फ़िलहाल वीरेन डंगवाल की कविताओं की सीरीज को उनकी इस
पुरानी और चर्चित कविता के साथ समाप्त करता हूँ. वे जल्द स्वास्थ्यलाभ करें और सैकड़ों कवितायेँ और लिखें. दुआ.
रामसिंह
-वीरेन डंगवाल
दो रात और तीन दिन का सफ़र तय करके
छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह
रामसिंह अपना वार्निश की महक मारता ट्रंक खोलो
अपनी गन्दी जर्सी उतार कर कलफ़दार वर्दी पहन लो
रम की बोतलों को हिफ़ाज़त से रख लो रामसिंह, वक़्त ख़राब है ;
खुश होओ, तनो, बस, घर में बैठो, घर चलो ।
तुम्हारी याददाश्त बढ़िया है रामसिंह
पहाड़ होते थे अच्छे मौक़े के मुताबिक
कत्थई-सफ़ेद-हरे में बदले हुए
पानी की तरह साफ़
ख़ुशी होती थी
तुम कनटोप पहन कर चाय पीते थे पीतल के चमकदार गिलास में
घड़े में, गड़ी हई दौलत की तरह रक्खा गुड़ होता था
हवा में मशक्कत करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे फ़ौजियों की तरह
नींद में सुबकते घरों पर गिरा करती थी चट्टानें
तुम्हारा बाप
मरा करता था लाम पर अँगरेज़ बहादुर की ख़िदमत करता
माँ सारी रात रात रोती घूमती थी
भोर में जाती चार मील पानी भरने
घरों के भीतर तक घुस आया करता था बाघ
भूत होते थे
सीले हुए कमरों में
बिल्ली की तरह कलपती हई माँ होती थी, बिल्ली की तरह
पिता लाम पर कटा करते थे
ख़िदमत करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे सिपाहियों की तरह ;
सड़क होती थी अपरिचित जगहों के कौतुक तुम तक लाती हई
मोटर में बैठ कर घर से भागा करते थे रामसिंह
बीहड़ प्रदेश की तरफ़ ।
तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह ?
तुम बन्दूक के घोड़े पर रखी किसकी उँगली हो ?
किसका उठा हुआ हाथ ?
किसके हाथों में पहना हुआ काले चमड़े का नफ़ीस दस्ताना ?
ज़िन्दा चीज़ में उतरती हुई किसके चाकू की धार ?
कौन हैं वे, कौन
जो हर समय आदमी का एक नया इलाज ढूँढते रहते हैं ?
जो रोज़ रक्तपात करते हैं और मृतकों के लिए शोकगीत गाते हैं
जो कपड़ों से प्यार करते हैं और आदमी से डरते हैं
वो माहिर लोग हैं रामसिंह
वे हत्या को भी कला में बदल देते हैं ।
पहले वे तुम्हें कायदे से बन्दूक पकड़ना सिखाते हैं
फिर एक पुतले के सामने खड़ा करते हैं
यह पुतला है रामसिंह, बदमाश पुतला
इसे गोली मार दो, इसे संगीन भोंक दो
उसके बाद वे तुम्हें आदमी के सामने खड़ा करते हैं
ये पुतले हैं रामसिंह बदमाश पुतले
इन्हें गोली मार दो, इन्हें संगीन भोंक दो, इन्हें... इन्हें... इन्हें...
