Saturday, April 12, 2008

क्या यह चोरी है?

ये रहे मोत्ज़ार्ट (सातवीं सिम्फ़नी)






और ये रहे अपने सलिल चौधरी साहब के संगीत में गाते तलत महमूद और लता मंगेशकर फ़िल्म 'छाया' में

10 comments:

  1. गम-ए-जहाँ पे सोगवार न हो
    वादी-ए-वीराँ में बेहिजाब हो
    मौज-ए-मय की दास्ताँ सुना

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  2. सलिल दा को मोत्‍जार्ट की सिम्‍फनीज़ से बहुत प्‍यार था । सलिल दा ने सिम्‍फनी ही नहीं बल्कि सेनाओं के मार्च पास्‍ट, अलग अलग देशों के जनगीतों, लोकगीतों वगैरह से धुनें लेकर उन्‍हें अपनाया । प्रेरणा ली । और उन्‍हें अपने संगीत में रचाया बसाया । निसंदेह ये चोरी नहीं है ।

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  3. बिल्कुल नहीं

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  4. ना भाई ये चोरी कतई नहीं है,पर मोत्ज़र्ट को भी इस बहाने सुनवाने का शुकिया,सलिल साहब को भी सलाम...

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  5. चोरी और किसी चीज़ का रचनात्मक उपयोग दोनों दो बातें है. इसका घालमेल न करें. यह रचनात्मक उपयोग है.

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  6. सिम्‍फनीज़ आम आदमी की समझ से परे--इसलिये अगर प्रेरणा भी है तो सलिल दा का आभार

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  7. युनुस भाई ने बिल्कुल सही लिखा है। सलिल दा महान संगीतकार हैं। सिर्फ सलिल दा ने ही नहीं बर्मन दा (एस. डी. बर्मन) ने भी पश्चिमी संगीत को आधार बना कर अनकों संगीत रचनायें की हैं। जिस प्रकार शायर लोग किसी नामी शायर की एक पंक्ति को मुखड़ा बना कर अपना शे'र लिख लेते हैं उसी प्रकार किसी लोकप्रिय संगीत (चाहे वह पश्चिमी हो या देसी) के सुरों को भी आधार मान कर नई संगीत रचना की जाती है।

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  8. हुज़ूर आप कोई नई सूचना नही दे रहे हैं. दशकों से लोगों को यह मालूम है के यह गीत मोजार्ट की सिम्फनी पर है. सलिल दा ने तो हमेशा ही बताया है कि मोजार्ट की सिम्फनी पर यह गीत है. सिर्फ़ चौकाने की गरज से इस बात को रहस्योदघाटन की तरह पेश करने से क्या फायदा?

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