बाबा नज़ीर अकबराबादी की यह रचना पिछले साल भी कबाड़खाने में लगी थी. इस दफ़ा यह मित्र आशुतोष बरनवाल के आग्रह पर पुनः. स्वर छाया गांगुली का है
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों
ख़ुम शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों
नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
जब फागुन रंग झमकते हों
मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अँगिया पर तक के मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
ये गाना तो बार बार लगना चाहिए .... हर बार लगना चाहिए ........
ReplyDeleteआप जितनी बार सुनायेंगे ..... हम सुनते रहेंगे !
होली मुबारक !!
ये गाना तो बार बार लगना चाहिए .... हर बार लगना चाहिए ........
ReplyDeleteआप जितनी बार सुनायेंगे ..... हम सुनते रहेंगे !
होली मुबारक !!
बहुत प्यारी आवाज़ मे सुखद गायन
ReplyDeleteलेकिन.......
अरे यारो....ऐसा सितम मत करो...
ज़रा देखो तो सही.....
शीशे के जाम छलक रहे है..
मेह्बूब नशे मे छ्क रहे है..
तब्ले खड़क रहे है..
घुँघरू छनक रहे है..
मुह लाल है
आन्खे गुलाबी ..
सीनो से रन्ग ढलक रहे है
इसे तो यार...
जरा जम के गाए
,दबा के,बजा के,लपक्के..
जैसे की ये......
http://www.youtube.com/watch?v=CZExSYYJboE
सुनकर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteहोली के अवसर पर शानदार पोस्ट लगाईं ,
ReplyDeleteशुक्रिया ........
दिव्य!!
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