Saturday, July 7, 2012

जैसे धूप टोकरी से कहती हो



गेंद की तरह


- राजेश सकलानी 

कौन देश से आई हो
किसके हाथों उपजाई हो
गदराई हुई मटर की फलियो
जैसे धूप टोकरी से कहती हो

मैं लगा छीलने फलियाँ
एक दाना छिटक कर गया यहाँ-वहाँ
लगा ढूँढने उसे मेज़ के पीछे
वह नटखट जैसे छिपता हो

फिर सोचा एक ही दाना है
लगा दूसरी फलियों को छूने
लेकिन नहीं, बार-बार वह आँखों में कौंधता

आखिर गया तो गया कहाँ
वह कसा कसा हरियाला
मिल जाय तुरत उसे छू लूं

कागज़, किताब जूते सब उठा पलट कर
मैं लगा देखने

एक ओर मेरा समय
दूसरी ओर मटर के दाने का इतराना

ज्यों-ज्यों  आगे लगा काम में
लगता  जैसे अभी-अभी वह गेंद की तरह
टप्पा खा कर उछला है.

2 comments:

  1. एक ओर मेरा समय दूसरी ओर मटर के दाने का इतराना

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