Wednesday, June 29, 2011

हँस रही थी मध्यकाल से वह सरस्वती


पाँवटा साहब (हिमाचल) के मित्र कवि प्रदीप सैनी ने पिछले दिनो मुझे यह कविता मेल की थी . आज अचानक याद आया कि गत वर्ष दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय मे सरस्वती की 11वीं सदी की बनी हुई संगमरमर की खण्डित लेकिन खूबसूरत मूर्ति देखी थी. और इस की कुछ तस्वीरें भी खींच लाया था. उस समय ये तस्वीरें मैं किसी ऐतिहासिक साक्ष्य के निमित्त सेव कर रहा था .
लेकिन हुसैन प्रकरण के सन्दर्भ मे ये फोटो बहुत प्रासंगिक और प्रतीकात्मक लग रहे हैं.







हुसैन की सरस्वती

बन्दर
पढ़ा रहे हैं पाठ

वे हमें अपनी तरह
सभ्य बनाने पर उतारू हैं
इस वक़्त वे मचान के ठीक ऊपर हैं

पर बन्दर क्या जानें
मचान में नहीं होता
टहनियों जैसा लचीलापन
कि मोड़ लें जिधर चाहें

वे गिरेंगे मचान से
उछलकूद करते करते
मुँह के बल
और बहुत दिनों के बाद हँसेगी
हुसैन की सरस्वती .

4 comments:

  1. पता नहीं कौन पकड़े है सभ्यता का सही छोर।

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  2. पर बन्दर क्या जानें
    मचान में नहीं होता
    टहनियों जैसा लचीलापन
    कि मोड़ लें जिधर चाहें ....

    सामयिक और सटीक रचना

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  3. uski akeeren
    saaf kah rahi theen
    ki wo bandaron dwaara
    noche gae vastron ki
    daastaan kah raha tha
    aur jaahilon dwaara maare patharon se
    lahu-luhaan devi ke haal bata raha tha
    magar jaisa ki hota hai
    bandar ek-doosre ki nakal karke sangthit ho gaye
    aur musavvir ko apni asli 'seemaaon' se khaded kar hi maane

    pata nahin
    asal me kaun khadeda gaya ;
    jahaan ke tahaa rah jaaa :
    murdon ke gaanv me
    dhans jaana!

    WAH RI, CHHINAAL,DESH-BHAKTI !

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  4. सच , बड़ी अश्लील देश भक्ति है यह. और एक दम नकली. सरस्वती 9वी सदी से भारत भर के पवित्र पाषाण मन्दिरों मे नग्न ही रहती आई है. हुसैन ने नग्न दिखाया तो पाप हो गया......

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