Wednesday, October 18, 2017
हम चाहेंगे दुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक
सपनों के मुताबिक
- संजय चतुर्वेदी
हम नहीं चाहेंगे
कि सौ साल बाद
जब हम खोलें तुम्हारी किताब
तो निकले उसमें से
कोई सूखा हुआ फूल
कोई मरी हुई तितली
हम चाहेंगे
दुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक
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