
प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स ऑफ़ इण्डिया द्वारा भारत पाकिस्तान के बीच बन गई रिश्तों की खाई को पाटने के इरादे से अमन की आशा उन्वान से एक अभियान आहूत किया गया है . इसके तहत कई कल्चरल इवेंट्स आयोजित होंगे जिसमें सूफ़ी संगीत,संगोष्ठियाँ और कविता-शायरी के जल्से शामिल हैं. इसी हवाले से ख्यात शायर गुलज़ार का वक्तव्य भी अभी कल ही शाया हुआ और साथ में अमन की आशा के नाम एक छोटी लेकिन प्यारी सी नज़्म भी. ये नज़्म गुलज़ार में मौजूद एक प्यारे इंसान का पता भी देती है जिसे अपने परिवेश,पडौस और विरसे से बेइंतहा मुहब्बत है.
गुलज़ार साहब को सलाम !
आँखों को वीज़ा नहीं लगता
सपनो की सरहद होती नहीं
बन्द आँखों से रोज़ मैं सरहद पार
चला जाता हूँ मिलने मेहंदी हसन से
सुनता हूँ उनकी आवाज़ को चोट लगी है
और ग़ज़ल ख़ामोश है सामने बैठी हुई
काँप रहे हैं होंठ ग़ज़ल के
फिर भी उन आँखों का लहजा बदला नहीं...
जब कहते हैं
सूख गये फूल किताबों में
यार फ़राज़ भी बिछड़ गये हैं,
शायद मिले वो ख़्वाबों में !
बन्द आँखों से अकसर सरहद पार चला जाता हूँ मैं !
आँखों को वीज़ा नहीं लगता
सपनों की सरहद, कोई नहीं
उम्दा है!
ReplyDeleteBahut khoob! Gulzar saab ka style gazab hai!
ReplyDeletegulzar sahab sanvednaon ke shayar hain. is nasm ke bhitar chhupi bhavnaon ko koi visthapit hua vyakti hi samajh sakta hai..
ReplyDeletegulzar sahab sanvednaon ke shayar hain. is nasm ke bhitar chhupi bhavnaon ko koi visthapit hua vyakti hi samajh sakta hai..
ReplyDeletekitanaa sunadar !!
ReplyDeleteगुलज़ार का घर चांद के रेशों में कहीं उलझा है . . ये इस दुनिया का शायर नहीं !:)
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