एक स्पेनिश चरवाहे के लिए समाधिलेख
जनरल फ्रान्को ने भर्ती किया मुझे
और मैं बन गया एक अभागा सिपाही.
मैं मैदान छोड़ कर नहीं भागा था,
मैं डरा हुआ था, समझ रहे हैं न, वे मुझे गोली मार देते वर्ना.
मैं डरा हुआ था, और इसी वजह से, सेना में,
मैं लड़ा किया स्वाधीनता और न्याय के ख़िलाफ़,
ईरून की दीवारों के साये में.
लेकिन मौत आ ही पहुँची मुझ तक फिर भी.
१९३६
अस्तित्व
मेरी भवें - समर्पण किया हुआ एक झंडा,
जब अकेला होता हूँ
धकेलता हूँ तुम्हें अपने हाथों से
ठंडी गलियों में,
अँधेरे कमरों में.
रोता हुआ अपनी इच्छाएँ.
नहीं छोडूंगा उन्हें -
तुम्हारे पेचीदा निर्भार हाथों को
जो जन्मे मेरे ख़ुद अपने के काले पड़
गए आईने में.
बाकी सब शानदार है.
बाक़ी सब कुछ अब भी
जीवन से ज़्यादा व्यर्थ.
अपनी परछाईं के तले की धरती को
खोदो -
तुम्हारी छातियों के नज़दीक पानी की
एक चादर
जहां डूब सकता हूँ मैं
एक पत्थर की तरह.
१९३६
मेरी निजी राय है कि आप इस ब्लौग का नाम बदल दें....क्योंकि सामग्री इतनी सुंदर है पर ब्लौग का नाम कुछ अच्छा नहीं है। ये मेरा केवल निवेदन हैं इसे अन्यथा बिलकुल न लें...
ReplyDeleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 21/10/2013 कोकुछ पंखतियों के साथ नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।