वे तुम पर खुश होते हैं -- तुम्हें बख़्शीश देते हैं
तुम्हारे सीने पर कपड़े के रंगीन फूल बाँधते हैं
तुम्हें तीन जोड़ा वर्दी, चमकदार जूते
और उन्हें चमकाने की पॉलिश देते हैं
खेलने के लिए बन्दूक और नंगीं तस्वीरें
खाने के लिए भरपेट खाना, सस्ती शराब
वे तुम्हें गौरव देते हैं और इसके बदले
तुमसे तुम्हारे निर्दोष हाथ और घास काटती हई
लडकियों से बचपन में सीखे गए गीत ले लेते हैं
सचमुच वे बहुत माहिर हैं रामसिंह
और तुम्हारी याददाश्त वाकई बहुत बढ़िया है |
बहुत घुमावदार है आगे का रास्ता
इस पर तुम्हें चक्कर आएँगे रामसिंह मगर तुम्हें चलना ही है
क्योंकि ऐन इस पहाड़ की पसली पर
अटका है तुम्हारा गाँव
इसलिए चलो, अब ज़रा अपने बूटों के तस्में तो कस लो
कन्धे से लटका ट्राँजिस्टर बुझा दो तो खबरें आने से पहले
हाँ, अब चलो गाड़ी में बैठ जाओ, डरो नहीं
गुस्सा नहीं करो, तनो
ठीक है अब ज़रा ऑंखें बन्द करो रामसिंह
और अपनी पत्थर की छत से
ओस के टपकने की आवाज़ को याद करो
सूर्य के पत्ते की तरह काँपना
हवा में आसमान का फड़फड़ाना
गायों का रंभाते हुए भागना
बर्फ़ के ख़िलाफ़ लोगों और पेड़ों का इकठ्ठा होना
अच्छी ख़बर की तरह वसन्त का आना
आदमी का हर पल, हर पल मौसम और पहाड़ों से लड़ना
कभी न भरने वाले ज़ख़्म की तरह पेट
देवदार पर लगे ख़ुशबूदार शहद के छत्ते
पहला वर्णाक्षर लिख लेने का रोमाँच
और अपनी माँ की कल्पना याद करो
याद करो कि वह किसका ख़ून होता है
जो उतर आता है तुम्हारी आँखों में
गोली चलने से पहले हर बार ?
कहाँ की होती है वह मिटटी
जो हर रोज़ साफ़ करने के बावजूद
तुम्हारे बूटों के तलवों में चिपक जाती है ?
कौन होते हैं वे लोग जो जब मरते हैं
तो उस वक्त भी नफ़रत से आँख उठाकर तुम्हें देखते हैं ?
आँखे मूँदने से पहले याद करो रामसिंह और चलो
छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह
रामसिंह अपना वार्निश की महक मारता ट्रंक खोलो
अपनी गन्दी जर्सी उतार कर कलफ़दार वर्दी पहन लो
रम की बोतलों को हिफ़ाज़त से रख लो रामसिंह, वक़्त ख़राब है ;
खुश होओ, तनो, बस, घर में बैठो, घर चलो ।
तुम्हारी याददाश्त बढ़िया है रामसिंह
पहाड़ होते थे अच्छे मौक़े के मुताबिक
कत्थई-सफ़ेद-हरे में बदले हुए
पानी की तरह साफ़
ख़ुशी होती थी
तुम कनटोप पहन कर चाय पीते थे पीतल के चमकदार गिलास में
घड़े में, गड़ी हई दौलत की तरह रक्खा गुड़ होता था
हवा में मशक्कत करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे फ़ौजियों की तरह
नींद में सुबकते घरों पर गिरा करती थी चट्टानें
तुम्हारा बाप
मरा करता था लाम पर अँगरेज़ बहादुर की ख़िदमत करता
माँ सारी रात रात रोती घूमती थी
भोर में जाती चार मील पानी भरने
घरों के भीतर तक घुस आया करता था बाघ
भूत होते थे
सीले हुए कमरों में
बिल्ली की तरह कलपती हई माँ होती थी, बिल्ली की तरह
पिता लाम पर कटा करते थे
ख़िदमत करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे सिपाहियों की तरह ;
सड़क होती थी अपरिचित जगहों के कौतुक तुम तक लाती हई
मोटर में बैठ कर घर से भागा करते थे रामसिंह
बीहड़ प्रदेश की तरफ़ ।
तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह ?
तुम बन्दूक के घोड़े पर रखी किसकी उँगली हो ?
किसका उठा हुआ हाथ ?
किसके हाथों में पहना हुआ काले चमड़े का नफ़ीस दस्ताना ?
ज़िन्दा चीज़ में उतरती हुई किसके चाकू की धार ?
कौन हैं वे, कौन
जो हर समय आदमी का एक नया इलाज ढूँढते रहते हैं ?
