Thursday, October 25, 2012

जरा हलके गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले



प्रह्लादसिंह टिपाणिया एवम उनके साथी सुना रहे हैं कबीरदास जी एक विख्यात भजन.  



जरा हलके गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले
जरा धीरे धीरे गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले

गाड़ी म्हारी रंग रंगीली पहिया है लाल गुलाल
हांकन वाली छैल छबीली बैठन वाला काल

गाड़ी अटकी रेत में जी, मजल पडी है दूर
ई धर्मी धर्मी पार उतर ग्ये पापी चकनाचूर

देस देस का बैद बुलाया लाया जडी और बूटी
या जडी बूटी तेरे काम न आई जड़ राम के घर की छूटी

चार जना मिल मतों उठायो बांधी काठ की घोडी
ले जाके मरघट पे रखिया, फूँक दीन्ही जस होली

बिलख बिलख कर तिरिया रोये बिछड़ गयी मेरी जोड़ी
कहे कबीर सुनो भई साधो जिन जोड़ी उन तोडी


6 comments:

  1. हमें गर्व है कि हम प्रहलादजी के क्षेत्र से है

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  2. मेरा पसंदीदा भजन ।
    टिपाण्या जी के भजनों की दो सीडी कल ही इन्दौर से मंगवाई हैं ।

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  3. गाड़ीवाले के स्थान पर गाड़ीवाला कर लें । 'वाले' खड़ी बोली रूप होता है । 'वाला' मालवी रूप है और यही सही भी है ।

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  4. मुझे दो-तीन अवसर मिले यह आमने-सामने सुनने के.

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