अफ़लातून जी की पोस्ट पढ़ने से पहले मुझे नहीं मालूम था कि आधुनिक हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रकाशन की लाइफ़लाइन बन गए कृतिदेव फ़ॉन्ट्स ब्लॉगवाणी के संचालक श्री मैथिली शरण गुप्त व उनके पुत्र श्री द्वारा रचे गए थे.
कतिपय अवांछित कारणों से वे आहत हुए हैं इस बात का कबाड़ख़ाना की सारी टीम को अफ़सोस है. आशा है वे नई ऊर्जा से अपने महती कार्यों को जारी रखते हुए हिन्दी भाषा के विकास के अपने निःस्वार्थ कार्य में लगे रहेंगे.
अपने लेख को यहां छापने की अनुमति देने हेतु श्री अफ़लातून जी का धन्यवाद!
मैथिलीशरण गुप्त : ब्लॉगवाणी से पहले का योगदान

‘शिक्षा का है, क्यों यह हाल? दूर कलम से गई कुदाल’: श्रम और बुद्धि के कामों के बीच खाई को बढ़ाने वाली हमारी शिक्षा व्यवस्था के दुर्गुण को प्रकट करता है यह नारा। ’ पढ़ा-लिखा ’ होने का घमण्ड और गैर पढ़े-लिखे के गुणों के प्रति आंखे मूँद लेना , निहित है इस शिक्षा व्यवस्था में। ब्लॉगर-दिल-अजीज मैथिली गुप्त ’डिग्री की भिक्षा नहीं जीवन की शिक्षा’ में यक़ीन रखते हैं। इस बुनियादी यक़ीन को मैथिलीजी अमल में लाये हैं। उनके दोनों पुत्र औपचारिक उच्च शिक्षा से मुक्त रह कर अत्यन्त सफल रहे हैं।
बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद मैथिलीजी ने तरुणों को रोजगारपरक तालीम देने के लिए एक वोकेशनल स्कूल चलाया। जिन हूनरों से स्वरोजगार शुरु किए जा सकते हैं उनका प्रशिक्षण उस स्कूल में होता था। इन्टरनेट आने से पहले जब कम्प्यूटर आ चुके थे और डेस्कटॉप प्रकाशन की शुरुआत हो रही थी तब मैथिलीजी ने कृतिदेव और देवलिज़ (Devlys) नाम के फ़ॉन्ट निर्मित किए और उनके पेटेन्ट भी मैथिलीजी के नाम हैं। पिछले दिनों मैथिलीजी और सिरिल के दफ़्तर में जाने का फिर मौका मिला तब चाक्षुष इन तमाम पेटेंटों के प्रमाणपत्र देखे। कृतिदेव भारतीय भाषाओं में ऑफ़लाईन टाइपिंग का सर्वाधिक प्रयुक्त फ़ॉन्ट है। देवनागरी तथा मैथिली से मिलकर देवलिज़ बना। अंग्रेजी के हस्तलेखन की विभिन्न स्टाइलों का कम्प्यूटर के लिए इजाद भी आपने किया। भारतीय भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग के लिए किए गए योगदान को धन कमाने का जरिया न बनाने की मंशा शुरु से रही और ’ब्लॉगवाणी’ की सेवा भी इसीलिए मुफ़्त थी।
मैथिलीजी ’दिनमान’ की पत्रकारिता से प्रभावित रहे हैं। ’ब्लॉगवाणी’ के जरिए हजारों ब्लॉगरों की रचनात्मक अभिव्यक्ति और जनता की पत्रकारिता के प्रसार में सिरिल और मैथिलीजी ने योगदान दिया है जिसे भुलाना मुश्किल है। ’नारद’ के अवसान के समय व्यर्थ के विवाद में न पड़कर एक विकल्प देकर उन्होंने अपनी रचनात्मकता को प्रकट किया था।
हिन्दी चिट्ठेकारी में छिछली मानसिकता के साथ शुरु हुई कुछ गिरोहबन्दियां रचनात्मकता विरोधी रही हैं। उनका पराभव तय है। उतना ही तय है कि इस रचनात्मक परिवार का योगदान हिन्दी ब्लॉगजगत को भविष्य में भी मिलता रहेगा।
हिन्दी चिट्ठेकारी में छिछली मानसिकता के साथ शुरु हुई कुछ गिरोहबन्दियां रचनात्मकता विरोधी रही हैं।
ReplyDeletesahmat
हम ब्लॉगरों की जो भी पहचान बनी है .. उसमें ब्लॉगवाणी का ही बडा योगदान है .. इससे इंकार नहीं किया जा सकता .. नए ब्लोगरों के कल्याण के लिए ब्लॉगवाणी को वापस आना ही चाहिए !!
