जैसे कोई सितारा बादल के गांव में
सुशोभित सक्तावत
किशोर कुमार की आवाज हिंदी सिने संगीत की पहली आधुनिक और बेतकल्लुफ आवाज थी। उसमें एक खास सांकेतिकता थी। खिलंदड़ रति चेष्टाएं थीं, मनुहार थी, अभिसार का आमंत्रण था। किशोर की आवाज में कोई चेकपोस्ट न थे, नाकेबंदी न थी, इसीलिए यह भी अकारण नहीं है कि अपने प्लेबैक गायन के प्रारंभिक दिनों में किशोर देव आनंद के लिए गाते थे, जो कि हिंदी सिनेमा के पहले आधुनिक, शहराती और डेमोक्रेटिक सितारे थे।
किशोर कुमार ने अपने समकालीनों की तुलना में देरी से प्रतिष्ठा पाई, लेकिन उनकी आवाज उन सभी से दीर्घायु सिद्ध हुई। किशोर अगर भूमंडलीकरण द्वारा प्रस्तावित संस्कृति के प्रिय गायक बन गए हैं तो यह भी अनायास नहीं है। किसी भी म्यूजिकल प्लैनेट में चले जाइए, 1950-60 के दशक का सुगम संगीत वहां मिले न मिले, किंतु ‘कॉफी विद किशोर’ सरीखे रुपहले बॉक्स सेट जरूर मिल जाएंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि किशोर की आवाज आधुनिकता, उच्छृंखलता और अनौपचारिकता के उन गुणों का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे भूमंडलीकरण की पीढ़ी ने अपनी देहभाषा में अंगीकार किया है।
लेकिन महज इतने में किशोर कुमार को महदूद कर देना उन्हें सिरे से चूक जाना होगा। किशोर का असल गायन राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के लिए गाए गए पॉपुलर प्लेबैक गीतों में नहीं है। किशोर का असल गाना सुनना हो तो आ चल के तुझे मैं ले के चलूं या ठंडी हवा ये चांदनी सुहानी जैसे तराने सुनें।
या फिर अनिल बिस्वास की 1953 की वह बंदिश सुनें - आ मुहब्बत की बस्ती बसाएं सनम या फिर सत्यजित राय की फिल्म ‘चारुलता’ का वह भीना-भीना बांग्ला गीत सुनें : आमि चिनी गो चिनी तोमारे, ओ गो बिदेशिनी। खरे सोने जैसी खनकदार आवाज, पिघले शीशे-सी ढलाई, गाढ़ा पौरुषपूर्ण स्वर, स्मृतियों में थिगा भाव अमूर्तन और एक निरपेक्ष विषाद, ये किशोर के गायन के अनिवार्य गुण हैं।
किशोर के गाने में निर्वेद का तत्व भी हमेशा उपस्थित रहा। आए तुम याद मुझे या कोरा कागज था ये मन मेरा जैसे शांत रस के गीतों में भी उनकी आवाज डूबी-सी लगती है। लगता है जैसे किशोर की आवाज का निर्वेद विश्व-स्थिति पर एक उदास टिप्पणी है, एक कायनाती अफसोस है। कोई हमदम न रहा के अंतरे में जब किशोर की आवाज कोहरे में फैलती है तो लगता है जैसे उनके भीतर का वह अलक्षित विषाद सघन होकर दिशाओं में व्याप गया हो।
संगीत अगर निज को सार्वभौम बनाने का रसायन है तो किशोर की आवाज इसका प्रतिमान है। उनके यहां मन्ना डे का आत्मिक आलोड़न नहीं, तलत का कातर भाव या रफी की रूमानी रुलाइयां भी नहीं, एक ऐसा तत्व वैशिष्ट्य है, जिसे व्याख्याओं से नहीं, व्यंजनाओं से ही पकड़ा जा सकता है, जैसे ग्रीष्म की दुपहरियां, ऊंघता निदाघ, सांझ के लंबे साये, झुटपुटे में गुमी किरणों, घड़ी का झूलता पेंडुलम, रेडियो पर रवींद्र संगीत या कतबों के सामने सुबकती मोमबत्तियां।
किशोर हिंदी सिने संगीत के विरल म्यूजिकल जीनियस हैं। गाते समय वे अंगुलियों पर मात्राएं नहीं गिनते, अपनी धमनियों में गूंजती लय को सुनते और उसका अनुसरण करते हैं। वे सुरों के सगे बेटे हैं।
किशोर को सुनते हुए हम सभी कमोबेश किशोर हो जाते हैं। और इसीलिए उनके गीतों की पंक्तियां हमें अपना आत्मकथ्य जान पड़ती हैं, जैसे यह :
ऐसे मैं चल रहा हूं पेड़ों की छांव में
जैसे कोई सितारा बादल के गांव में
मेरे दिल तू सुना
कोई ऐसी दास्तां
जिसको सुनकर मिले चैन मुझे मेरी जां
मंजिल है अनजानी.

Kisor kumar k geet dil ko santi dete h.masti h geeto me.
ReplyDeleteDil ko chain dete h kisor ke geet
ReplyDeleteA best singer kisor
ReplyDeleteRight
ReplyDeleteकिशोर को सुनते हैं, तो सुनते रहते हैं..
ReplyDeleteजाने क्यों किशोर का जिक्र आते ही मधुबाला कि याद आ जाती है...आँख नम हो जाती है.
ReplyDeleteअशोक जी
ReplyDeleteकिशोर दा की आवाज़ के जादू को इतनी ख़ूबसूरती से लफ्ज़ों में बयां होता मैंने पहले कहीं नहीं पढ़ा. शानदार!
आपकी आज्ञा से इस पोस्ट को फेस-बुक पर बांट सकता हूं?
अवश्य शेयर कीजिये राहुल जी. बल्कि अच्छा ही है.
ReplyDeleteकिशोर के गानों में वो सादगी, दिल्लगी और मेच्युरिटी है जो एक साथ तीन पुश्तों को अपील करती है ..
ReplyDeleteकिशोर का उल्लेख किया तो इसी श्रेणी के कुछ और उम्दा गीत याद आए.. हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम, कश्ती का खामोश सफर है और वो शाम कुछ अजीब थी.....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteकिशोर दा के बारे में जितना लिखा जीये कम है...
ReplyDelete