Friday, February 27, 2015
चूर है ऐसे बांकपन तेरा जैसे डस-डस के सांप थक जाए
उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ान की एक बहुत कम सुनी गयी क़व्वाली "नरगिसी आंख डोरे गुलाबी, मस्ती-ए-हुस्न है मय के प्याले" -
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