Saturday, October 19, 2013

उसके सपने भाप बना कर उड़ा देते हैं सूरज को - पॉल एलुआर की कवितायेँ - २


सच की वस्त्रहीनता

जानता हूँ अच्छे से.
पंख नहीं होते दुःख के,
प्रेम के भी नहीं,
न चेहरा कोई:
वे बोलते नहीं
न उनमें कोई हलचल,
नहीं देखता टकटकी लगाए उन्हें मैं
मैं बोलता नहीं उनसे,
लेकिन मैं अपने प्रेम और दुःख की तरह वास्तविक हूँ.

१९२४




प्रेम में स्त्री

वह खड़ी है मेरी आँखों पर
और उसके बाल मेरे बालों में;
उसकी आकृति है मेरे हाथों की
और रंग मेरी दृष्टि का.
वह निगल ली जाती है मेरी परछाईं में
जैसे आसमान के सामने पत्थर.
वह अपनी आँखें बंद नहीं करेगी कभी
न कभी सोने देगी मुझे;
और दिन की भरपूर रोशनी में उसके सपने
भाप बना कर उड़ा देते हैं सूरज को,
मुझे हंसाओ और रुलाओ और हंसाओ,
बोलना तब जब मेरे पास कुछ न बचे बोलने को.

१९२४



एक नई रात को

स्त्री जिसके साथ मैं जिया हूँ,
स्त्री जिसके साथ मैं जीता हूँ,
स्त्री जिसके साथ मैं जियूँगा;
हमेशा वही वही स्त्री,
लाल होना चाहिए तुम्हारा लबादा,
लाल दस्ताने, एक लाल मुखौटा,
और काली स्टॉकिंग्स:
वजहें, सबूत
अनावृत्त देखने को तुम्हें
बेदाग़ अनावृत्तता, ओ सजीली पोशाक!
छातियाँ, ओ मेरे दिल!


१९३२

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