Saturday, July 9, 2011
घड़ियाली देओ निकाल नी
आबिदा परवीन और बाबा बुल्ले शाह की एक और जुगलबन्दी. जगजाहिर है कि इस रचना को भारत में सबसे पहले बाबा नुसरत फ़तेह अली ख़ान ने शोहरत दिलाई थी, अलबत्ता आबिदा का अन्दाज़ बिल्कुल अलहदा और खास तरह से निराला है -
1 comment:
नीरज गोस्वामी
said...
बेजोड़...आबिदा को सुनना खुदा की इबादत करने जैसा है...
नीरज
July 9, 2011 at 12:04 PM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
View mobile version
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
बेजोड़...आबिदा को सुनना खुदा की इबादत करने जैसा है...
नीरज
Post a Comment