Sunday, December 19, 2010

शून्य

यह जरूर है, कभी कभी ऐसा महसूस होता है कि पेड़ों के जंगल में अकेले पेड़ का अस्तित्व खो जाता है; लेकिन तब उस जंगल का व्यक्तित्व इतना सजीव चित्रित होता है कि व्यक्ति की सजीवता उसपर ईर्ष्या करे | मुक्तिबोध की शक्तिशाली मानवतावादी रोमानियत में अमूर्त का सविस्तार मूर्तीकरण, समाजवाद के धरातल पर प्रतिष्ठित किये जाने के कारण एक ऐसी प्रखर स्पष्टता धारण कर लेता है जिसमें भयानक से भयानक, विद्रूप से विद्रूप (और कोमल से कोमल भी), फैण्टेसी को हम मानो अपनी सांस में महसूस कर सकते हैं | 
- शमशेरबहादुर सिंह 





शून्य 

भीतर जो शून्य है 
उसका एक जबड़ा है,
जबड़े में मांस काट खाने के दांत हैं;
उनको खा जायेंगे,
तुमको खा जायेंगे |
भीतर का आदतन क्रोधी अभाव वह 
हमारा स्वभाव है,
जबड़े की भीतरी अँधेरी खाई में 
खून का तलाब है |
ऐसा वह शून्य है 
एकदम काला है, बर्बर है, नग्न है 
विहीन है, न्यून है,
अपने में मग्न है |
उसको मैं उत्तेजित 
शब्दों और कार्यों से 
बिखेरता रहता हूँ 
बाँटता फिरता हूँ |
मेरा जो रास्ता काटने आते हैं,
मुझसे मिले घावों में 
वही शून्य पाते हैं |
उसे बढाते हैं, फैलाते हैं,
और-और लोगों में बाँटते बिखेरते,
शून्यों की सन्तानें उभारते |
बहुत टिकाऊ है,
शून्य उपजाऊ है |
जगह-जगह करवत, कटार, और दर्रात,
उगाता बढाता है 
मांस काट खाने के दाँत |
इसीलिए जहाँ देखो वहाँ 
खूब मच रही है, खूब ठन रही है,
मौत अब नये नये बच्चे जन रही है |
जगह-जगह दाँतदार भूल,
हथियार-बन्द ग़लती है,
जिन्हें देख, दुनिया हाथ मलती हुई चलती है |

गजानन माधव मुक्तिबोध 

6 comments:

  1. samajhne kee cheshthaa karoongaa.tippanee kee yogyataa nahi rakhtaa.

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  2. अन्दर वाली काट भयानक है।

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  3. ओह बहुत शानदार.... मुक्तिबोध मेरे पसंदीदा कवियों में से एक हैं... अज्ञेय के बाद सबसे ज्यादा समय लेने वाले हैं लेकिन उनको पढने का एक अलग ही नशा है ...

    खून का तलाब है |
    ऐसा वह शून्य है
    एकदम काला है, बर्बर है, नग्न है
    विहीन है, न्यून है,

    ... बेजोड़.... धन्यवाद नीरज

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  4. bahut hi badiya..

    mere blog par bhi kabhi aaiye
    Lyrics Mantra

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  5. bahut hi badiya likha hai aapne..

    mere blog par bhi kabhi aaiye
    Lyrics Mantra

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