यह पोस्ट एक्सक्लूसिवली हमारे एक बहुमूल्य और सुधी पाठक जनाब एबीसीडी (असल नाम से तार्रुफ़ नहीं है) की डिमांड को नज्र है. सही है पिछले बरस मैंने बसंत के समय बाबा नज़ीर अकबराबादी की बसंत से सम्बंधित एकाधिक रचनाएँ आपको पढवाई थीं पर इस बरस कुछ और ही तरह के हालात पैदा होने की वजह से ऐसा कुछ न कर सका. उम्मीद करता हूँ मार्च के महीने से मैं यहाँ अपने इस अड्डे पर ज्यादा सक्रिय हो सकूंगा.
फ़िलहाल नज़ीर
आने को आज धूम इधर है बसंत की
कुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.
लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर
उसकी कमर नहीं वह कमर है बसंत की.
जोड़ा बसंती तुमको सुहाता नहीं ज़रा
मेरी नज़र में है वह नज़र है बसंत की.
आता है यार तेरा वह हो के बसंत रू
तुझ को भी कुछ "नज़ीर" ख़बर है बसंत की.

आने को अज धूम इधर है बसंत की
ReplyDeleteकुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की
sunder abhivaykti
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.
ReplyDeletepls explain this Ashok bhai. couldn't get it.
वाह, बसंत बिखेर दिया हर सिम्त .. बहुत खूबसूरत !
ReplyDeleteवाह क्या बसन्ती गजल है। इसे पोस्ट करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteअशोक भाई,
ReplyDelete’शुक्रिया ’ शब्द छोटा है...
आप सब लोग अन्जाने ही उत्ने अज़ीज़ हो चले है...जैसे की..नज़ीर/
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आया बसंत, आया बसंत...
ReplyDeleteI'm back in Almora after being away for over a month and shall now keep in touch with your blog as usual.
ReplyDeleteNice poem. I've posted a song on my blog which I'm sure you'll like.