Sunday, December 21, 2014

जिसे हम जंगल कहते हैं

रूस की कामचाटका घाटी 


भाप की घाटी

-अजंता देव

घाटियों से ऊपर उठ रही है भाप
धरती ने सुलगा रखा है चूल्हा

शताब्दियों से खदबदा रही है हांडी
इसमें अब तक क्या क्या उबल चुके होंगे
बेशुमार गर्व
हजारों युद्ध
अनगिनत विजय
चिंघाड़ती शक्तियाँ
रेंगती कमजोरियां
इकसार हो गयी हांडी में

करोड़ों की पंगत जीम चुकी है
करोड़ों ही इंतज़ार में हैं
पूरी पृथ्वी पर फैले हुए हैं
जूठे दोने पत्तल
जिसे हम जंगल कहते हैं.


(कामचाटका घाटी पर वृत्तचित्र देखने के बाद)

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