गालेआनो का गद्य - 3
अनुवादः शिवप्रसाद जोशी
एदुआर्दो गालेआनो लातिन अमेरिका की ऐतिहासिक और समकालीन यातना को दुनिया के सामने लाने वाले लेखक पत्रकार हैं. वे जितना अपने पीड़ित भूगोल के दबेकुचले इतिहास के मार्मिक टीकाकार हैं उतना ही भूमंडलीय सत्ता सरंचनाओं और पूंजीवादी अतिशयताओं के प्रखर विरोधी भी. उनका लेखन और एक्टिविज़्म घुलामिला रहा है. इसी साल 13 अप्रेल को 74 साल की उम्र में कैंसर से उनका निधन हो गया.
प्रस्तुत गद्यांश एडुआर्दो गालेआनो की किताब, मानवता का इतिहास, मिरर्स (नेशन बुक्स) से लिया गया है. हिंदी में इसका रूपांतर गुएर्निका मैगज़ीन डॉट कॉम से साभार लिया गया है. अंग्रेज़ी में इनका अनुवाद मार्क फ़्राइड ने किया है.
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3.
तस्वीरः
दुनिया में सबसे उदास आंखें
प्रिंसटन,
न्यू जर्सी, मई 1947
फ़ोटोग्राफ़र
फिलिप हाल्समान ने उससे पूछाः क्या आपको लगता है कि शांति हो पाएगी.
और
जब कैमरा क्लिक कर ही रहा था कि अल्बर्ट आइन्श्टाइन बोले, या शायद बुदबबुदाएः
नहीं.
लोग
मानते हैं कि आइन्श्टाइन को अपने सापेक्षता के सिद्धांत के लिए नोबेल मिला, या कि
वो इस उद्धरण के जनक थेः हर चीज़ सापेक्ष है, और ये भी कि एटम बम का आविष्कार
उन्होंने ही किया था.
सच्चाई
ये है कि उन्हें सापेक्षता के सिद्धांत के लिए नोबेल नहीं दिया गया, और उन्होंने
वे शब्द भी नही कहे थे. बम बनाने वाले भी वो नहीं थे. हालांकि हिरोशिमा और
नागाशाकी नहीं होते अगर उन्होंने वो नहीं खोजा होता जो वे खोज पाए.
उन्हें
बहुत अच्छी तरह पता था कि उनकी खोजें, जो जीवन के उत्सव से सृजित हुई थी, उसे ही
निगल जाने के लिए इस्तेमाल की जाती रही थीं.
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