ReplyDeleteबिलकुल नई जानकारी.....शुक्रिया.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteaapke aalekh se kafi jankari mili ab to bas yahi duaa hai ki blogvani vapas aa jaye.
ReplyDeleteब्लागजगत की इन गिरोहबंदियों के कृ्त्यों का फल ही तो आज सब लोगों को ब्लागवाणी बन्द होने के रूप में भुगतना पड रहा है
ReplyDeleteकिशोर वय ही में था मैं जब 'दिनमान' बंद हुई और इस पत्रिका से मैथिली जी के लगाव का कोई इल्म मुझे नहीं था मगर देखिये 'कुत्ते को घी .......'( ब्लौग--मयखाना) आलेख में ब्लौगवाणी का उल्लेख करते हुए मैंने इस पत्रिका को भी याद किया है ! मैथिली जी ने सच्चे अर्थों में माँ भारती की सेवा की है ! मातृभाषा का कर्ज़ उन्होंने चुकाया है .
ReplyDeleteमैथिली जी के नेक और बड़े काम की जानकारी !
ReplyDeleteउनकी पूरी टीम के प्रति आभार और अनुरोध :
लौट आओ ब्लागवाणी !
इस जानकारी के लिए आपका अत्यंत आभार. मैथिली जी व उनके पुत्रों के इस अप्रतिम योगदान की जानकारी निश्चय ही मुझे भी नही थी. अब समझ आता है उनका यूं आहत होना ...किन्तु मैं तो केवल आशा व अनुरोध ही कर सकता हूँ कि मैथिलीगण इन सब तुच्छ बातों को नज़रअंदाज़ कर ब्लागवाणी को फिर निर्बाध गति से बहने देंगे...क्षमा इन्हें ही शोभती है
ReplyDeleteबात तो कड़वी है,
ReplyDeleteमगर कहीं इसे बन्द कराने में किसी नामचीन्ह का ही हाथ न हो!
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आप अपने पर न ले जाएँ!
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यह बात मुझ पर भी लागू हो सकती है!
आदरणीय मैथिली शरण गुप्त जी एवं
ReplyDeleteप्रियवर सिरिल से निवेदन है कि लाखों पाठकों की चहेती "ब्लॉगवाणी" को बन्द न करें!
हिन्दी का उत्थान इसी जज्बे से किया जा रहा है। माननीय मैथिली जी और उनके सुपुत्र के द्वारा किए गए समस्त कार्य बेमिसाल हैं।
ReplyDeleteब्लॉगवाणी से लौट आने का एक विनम्र निवेदन मैंने भी > अपनी एक पोस्ट पर किया है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
वक़्त की मांग है उन तत्वों की कड़ी मज़म्मत की जिन्होंने ये नौबत ला दी कि हिंदी के निस्स्वार्थ सेवकों को भी मजबूर होकर हाथ खींचना पड़ा ! ऐसे नराधम , पातकी और कुत्सित षड्यंत्रकारी गुनाह-ऐ-अज़ीम की खौफनाक सज़ाओं के हक़दार हैं .
ReplyDeleteमैथिलि जी और सिरिल जी के इन उपलब्धियों की जानकारी मुझे कुछ उनसे और कुछ उनके चाहने वालों से मिली थी..
ReplyDeleteफिलहाल तो मैं यही कहूँगा कि अब मत आना ब्लॉगवाणी, तुम्हारे जाने से कम से कम हिंदी ब्लॉगजगत एक-एक कदम खुद चलना सीख रहा है..