Monday, February 25, 2013

चँदेरी के सपने में दिखायी देते हैं मुझे


चँदेरी

-कुमार अम्बुज

चँदेरी मेरे शहर से बहुत दूर नहीं है
मुझे दूर जाकर पता चलता है
बहुत माँग है चँदेरी की साड़ियों की

चँदेरी मेरे शहर से इतने करीब है
कि रात में कई बार मुझे
सुनायी देती है करघों की आवाज
चँदेरी की दूरी बस इतनी है
जितनी धागों से कारीगरों की दूरी

मेरे शहर और चँदेरी के बीच
बिछी हुयी है साड़ियों की कारीगरी
एक तरफ से साड़ी का छोर खींचो
तो दूसरी तरफ हिलती हैं चँदेरी की गलियाँ

गलियों की धूल से
साड़ी को बचाता हुआ कारीगर
सेठ के आगे रखता है अपना हुनर
चँदेरी मेरे शहर से बहुत दूर नहीं है
मुझे साफ दिखायी देता है सेठ का हुनर

मैं कई रातों से परेशान हूँ
चँदेरी के सपने में दिखायी देते हैं मुझे
धागों पर लटके हुये कारीगरों के सिर

चँदेरी की साड़ियों की दूर-दूर तक माँग है
मुझे दूर जाकर पता चलता है

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.

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