पेश है कलीम आजिज़ की एक ग़ज़ल -
कल हर इक ज़ुल्फ़ समझती रही शाना हमको
आज आईना दिखाता है ज़माना हमको
अक़ल फिरती है लिए ख़ाना-ब-ख़ाना हमको
इश्क़ अब तू ही बता कोई ठिकाना हमको
इश्क़ अब तू ही बता कोई ठिकाना हमको
ये असीरी है संवरने
का बहाना हमको
तवके आईना है ज़ंजीर है शाना हमको
तवके आईना है ज़ंजीर है शाना हमको
जादा ग़म के मुसाफ़िर
का ना पूछो अहवाल
दूर से आए हैं और दूर है जाना हमको
दूर से आए हैं और दूर है जाना हमको
इक कांटा सा कोई
दिल में चुभो देता है
याद जब आता है फूलों का ज़माना हमको
याद जब आता है फूलों का ज़माना हमको
दिल तो सौ चाक है
दामन भी कहीं चाक ना हो
ए जुनूं देख ! तमाशा ना बनाना हमको
ए जुनूं देख ! तमाशा ना बनाना हमको

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