Monday, April 8, 2013

उत्तर पूर्व की कविताएं - ४




मूर्तिकार
- अनुपमा बसुमतारी

(असमिया कवयित्री अनुपमा बसुमतारी का जन्म १९६० में ग्वालपाड़ा जिले के दारांगमिरि में हुआ था. उनके तीन काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. वे एल.आई.सी. गौहाटी में कार्यरत हैं. उन्हें भारतीय भाषा परिषद का ‘ईशान सम्मान’ प्राप्त है. कविता का अनुवाद गोपाल प्रधान का है.)

मैंने पत्थर का परिधान पहना था
गहने भी पत्थर के
पत्थर के इन होंठों से
बोलना तो संभव ही नहीं था.
वह आया मुझे देखा
पत्थर के टुकड़े जैसे अंगों में झाँका
फिर आहिस्ता से छुए उसने
मेरे स्तन, होंठ और आंसू.
मेरे पथरीले बदन से बाहर खींचकर
उसने पत्थर के एक और टुकड़े में
उकेर दिया.
पता नहीं उसके हाथों की
जादुई छुअन थी
या दो दिलों की चाह
कि एक दिन मेरा
पत्थर दिल धडकने लगा
मेरे हाथ बाहर निकले
और उसे आगोश में ले लिया.
फिर मैं
भरपूर औरत बन गयी.

2 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना,आभार.

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  2. संपादक जी निवेदन है कि इस ग़ज़ल को ब्लॉग मेँ प्रकाशित करने की कृपा करेँ।


    जो मेरे
    सामने
    नहीँ होता।
    वो सच मेँ
    खुदा
    नहीँ होता॥

    हम दवा
    खा रहे हैँ
    सदियोँ से।
    पर हमेँ
    फायदा
    नहीँ होता॥

    वो पत्ता
    बहता है
    इक दरिया मेँ।
    जो शाख से
    जुड़ा
    नहीँ होता॥

    गम को
    ग़ज़ल मेँ
    ढाल के देखो।
    दर्द का
    हल मैकदा
    नहीँ होता॥

    मनीस पाण्डेय
    मल्लीताल, नैनीताल

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