हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगेवो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी
हम देखेंगे
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
उट्ठेगा अनल - हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
| Iqbal Bano - Hum Dekhen Ge .mp3 | ||
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बहुत अच्छा देखा, कर्मप्रिय।
ReplyDeleteसब ताज उछाले जाएंगे
ReplyDeleteसब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
बहुत अच्छी रचना...
सूनी भी है ,पढी भी है !
ReplyDeleteएक अज़ीम शायर का कलाम
जब भी सुनों ,जब भी पढो - नया ही लगता है !
फैज़ साहब और इक़बाल बानो.. वाकई क्या बेजोड़ जोड़ी है. गर आप रोज़ सुनवाएँगे तो हम रोज़ सुनेंगे. मैं भी अपने दोस्तों के साथ फैज़ गाने की कोशिश करता हूँ. "दरबार-ए-वतन"
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