
फ़रीदा ख़ानम किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं. 'आज जाने की ज़िद ना करो' आज भी तमाम तरह की शौकिया-पेशेवर गायन महफ़िलों में बज़िद सुना-सुनाया जाता है. दाग़ देहलवी की ग़ज़ल सुनें इस दिलकश आवाज़ में:
आफ़त की शोख़ियां हैं तुम्हारी निगाह में
महशर के फ़ितने खेलते हैं जल्वागाह में
वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं
मैं शाद हूं कि हूं तो किसी की निगाह में
आती है बात बात मुझे याद बार बार
कहता हूं दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में
इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर
जो टूट कर शरीक हूं हाल-ए-तबाह में
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमन्द थे
ऐ 'दाग़' तुम बैठ गए एक आह में
bahut khuub!
ReplyDeletejanaab begum akhtar ki aawaaz main daag dehelvi ki ye ghazal suniye:
ReplyDeleteUzr ane main bhi hai
http://www.youtube.com/watch?v=WJMW0_6Z50M