Thursday, April 19, 2012

मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा


तीन सी डी वाली उस्ताद मेहदी हसन खान की क्लैसिकल महफ़िल का पहला खंड कल पूरा हुआ. अब दूसरे से सुनिए राग मियाँ की मल्हार में गई उस्ताद की गायी फ़रहत शहज़ाद की मशहूर गज़ल. उन्नीस सौ अस्सी के दशक में चर्चित हुए उस्ताद के रेकॉर्ड "कहना उसे" में संकलित सारी की सारी गज़लें फ़रहत शहज़ाद साहब की थीं. यह गज़ल पहले-पहल उसी रेकॉर्ड का हिस्सा थी.-

1 comment:

  1. उस्ताद की गायकी में ख़ासतौर पर लफ़्ज़ों के साथ बरताव सुनने लायक है.रागदारी और शायरी दोनों का माथा ऊँचा है.यही बात मेहंदी हसन साहब को दीगर ग़ज़ल गायको से अलहदा बनाती है. सनद रहे मेहंदी हसन साहब पक्के गाने को भी बख़ूबी निभा सकते थे लेकिन छोटी छोटी हरक़तो और मुरकियों से वे ग़ज़ल के मूड को और ज़्यादा ख़ूबसूरत बना देते हैं. ऐ अल्लाह तेरी नवाज़िश कि हम उस वक़्त में पैदा हुए जब ख़ाँ साहब गा रहे थे....

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