Sunday, October 13, 2013

अब जाकर सकुचाई-सी खुली है धूप


रामगढ़ में आकाश के ऊपर भी परछाईं

-वीरेन डंगवाल 


मंथर चक्‍कर लगा कर 
चीलें 
सुखा रहीं अपने डैनों की सीलन को 
नीचे हरी-भरी घाटी के किंचित बदराये शून्‍य में 
वही आकाश है उनका उतने नीचे 

रात-भर बरसने के बाद 
अब जाकर सकुचाई-सी खुली है धूप 

मेरी परछांई पड़ रही 
बूंदे टपकाते 
बैंगनी-गुलाबी फलों से खच्‍च लदे 
आलूचे के पेड़ पर 
बीस हाथ नीचे 
मगर उस आकाश से काफी ऊपर. 

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