
कल आपने नज़ीर अकबराबादी की एक कविता पढ़ी थी. आज पढ़िये उनकी एक मशहूर कविता का पहला हिस्सा. विख्यात नाटककार स्वर्गीय हबीब तनवीर ने अपने कालजयी नाटक ’आगरा बाज़ार’ में इस कविता को छत्तीसगढ़ के लोकगायकों की आवाज़ों में इस्तेमाल किया था और भारतीय रंगमंच के लिए एक नई भाषा ईजाद की थी. भोपाल में १९५९ में स्थापित किए गए उनके ’नया थियेटर’ ग्रुप ने बाबा नज़ीर अकबराबादी की रचनाओं पर आधारित ’आगरा बाज़ार’ के मंचन के माध्यम से इस अज़ीमुश्शान शायर की रचनाओं को आम लोगों तक पहुंचाया. दरअसल बाबा का सारा काव्य उसी आम आदमी से मुख़ातिब है जो कई अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते लगातार कविता से वंचित बनाया जाता रहा है. दोनों फ़कीरों को नमन.
आदमीनामा
दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
नेमत जो खा रहा है सो है वह भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी
अब्दाल, क़ुतुबी, ग़ौस, वली आदमी हुए
मुन्किर भी आदमी हुए और कुफ़्र के भरे
क्या-क्या करिश्मे, कश्फ़-ओ-करामात के किए
हत्ता कि अपने ज़ोर-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक से जा मिला है सो है वो भी आदमी
फ़िरओन ने किया था जो दावा ख़ुदाई का
शद्दाद भी बहिश्त बना कर हुआ ख़ुदा
नमरूद भी ख़ुदा ही कहाता था बरमला
यह बात है समझने की आगे कहूं मैं क्या
यां तक जो हो चुका है सो है वो भी आदमी
यां आदमी ही नार है और आदमी ही नूर
यां आदमी ही पास है और आदमी ही दूर
कुल आदमी का हुस्न-ओ-क़बह में है यां ज़हूर
शैतां भी आदमी है जो करता है मक़्र-ओ-जूर
और हादी रहनुमा है सो है वो भी आदमी
मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ
बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ
पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही चुराते हैं उनकी जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
यां आदमी पै जान को वारे है आदमी
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी को उतारे है आदमी
चिल्ला को पुकारे आदमी को है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी
नाचे है आदमी ही बजा तालियों को यार
और आदमी ही डाले है अपने इज़ार उतार
नंगा खड़ा उछलता है होकर जलील-ओ-ख़्वार
सब आदमी ही हंसते हैं देख उसको बार बार
और वो जो मसखरा है सो है वो भी आदमी
चलता है आदमी ही मुसाफ़िर हो, ले के माल
और आदमी ही मारे है फांसी गले में डाल
यां आदमी ही सैद है और आदमी ही जाल
सच्चा ही आदमी ही निकलता है, मेरे लाल
और झूट का भरा है सो है वो भी आदमी
(जारी)
भैय्या..
ReplyDeleteबिना दाम लगाये ही..मुफ्त में ख़रीदे जाते हो....
नज़ीर अकबराबादी को सुनाकर.
बहुत खूबसूरत नज्म है। बहुत मशहूर भी।
ReplyDeleteAshok Bhaii, ek hi aadmi tha wo naam Nazeer tha
ReplyDeleteसच है ''ऐसा ही है आदमी '' ------------- आभार ,,,
ReplyDeleteNazir was ma kind o' poet ! very hardhitting sue' !
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