साए
- मोहम्मद दीन तासीर
ऐसी रातें भी कई गुज़री हैं
जब तेरी याद नहीं आई है
दर्द सीने में मचलता है मगर
लब से फ़रियाद नहीं आई है
हर गुनह सामने आ जाता है
जैसे तारीक चटानों की क़तार
न कोई हीला-ए-तेशा-कारी
न मदावा-ए-रिहाई न क़रार
ऐसी रातें भी हैं गुज़रीं मुझ पर
जब तेरी राहगुज़र के साए
हर जगह चार तरफ़ थे छाये
कभी आये, कभी भागे
कभी भागे, कभी आये
तू न थी, तेरी तरह के साये
साए ही साए थे रक्साँ
मैं न था, मेरी तरह के साए
साए ही साए थे लरजां लरजां
साए ही साए तेरी राहगुज़र के साए
ऐसी रातें भी कई गुज़री हैं
जब तेरी याद नहीं आई है
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अमृतसर ज़िले में १९०२ में जन्मे मोहम्मद दीन तासीर ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएचडी करने के बाद इस्लामिया कॉलेज, लाहौर में अध्यापन किया. वहीं वे प्रिंसिपल भी हुए. बाद में वे एम.ए.ओ. कॉलेज, अमृतसर के प्रिंसिपल हुए जिसके बाद उन्होंने सूचना और प्रसारण विभाग में नौकरी की. तासीर प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापकों में से थे लेकिन असल फितरत उनकी रोमांटिक की थी. इक़बाल और हफ़ीज़ जालंधरी का प्रभाव उनके कार्य पर साफ़ नज़र आता है. उनके कविता संचयन का शीर्षक था ‘आतिशकदा’. १९५० में इंतकाल हुआ.
बहुत खूब पोस्ट करने के लिए धन्यवाद!
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