Monday, September 30, 2013

तो शायद इतने भरोसे से मैं यह बात कह न पाता


वही तोता

-वीरेन डंगवाल


फलों से लदा है अमरूद का पेड़ इस भादो मास में 
भीगी हुई पत्तियों से बचता उन्‍हीं में छिपता भी 
कुतरता सतर्क बेतकल्‍लुफी से 
फुनगी के पास के 
पके हुए फल वह तोता 
वहां से उड़ने में आसानी होगी उसे 
किसी भी आकस्मिकता में 

मैं पहचानता हूं उसे 
उसका श्‍यामल सर और कंठीदार गला 
उसकी शाही अदा 
किसी खूब पके छोटे फल को 
एक पंजे में पकड़कर कुतरने की 
उसका भव्‍य अकेलापन 
सर्दियों की फसल में भी आता था वह वही 
पिछली बरसात में भी 
लौटकर आया हुआ कोई अनजान आदमी होता 
तो शायद इतने भरोसे से मैं यह बात 
कह न पाता 
या शायद 
उसी से पूछता.

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