माए नी माए मैं इक शिकरा यार बणाया
ओ ते सिर ते कलगी ते पैरी झांझ
वो चोग चुगींदा आया ...
पंजाब लोक साहित्य में प्रेमी या प्रेमी अपने प्रेम की पीड़ा को रिवायतन अपनी मांओं के साथ बांटा करते थे. उसी परम्परा में इस रचना में प्रेमी अपनी मां से कहता है कि उसने एक कबूतर को अपना यार बना लिया. और कैसा सुन्दर कबूतर! सर पे कलगी अर पैरों में घुंघरू. दाना चुगते चुगते कब उसने अपने प्रेम का जाल फैला लिया. ...
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