
कल शाम छत पर गपशप करते और मूँगफलियों के जरिए धूप का आनंद लेते - लेते मोबाइल से कुछ तस्वीरें ली हैं । आइए साझा करते हैं :
******

*******

*********
**********
ऐसे उतरता है सूरज का तेज
ऐसे घिरता है अँधियारा
ऐसे आती है रात।
ऐसे लौटते हैं विहग बसेरों की ओर
ऐसे ही नभ होता है रक्ताभ
ऐसे ही देखती हैं आँखें सुन्दर दृश्य
फिर भी कम नहीं होता है कुरुपताओं का कारोबार।



सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ बढ़िया छायांकन के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteशानदार चित्र रचना को भिगो गये!!
ReplyDeleteशानदार और मनमोहक।
ReplyDeleteकितना कुछ उकेर देते हैं ये बरबस...सुंदर छवियाँ..सुंदर पंक्तियाँ..!
ReplyDeleteबहुत कमाल के चित्र लिए हैं आपने...ये कारनामा मोबाइल की वजह से हुआ है या इसमें आप द्वारा सेवन की गयी मूंगफलियों का भी कुछ योगदान है? कविता बहुत अच्छी कही आपने...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
ऐसे हीं होता है निर्माण किसी सुन्दर स्वप्न का ।
ReplyDeleteबढ़िया चित्र हैं । धन्यवाद।
ReplyDelete... sundar chitra (photos) !!!!
ReplyDeleteमूंगफली के साथ धनिये और भांग वाला नमक खाया या नहीं? कुछ उस तरह का जैसे अपने DSB के आर्ट्स ब्लाक में मिलता था.
ReplyDeleteइस तरह के नज़ारे देखे अरसा बीत गया. मुझे अनायास ही तारकोवस्की के सिनेमा का आसमान नज़र आने लगा जो धीरे-धीरे पेंटिंग की शक्ल में बदल जाता है.
ReplyDeletevery charming indeed !
ReplyDelete