Sunday, August 8, 2010

सांसों की माला पे सिमरूं मैं पी का नाम


बाबा नुसरत फ़तेह अली ख़ान की ये बन्दिश पुरानी है. मैं एक बार पोस्ट भी कर चुका हूं मगर दोबारा लगाने में क्या हरज़ है!

तकरीबन आधे घन्टे लम्बी इस रचना को पूरा सुनिये फ़ुरसत में. मौज आएगी.



डाउनलोड यहां से कीजिये:

http://www.divshare.com/download/12217845-a3d

5 comments:

  1. javaab nahi aapka Comrade Ashok. Maza aa gaya.
    Sanjay Joshi

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  2. ऐसी लागी लगन...मीरा हो गयी मगन /
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    (बात की बात.......)
    यहा तो उल्टा हो गया भाई साहब
    पेहले तो हो गये मगन....
    अब लग गयी है लगन/
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    और हो तो और सुना दो भैया /
    -----------------------------

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  3. abhar, ye sunte sunte mere shehr mein barish ho gayee

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  4. shukriya is khoobsurat gaane ke liye :), behatreen bol aur awaaz !!

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