पेशावर
पाकिस्तान में १९०० में जन्मे तसद्दुक़ हुसैन ख़ालिद ने १९२४ में
अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया. फिर लन्दन विश्वविद्यालय से पीएचडी. १९३५ में
बार-एट-लॉ की उपाधि हासिल करने के बाद वकालत शुरू की. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से उन्हें
उर्दू का पहला आधुनिक कवि माना जाता है. उनके काम पर एज़रा पाउंड और डी. एच.
लॉरेन्स का गहरा प्रभाव दीखता है. 'सुरूदे-नौ' और 'लामकां' संग्रहों में उनकी जो कविताएं संकलित हैं, उनमें उर्दू की आधुनिकता का पता दर्ज़ है. १९७३
में उनका निधन हुआ.
मिश्र में एक पुराना कब्रिस्तान |
कत्बः
-तसद्दुक़
हुसैन ख़ालिद
शेर दिल ख़ान!
मैंने देखे तीस साल
पै-ब-पै
फ़ाक़े, मुसलसल ज़िल्लतें
जंग,
रोटी,
साम्राज्ञी
बेड़ियों को विस्तार देने का फ़र्ज़
सो रहा
हूँ इस गढ़े की गोद में
आफ़ताबे-मिश्र
के साए तले
मैं
कुंआरा ही रहा
काश मेरा
बाप भी
उफ़ ...
कुंआरा ... क्या कहूं ...
(कत्बः - कब्र पर लगे पत्थर की इबारत, पै-ब-पै - एक के बाद एक, मुसलसल ज़िल्लतें - लगातार अपमान, आफ़ताबे-मिश्र - मिश्र का आसमान)
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