इस ठिकाने पर आप नियमित रूप से विश्व कविता के अनुवादों से रू-ब-रू होते रहे हैं। आज इसी क्रम में प्रस्तुत है स्त्री स्वर की एक सशक्त प्रस्तुतकर्ता और पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित अमरीकी कवि कैरोलिन कीज़र की यह एक कविता।
कवि - कुटुंब कथा
(कैरोलिन कीज़र )
I
मोटी जर्सी में कसी
पुष्ट देहदारी कवि की देह
एक अधेड चोर की तरह
ले रही है पंजों के बल आश्चर्यजनक उछाल
अरे! कहीं नन्हे पाखी रोबिन को लग तो नहीं गई चोट?
II
हंसों को दाने चुगाने के वास्ते झुकती है वह
घुघराली केशराशि के नीचे
प्रकट हो उठता है उसकी ग्रीवा का उजला वक्र
उसके पति को लगता है मानो कुछ दिखा ही नहीं
जबकि उसकी कविताओं में
वही स्त्री कर रही है झिलमिल - झिलमिल।
III
पूरे घर में व्याप्त है
नीरवता का समृद्ध साम्राज्य
गुलदान में शोभायमान एक अकेले फर्न की हिलडुल
इसे किंचित भंग कर रही है अलबत्ता।
पोर्च में पसरा प्रचंड कवि
अपने आप से कर रहा है सतत वार्तालाप।
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(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)
बरबस ध्यान खींचता चित्रण।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद्|
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