मीराजी का जन्म १९१२ में पश्चिमी पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था. मीरा सेन नाम की एक युवती के प्रेम में आसक्त सनाउल्लाह सानी डार ने अपना यही नाम रख छोड़ा था. उन्होंने किसी तरह की औपचारिक शिक्षा नहीं पाई. उन्मुक्त जीवन जीने वाले मीराजी आल इण्डिया रेडियो, दिल्ली और अदबी दुनिया (लाहौर), साकी (दिल्ली) और ख़याल (मुम्बई) आदि पत्रिकाओं से थोड़े-थोड़े समय के लिए जुड़े. संस्कृत के कवि अमरु (अमरूशतक के कवि अमरूक) और फ्रेंच कवि बौदलेयर का उन पर गहरा असर था. उन्होंने दामोदर गुप्त और उमर खय्याम की कविताओं के अनुवाद भी किये. वे हल्कः-ए-अरबाब-ए-जौक नाम की संस्था से जुड़े रहे और उर्दू की नयी कविता के अगुओं में जाने गए. १९४९ में उनका निधन हो गया. मृत्यु के बाद उनके दो संग्रह छपे जबकि १९८८ में उनके समग्र काव्यकर्म का प्रकाशन कुल्लियात-ए-मीराजी नाम से किया गया.
कबाड़खाने के पाठको को याद होगा हमने मीराजी पर कुछ समय पहले सआदत हसन मंटो के संस्मरण लगाए थे. उनके और मीराजी पर छपे अन्य लेखों के लिंक ये रहे:
मंटो के मीराजी - 1, 2, 3, 4, 5
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
कबाड़खाने के पाठको को याद होगा हमने मीराजी पर कुछ समय पहले सआदत हसन मंटो के संस्मरण लगाए थे. उनके और मीराजी पर छपे अन्य लेखों के लिंक ये रहे:
मंटो के मीराजी - 1, 2, 3, 4, 5
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
- मुहम्मद सनाउल्लाह सानी डार 'मीराजी'
सिमट कर किस लिए नुक़ता नही बनती ज़मीं? कह दो
ये फैला आसमाँ उस वक़्त दिल को क्यों लुभाता था
हर एक सम्त अब अनोखे लोग हैं और उनकी बातें हैं
कोई दिल से फिसल जाती, कोई सीने में चुभ जाती
उन्हीं बातों की लहरों पे बहा जाता है ये बजरा
जिसे साहिल नहीं मिलता
मैं जिसके सामने आऊँ मुझे लाज़िम है लेकिन
मुस्कराहट में ये कहें होंट
"तुम को जानता हूँ" दिल कहे "कब जानता हूँ मैं"
इन्हीं लहरों में बहता हूँ, मुझे साहिल नहीं मिलता
सिमट कर किस लिए नुक़ता नही बनती ज़मीं? कह दो
वो कैसी मुस्कराहट थी, बहन की मुस्कराहट थी, मेरा भाई भी हंसता था
वो हंसता था, बहन हंसती है, अपने दिल में कहती है
ये कैसी बात भाई ने कही, देखो वो अम्मां और अब्बा को हंसी आई
मगर यूं वक़्त बहता है, तमाशा बन गया साहिल
मुझे साहिल नहीं मिलता
सिमट कर किस लिए नुक़ता नही बनती ज़मीं? कह दो
ये कैसा फेर है, तक़दीर का ये फेर तो शायद नहीं लेकिन
ये फैला आसमां उस वक़्त दिल को क्यों लुभाता था?
हयात-ए-मुख़्तसर सब की बही जाती है और मैं भी
हर इक देखता हूँ, मुस्कराता है कि हंसता है
कोई हँसता नज़र आए, कोई रोता नज़र आए
मैं सबको देखता हूँ, देखकर ख़ामोश रहता हूँ
मुझे साहिल नहीं मिलता
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