Friday, October 17, 2008

संस्कृत का एक सेर

(ना समझे वो अनाड़ी है ...)

आन दो बखत:

काकः कृष्णः पिकः कृष्णः
कः भेद पिककाकयो
वसन्त समये प्राप्ते
काकः काकः पिकः पिकः


रिपीट:

(ना समझे वो अनाड़ी है ...)

9 comments:

  1. अनाड़ी ही हैं, समझे नहीं।

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  2. कहा किसके बारे में है यह तो बताइये।

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  4. समझ को समझ लो भाई
    फिर न समझ तो कैसे
    समझ रहे हो तो समझो
    न रहे समझ तो कैसे...

    मेरी पहेली बुझिये फिर आपको अपना उत्तर मिल जायेगा नहीं मिला तो दक्षिण जाने की ज़रूरत नहीं है।

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  5. मैं अनाड़ी ...बिल्कुल न समझ पाया..प्रभु, कुछ ज्ञान दो!!!

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  6. अरे अनाड़ी भट्टाचारी भाइयो,

    इस संस्कीरत सेर के मानी कुछ यों बैठें करें : के कौआ काला, कोयल भी काली, फेर इन दोनों में के फरक, भाया? अरे फरक तो सीधो यो है के ज़रा मौसम-बहार -- माने बसंत रितू -- आन्ने दे, फेर आपने आप ही दूध को दूध और पानी को पानी हो जाए, कौआ कौआ और कोयल कोयल! आई बात समझ में?

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  7. शक्ल नहीं, अभिव्यक्ति व्यक्ति की पहचान है।

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  8. अरुण मिया न समझाते तो अनाड़ी ही रह जाते।

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  9. बहुत सही लिखा है महाराज !

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