Tuesday, July 19, 2011

भूंगर खां की 'मूमल'

रेगिस्तान की शुष्क, वेगवान हवाओं के तप्त थपेडों के बीच अपने कंठ में सुरों को साधने वाले भूंगर खां आज हमारे बीच नहीं है.बल्कि काफी पहले ही असाध्य बीमारी के चलते वे इस दुनिया को छोड़ चुके है.और अफ़सोस तो ये है कि इस मांगणियार कलाकार की बेहद कम रेकॉर्डिंग्स ही उपलब्ध है.उन्हें कभी कोई बड़ा मंच नहीं मिल सका. भले ही इस प्रतिभा के सुर अनंत में बैठे किसी ईश्वर तक पहुँचते होंगे, राजधानियों के रास्ते बेहद लंबे और थकाऊ थे.

यहाँ सुनते हैं भूंगर खां के गले से 'मूमल' के सौंदर्य का बखान.मूमल और महेंद्रा की प्रेम कहानी पश्चिमी राजस्थान की कई अमर कथाओं में से एक है. कहते हैं मूमल इतनी सुंदर थी कि किसी संयोग से पायी उसकी झलक मात्र से महिंद्रा, जो पूर्व विवाहित था, तमाम लौकिक बंधनों को तोड़ता उसके प्रेम के आदिम-पाश में बंध गया.कितनी सुंदर थी मूमल, ये इस गीत में कई उपमाओं के ज़रिये बताने की कोशिश की गई है.

कृपया रिकॉर्डिंग की गुणवत्ता को थोड़ा नज़रंदाज़ करें.


5 comments:

  1. रिकार्डिंग की गुणवत्‍ता बहुत अच्‍छी नहीं है, लेकिन इस बहुमूल्‍य धरोहर को हमसे साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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