कवि-कबाड़ी पत्रकार सुन्दर
चन्द ठाकुर की कविताएं आप यहां पहले भी पढ़ते आए हैं.
आज पेश है उनके नए काव्य संग्रह एक दुनिया है असंख्य से एक मार्मिक कविता:
आज पेश है उनके नए काव्य संग्रह एक दुनिया है असंख्य से एक मार्मिक कविता:
पिता-पुत्र
मेरे पिता
एक फ़ौजी थे
मगर वे मरे
एक शराबी की मौत
उन्होंने
कभी मेरे सिर पर हाथ नहीं रखा
नहीं चूमा
मेरा माथा
बचपन में
गणित पढ़ाते हुए
उन्होंने
गुस्से में मेरी गर्दन ज़रूर दबाई
उनकी
मृत्यु के बारे में बताते हैं
उस रात वे
बैरक में अकेले थे
उन्होंने
छक कर शराब पी थी
पीकर सो गए
नींद में
ही फटा उनका मस्तिष्क
पिता की
तरह मैं भी एक फ़ौजी बना
और एक फ़ौजी
का होना चाहिये कड़ा दिल
मां मेरे
कन्धे पर सिर रख कर रोई
बहन के
आंसू थमने को नहीं आए
मैं नहीं
रोया
इस बात को
जैसे एक जन्म गुज़रा
अब तक तो
पिता का सैनिक रिकॉर्ड भी नष्ट किया जा चुका होगा
मगर मैं
कभी-कभी नींद में अब भी छटपटाता हूं
मरने से
पहले उन्होंने पानी तो नहीं मांगा
मुझे क्यों
लगता है कि उन्हें बचाया जा सकता था.
(चित्र:
साल्वादोर डाली की पेन्टिंग पर्सिस्टैन्स
ऑफ़ मेमोरी)
magar mujhe rona aa gaya...
ReplyDeletekunwar ji,
kitana antar hota hai man - bete,beti aur pita-putra ke riste men !!! Muze pita-putra ka rista hemesha rahasyamay lagata hai.
ReplyDeletekivita marmik hai
kivi ko naye kavya sangrah ke liye badhai
मार्मिक ....."
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
निःशब्द!!!
ReplyDeleteइसे तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
ReplyDeleteI'm a big admirer of Salvador Dali's paintings. Nice to see one here. Do you remember Marcel Duchamp's reproduction of Mona Lisa? There is a certain immediacy in the paintings of the surrealists that captures one's attention. Don't you think so? Otherwise I'm no painting buff.
ReplyDeletegood poem.
मैं तो मानता हूँ की हमें रोना चाहिए इसलिए नहीं कि कविता मे वो सैनिक कैसी मौत मारा बल्कि उस system पर , जो भेज देता है हमारे जवानों को बिना उचित सुबिधा के सिर्फ हाथों में दो बोतल शराब दे ,सीमाओ पर जानलेवा ठण्ड और दुश्मनों से लड़ने....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऐसे ही मौकों पर मन छटपटाता है जब शब्द नहीं रह जाते ......
ReplyDeletesachmuch nihshabd kar dene wali kavita... ek sunder chand thakur hain jo nav bharat times me khel par likhte hain... kahin aap wahi to nahi... anyway.. marmik kavita...
ReplyDeletemarmik !
ReplyDeleteइसे तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
ReplyDeleteJI ISE TO SIRF MEHSOOS KIYA JA SAKTA HAI.....
Stunned!
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