Sunday, June 11, 2017

हम थक गये हैं और सोना चाहते हैं - स्वाति मेलकानी की कविताएं - 4


यूरोप में शरणार्थी
- स्वाति मेलकानी

जब समुद्र के किनारे
एक बच्चा मरा हुआ मिलता है
तब समुद्र शान्त रहता है
और कोई सुनामी नहीं आता.

जब ट्रेन से धकेलकर
लोग फेंके जाते हैं
तब दुनिया की
तमाम रेलगाड़ियां
बिना रूके चलती रहती हैं.

जब मनुष्यों के
भीतर घुस आने के डर से
कंटीले तारों की बाड़ें लगाई जाती हैं
तब जमीन पर उगा
हर बबूलनागफनी और गुलाब
अपने बदन के काँटों पर
शर्मिंदा नहीं हो उठता.

जब पटरियों पर
बच्चे लेट जाते हैं
और उनकी मांएँ
भूख से बेहोश होकर
गिर पड़ती हैं
तब
कहीं एक शराबी
नशे में धुत होकर
निर्वस्त्र औरतों पर नोट फेंकता है.

जब
मृत शरीरों को नोचने के लिये
गिद्ध न मिलते हों
और लकड़ी कम पड़ने पर
प्लास्टिक के ताबूत बनाने पड़ें
ठीक उसी वक्त
हम आसमान देखकर
एक ठन्डी आह भरते हैं
और
दोपहर से
रात के बीच का फासला
हमें लम्बा महसूस होता है.

लौटती लहरों के साथ
वह आये
ऑक्टोपसों के बीच से
पैर बचाते हुए
हम एक और दिन
रात होने से पहले
घर लौट आते हैं ...

कि हम थक गये हैं
और सोना चाहते हैं
कयामत आने में
अब भी वक्त है. 

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