जो रोज़ रक्तपात करते हैं और मृतकों के लिए शोकगीत गाते हैं
जो कपड़ों से प्यार करते हैं और आदमी से डरते हैं
वो माहिर लोग हैं रामसिंह
वे हत्या को भी कला में बदल देते हैं ।
पहले वे तुम्हें कायदे से बन्दूक पकड़ना सिखाते हैं
फिर एक पुतले के सामने खड़ा करते हैं
यह पुतला है रामसिंह, बदमाश पुतला
इसे गोली मार दो, इसे संगीन भोंक दो
उसके बाद वे तुम्हें आदमी के सामने खड़ा करते हैं
ये पुतले हैं रामसिंह बदमाश पुतले
इन्हें गोली मार दो, इन्हें संगीन भोंक दो, इन्हें... इन्हें... इन्हें...
वे तुम पर खुश होते हैं -- तुम्हें बख़्शीश देते हैं
तुम्हारे सीने पर कपड़े के रंगीन फूल बाँधते हैं
तुम्हें तीन जोड़ा वर्दी, चमकदार जूते
और उन्हें चमकाने की पॉलिश देते हैं
खेलने के लिए बन्दूक और नंगीं तस्वीरें
खाने के लिए भरपेट खाना, सस्ती शराब
वे तुम्हें गौरव देते हैं और इसके बदले
तुमसे तुम्हारे निर्दोष हाथ और घास काटती हई
लडकियों से बचपन में सीखे गए गीत ले लेते हैं
सचमुच वे बहुत माहिर हैं रामसिंह
और तुम्हारी याददाश्त वाकई बहुत बढ़िया है |
बहुत घुमावदार है आगे का रास्ता
इस पर तुम्हें चक्कर आएँगे रामसिंह मगर तुम्हें चलना ही है
क्योंकि ऐन इस पहाड़ की पसली पर
अटका है तुम्हारा गाँव
इसलिए चलो, अब ज़रा अपने बूटों के तस्में तो कस लो
कन्धे से लटका ट्राँजिस्टर बुझा दो तो खबरें आने से पहले
हाँ, अब चलो गाड़ी में बैठ जाओ, डरो नहीं
गुस्सा नहीं करो, तनो
ठीक है अब ज़रा ऑंखें बन्द करो रामसिंह
और अपनी पत्थर की छत से
ओस के टपकने की आवाज़ को याद करो
सूर्य के पत्ते की तरह काँपना
हवा में आसमान का फड़फड़ाना
गायों का रंभाते हुए भागना
बर्फ़ के ख़िलाफ़ लोगों और पेड़ों का इकठ्ठा होना
अच्छी ख़बर की तरह वसन्त का आना
आदमी का हर पल, हर पल मौसम और पहाड़ों से लड़ना
कभी न भरने वाले ज़ख़्म की तरह पेट
देवदार पर लगे ख़ुशबूदार शहद के छत्ते
पहला वर्णाक्षर लिख लेने का रोमाँच
और अपनी माँ की कल्पना याद करो
याद करो कि वह किसका ख़ून होता है
जो उतर आता है तुम्हारी आँखों में
गोली चलने से पहले हर बार ?
कहाँ की होती है वह मिटटी
जो हर रोज़ साफ़ करने के बावजूद
तुम्हारे बूटों के तलवों में चिपक जाती है ?
कौन होते हैं वे लोग जो जब मरते हैं
तो उस वक्त भी नफ़रत से आँख उठाकर तुम्हें देखते हैं ?
आँखे मूँदने से पहले याद करो रामसिंह और चलो
सैनिक की रोचक विचार यात्रा
ReplyDeleteवाकई माहिर लोग हैं जो त्या को भी कला में बदल देते हैं।
ReplyDeleteVery intense, as if it's happening in front of my eyes! Thanks for sharing.
ReplyDeleteस्वास्थ्य लाभ के लिए मंगलकामनाएँ । बेहतरीन कविता । रामसिंह किस के लिए मरता है-- पलटन के लिए । पलटन का नारा -- राजा रामचंद्र की जय । अब उसे सुनने को मिलता है कि देश तो सेकुलर है । सारी पजामाफटाई का मूल ये है । श्यामसिंह के मामले में भी बात सेम है । श्यामसिंह मरता पलटन के लिए । पलटन का नारा- बद्री विशाल लाल की जय । फिर वो रिटायर होके आता तो बेटे को एडमिशन नहीं मिलता । किधर भेजेगा , वहीं पलटन में ।
ReplyDelete