अकेला तू तभी
वीरेन डंगवाल
तू तभी अकेला है जो बात न ये समझे
हैं लोग करोड़ों इसी देश में तुझ जैसे
धरती मिट्टी का ढेर नहीं है अबे गधे
दाना पानी देती है वह कल्याणी है
गुटरूं-गूं कबूतरों की, नारियल का जल
पहिये की गति, कपास के हृदय का पानी है
तू यही सोचना शुरू करे तो बात बने
पीड़ा की कठिन अर्गला को तोड़ें कैसे!
1 comment:
बात हमारी समझ मे आ गई है, गधो का पता नही, उनसे आप खुद पूछले :)
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