

सब कुछ होता है अचानक
अचानक उतरता है धरती पर उजाला
अचानक उभर आता है आसमान
अचानक मिट्टी के भीतर से
उग आता है पानी का एक सोता।

अचानक दिखाई दे जाती है कोई बेल
फूट आती हैं कलियाँ अचानक
अचानक प्रकट हो जाते हैं फल।

अचानक !
अचानक !
सब कुछ अचानक !

अचानक लड़कियाँ ढेर सारी 
लड़के अचानक बहुतेरे
- सड़कें
- बंजर
- बिल्लियाँ
- लोगबाग.....

और अचानक
- प्रेम
अचानक
- खुशी
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* तुर्की कवि ओरहान वेली (१९१४ - १९५०) की कुछ और कवितायें और परिचय जल्द ही।
* चित्र : वेली की मूर्ति ( इस्तांबुल) / साभार : गूगल सर्च
* अनुवादक : सिद्धेश्वर सिंह

7 comments:

  1. सच में..सभी कुछ अचानक ही हो जाता है.

    सुन्दर कविता पढ़वाने का आभार.

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  2. प्रक्रुति अपना काम ऐसे ही करती है। अचानक।

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  3. अचानक विचार, संचार, विस्तार ।

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  4. anuvaad padhkar achchha lagaa.....

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