निज़ार क़ब्बानी की कविता -
चुनो
मैंने तुमसे चुनने को कहा है सो चुनो
मौत मेरे सीने पर
या कविताओं की मेरी नोटबुक्स पर
चुनो प्यार या मत चुनो उसे
क्योंकि न चुनना तुम्हारी कायरता है
स्वर्ग और नर्क के दरम्यान
बीच की कोई धरती होती नहीं.
अपने सारे पत्ते खोल दो
और मैं किसी भी फ़ैसले से सन्तुष्ट हो जाऊंगा
मुझे बताओ, भावुक होकर या फट पड़ो
कील की तरह मत खड़े रहो
मेरे लिए मुमकिन नहीं कि मैं हमेशा बना रहूं
बारिश के नीचे भूसे की तरह
दो नियतियों में से चुन लो एक को
और मेरी नियतियों से अधिक हिंसक कोई चीज़ नहीं.
तुम थकी हुई हो और डरी हुई
और मेरा सफ़र बहुत लम्बा
डूब जाओ समुद्र में या जाओ यहां से
बिना भंवर का कोई समुद्र नहीं होता
प्रेम एक बड़ा प्रतिद्वन्द्वी होता है
धारा के बरख़िलाफ़ नाव खेता हुआ
सलीब पर चढ़ाया जाना, यातना और आंसू
और चन्द्रमाओं के दरम्यान एक कूच
तुम्हारी कायरता मुझे मारे डाल रही है स्त्री!
पर्दा खींच दो
मैं उस प्रेम में विश्वास नहीं करता
जो बेचैनी के उतावलेपन को ढो न सके
जो तोड़ न दे सारी दीवारों को
आह, तुम्हारा प्रेम ने निगल लेना है मुझे
तोड़ डालो मुझे किसी बवंडर की तरह
मैंने तुमसे चुनने को कहा है सो चुनो
मौत मेरे सीने पर
या कविताओं की मेरी नोटबुक्स पर
चुनो प्यार या मत चुनो उसे
क्योंकि न चुनना तुम्हारी कायरता है
स्वर्ग और नर्क के दरम्यान
बीच की कोई धरती होती नहीं.
बिलकुल सही कहा आपने...
ReplyDeletekamal hai.
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय नहीं हैं। मैं नहीं करता कमेन्ट।
ReplyDeletevery nice and compulsive ! really liked the intensity !
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