Wednesday, October 27, 2010

उठो लाल अब आँखें खोलो

उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लायी हूँ, मुँह धो लो

बीती रात कमल-दल फूले
उनके ऊपर भँवरे झूले

चिड़िया चहक उठीं पेड़ों पर
बहने लगी हवा अति सुन्दर

नभ में न्यारी लाली छाई
धरती ने प्यारी छवि पाई

भोर हुई सूरज उग आया
जल में पड़ी सुनहरी छाया

ऐसा सुन्दर समय ना खोओ
मेरे प्यारे अब मत सोओ

12 comments:

  1. सुन्दर कविता। हर घर मे सुबह ऐसे ही होती है। बधाई।

    ReplyDelete
  2. meri pathya pustak ke adhyaay ek ki kavita hai bhai ye...!!!kavi kaun the yaad nahin...par adbhut...!!!seedhaa bachpan me pahunchaa diyaa...!!!!

    ReplyDelete
  3. कक्षा एक में पढ़ी ये कविता मुझे आज भी मुंहजबानी याद है।

    ReplyDelete
  4. बचपन में पढ़ी कविताओं में एक, बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  5. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

    ReplyDelete
  6. जागरण का भाव लिये, सुंदर कविता!!

    ReplyDelete
  7. बचपन में दीदी की पाठ्यपुस्तक में पढी थी...बहुत पसंद है..याद दिलाने का शुक्रिया

    ReplyDelete
  8. वाह, आँखें खुली तो बचपन सामने पाया !
    दिल छूती ये कवितायें .. :-)

    ReplyDelete
  9. बचपन में पाठ्यपुस्तक में पढी थी...बहुत पसंद है..याद दिलाने का शुक्रिया

    ReplyDelete
  10. Aapne fir se bachpan ki yaado ko taja kar diya , uske liye bahut bahut sadhuwaad.....

    ReplyDelete
  11. आज भी मुंह ज़ुबानी याद है यह कविता। हमारा बचपन याद आ जाता है।

    ReplyDelete