Tuesday, December 28, 2010

जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे- बर्तोल्त ब्रेख्ट

(बिनायक सेन की हालिया सज़ा के मद्देनज़र ब्रेख़्त बहुत याद आये…देखिये यह कविता)

जर्मनी में
जब फासिस्ट मजबूत हो रहे थे
और यहां तक कि
मजदूर भी
बड़ी तादाद में
उनके साथ जा रहे थे
हमने सोचा
हमारे संघर्ष का तरीका गलत था
और हमारी पूरी बर्लिन में
लाल बर्लिन में
नाजी इतराते फिरते थे
चार-पांच की टुकड़ी में
हमारे साथियों की हत्या करते हुए

पर मृतकों में उनके लोग भी थे
और हमारे भी

इसलिए हमने कहा
पार्टी में साथियों से कहा
वे हमारे लोगों की जब हत्या कर रहे हैं
क्या हम इंतजार करते रहेंगे
हमारे साथ मिल कर संघर्ष करो
इस फासिस्ट विरोधी मोरचे में

हमें यही जवाब मिला
हम तो आपके साथ मिल कर लड़ते
पर हमारे नेता कहते हैं
इनके आतंक का जवाब लाल आतंक नहीं है
हर दिन

हमने कहा
हमारे अखबार हमें सावधान करते हैं
आतंकवाद की व्यक्तिगत कार्रवाइयों से
पर साथ-साथ यह भी कहते हैं
मोरचा बना कर ही
हम जीत सकते हैं
कामरेड, अपने दिमाग में यह बैठा लो
यह छोटा दुश्मन
जिसे साल दर साल
काम में लाया गया है
संघर्ष से तुम्हें बिलकुल अलग कर देने में
जल्दी ही उदरस्थ कर लेगा नाजियों को

फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और शराबखाने की रातें बदले में मुंजार रहती हैं
और तब कोई नाजी गलियों में चलने की हिम्मत नहीं कर सकता

क्योंकि गलियां हमारी हैं
भले ही घर उनके हों

अंग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पांडेय

5 comments:

  1. घृणा निदान नहीं है, सार्थक सोच ही भला करेगी, विश्व का। सुन्दर अनुवाद।

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  2. Kya aisa koi aasmaan,
    Aisi koi dharti,
    Aisi koi pagdandi
    Aisa koi ghar,
    Aisa koi gaon
    Aisa koi shahar,
    Aisi koi gali
    kahin hai bhi
    Jahaan ek aisa aadmi
    Sachcha hokar rah sake
    Jo sachmuch apne sach ke sath
    Nishchint rahna chahta hai?
    Aaj tak ke saare fakeer
    Kahte aaye hain ki "Haan!
    Aur koi upaay nahin hai.
    You are the World!
    Khud ko sahi kiye bina
    kisi ko yahaan kuchh nahin mila hai.
    Aur na hi us se kisi doosre ko!"

    Kya ham aaj tak ke
    Safar se seekh nahin lena chahte?
    Kya jeewan sirf
    Dohraawon ke liye bana hai?
    Naye shabdon me
    Puraane thahraawon ke liye?

    Ho sakta hai
    Naye upaay se ham
    Unko kuchh adhik
    Aur kuchh sundar de saken
    Jinhen dene ko aksar machalte hain.

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  3. गलियाँ हमारी हैं.

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  4. इनके आतंक का जवाब लाल आतंक नहीं है...... से सौ फीसदी सहमत.

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  5. ब्रेख्त की कई कवितायें पढ़ी हैं कई अवसरों पर लेकिन आज उनकी कविता अधिक उद्वेलित कर रही है.. प्याज की कीमत की तुलना में डॉ. सेन से सम्बंधित ख़बरें कम ही हैं .. देश अपने सबसे त्रासद दौर से गुज़र रहा है..

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