
बातचीत
वास्को पोपा (अनुवाद: सोमदत्त)
पाल-पोस कर
क्यों त्याग देता है तटों को
क्यों ओ मेरे रक्त
भला क्यों भेजूं मैं तुझे
सूर्य
तू सोचता है चुम्मी लेता है सूर्य
तुझे मालूम नहीं कुछ भी
मेरी दफ़्न नदी
तू तक़लीफ़ पहुंचा रही है मुझे
समेट के ले जाते हुए मेरी लाठियां और पत्थर
मेरी भंवर, क्या कसक रहा है तुझे
तू नष्ट कर देगी मेरा निस्सीम चक्र
जिसका बनाना अब तक ख़त्म नहीं किया अपन ने
मेरे लाल अजदहे
बस आगे बह
ताकि उखड़ें न पांव साथ-साथ
बह जितनी दूर तक बह सकता है तू ओ मेरे रक्त
bahut achcha. aur ?
ReplyDeleteयह रक्त, जब तक हो सके, धमनियों में बहता रहे।
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