Thursday, March 31, 2011

ये तो इस क़ौम की तमीज़ रही

संजय चतुर्वेदी की एक और कविता पेश है -


गरबीले गरीबपरवरों को एक पर्ची

आपके जिस्म पर कमीज़ रही
ये तो इस क़ौम की तमीज़ रही

साकिन-ए-हिन्द जो रिआया है
मोहतरम आपकी कनीज़ रही

ये ज़िनां को मुआफ़ कर देगी
इसमें कमबख़्त यही चीज़ रही ।

3 comments:

  1. काबू के नही दीख रये बाउजी /
    ---------------------------------
    पीछ्ली कविताओ मे लगा की
    वाकई देश छोड के चले गये होन्गे बाउजी ,
    जैसा की आप्ने बताया-नेपाल/
    ----------------------------------

    ReplyDelete