Saturday, April 30, 2011

कि हम दोबारा मिल सकेंगे किन्हीं दूसरे संसारों में


माया एन्जेलू की एक और कविता

अस्वीकार

प्यारे,
किन दूसरी ज़िन्दगानियों और संसारों में
मैंने जाना है तुम्हारे होंठों को
तुम्हारे हाथ
तुम्हरी बहादुर
धृष्टतापूर्ण हंसी.
वे मिठासभरे प्राचुर्य
जिन्हें कितना लाड़ करती हूं मैं.
अभी क्या निश्चित है
कि हम दोबारा मिल सकेंगे.
किन्हीं दूसरे संसारों में
किसी बेतारीख़ मुस्तकबिल में.
मैं अपनी देह की जल्दबाज़ी को नज़र अन्दाज़ करती हूं.
एक और मीठी मुलाकात के
बिना किसी वायदे के
मैं अहसान नहीं करूंगी मरने का.

मैं हलकोरें मारता एक चौड़ा काला समुद्र हूं,

माया एन्जेलू की कविताओं की अगली कड़ी


मैं तब भी उठूंगी

तुम चाहो तो दर्ज़ कर सकते हो मुझे
अपने कड़वे मुड़ेतुड़े झूठों से
तुम रौंद सकते हो हरेक धूल में मुझे
लेकिन तो भी मैं उठूंगी मिट्टी में से

क्या मेरा ढीठपन तुम्हें परेशान करता है?
इतने उदास क्यों दिखते हो तुम?
क्योंकि मैं इस तरह चलती हूं कि
मेरे ड्राइंगरुम में तेल के कुंए उलीचे जा रहे हैं.

ठिक चन्द्रमाओं और सूर्यों की तरह
किसी ज्वार की निश्चितता के साथ
ठीक ऊंची बल खाती उम्मीदों की तरह
मै तब भी उठूंगी

क्या तुम मुझे टूटा हुआ देखना चाहते थे?
झुका हुआ सिर और ढुलकी आंखें?
आंसुओं की तरह गिरे हुर मेरे कन्धे
मेरे आर्तनाद से कमज़ोर

क्या मेरा अहंकार तुम्हें पसन्द नहीं आता?
क्या तुम्हें भयावह नहीं लगता
जब मैं यूं हंसती हूं जैसे
मेरे घर के पिछवाड़े सोने की खदानेण खोदी जा रही हों.

तुम अपने शब्दों से मुझे गोली मार सकते हो
तुम काट सकते हो मुझे अपनी निगाहों से
तुम अपनी नफ़रत से मेरी हत्या कर सकते हो
लेकिन तब भी, मैं उठूंगी हवा की मानिन्द

क्या मेरा उत्तेजक रूप तुम्हें तंग करता है?
क्या यह तुम्हें अचरज में नहीं डालता
कि मैं यूं नाचती हूं’जैसे मेरी जांघों के जोड़ पर हीरे लगे हुए हों?

इतिहास की झोपड़ियों की शर्म से उठती हूं मैं
दर्द में जड़े बीते समय से उठती हूं मैं
मैं हलकोरें मारता एक चौड़ा काला समुद्र हूं,
फूलती हुई मैं सम्हालती हूं ज्वार को
आतंक की रातों और भय को पीछे छोड़कर मैं उठती हूं
एक भोर के प्रस्फुटन में जो आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट है
मैं उठती हूं
उन तोहफ़ों के साथ जो मेरे पूर्वजों ने मुझे दिए
मैं ग़ुलाम का सपना और उसकी उम्मीद हूं.
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं.

अफ़्रीका -३


माली संगीत की त्रयी का आख़िरी हिस्सा. मेरा अग्रह है आप इन तीनों को एक एक कर सुनें. कूछ नया अहसास होगा. बाबुषा कोहली को इस पोस्ट के लिए भी धन्यवाद.

अफ़्रीका सीरीज़ पर दूसरी प्रस्तुति




यह पेशकश भी हमें बाबुषा कोहली की बदौलत मिली है. सो एक बार पुनः उनका शुक्रिया. गायक माली देश के हबीब कोएटे ही हैं

अफ़्रीका


एक अफ़्रीकी पेशकश यह पोस्ट हमारी नियमित पाठिका बाबुषा कोहली की वजह से सम्भव हो पा रही है. यह संगीत उन्हीं का भेजा है. सो उनका धन्यवाद.

माली देश के हबीब कोएटे (जन्म २७ जनवरी १९५८)गायक हैं गीतकार हैं और गिटार बजाते हैं

उनके बारे में अधिक जानकारी आप इस वैबसाइट से प्राप्त कर सकते हैं:

http://en.wikipedia.org/wiki/Habib_Koit%C3%A9

फिर वहीँ लौट के जाना होगा




रात के दो बजे बज रहे हैं और मैं उत्तराखंड परिवहन निगम की बस में आधा सोया और आधा जागा हुआ हूँ | बस खतौली पर रूकती है चाय-पानी के लिए | बाहर उतरकर देखता हूँ, अँधेरा और अपरिचित लगने लगता है | एक छोटे ढाबे में जाकर बैठ जाता हूँ | कांच के गिलास में चाय को डूबते हुए देखता हूँ | ऐसे वक़्त में अकेलापन बेहद डरावना लगता है | ढाबे में बज रहा संगीत मेरी तन्द्रा को भंग करने की जहमत नहीं उठाता | जगजीत सिंह को सड़क पे पहली बार सुन रहा हूँ | यकीन हो चला कि ये आवाज कहीं भी सुनो दिल में जख्म कर ही देगी | गुलज़ार कहते हैं कि वो अपनी नर्म आवाज के फ़ाहों से ज़ख्म को सहलाते हैं, लेकिन उनकी बात का विश्वास नहीं होता |


'सिर्फ इक सफ़्हा पलटकर उसने|
सारी बातों की सफाई दी है |'

अतीत आदमी को हमेशा खूबसूरत लगता है, एक पलायन | दो साल- तीन साल कितने भी साल पीछे खिसका लो तुम अपनी जिंदगी, वो आज से खूबसूरत ही होगी | यही अहसास मुझे जगजीत सिंह को सुनते हुए होता है | आज बहुत सारे लोगों को सुना है, बहुतों को सुनना बाकी है | कबाडखाना, सुख़नसाज़, रेडियोवाणी, आवाज, इरफ़ान के ब्लॉग पर सुनने के बाद पता चला कि संगीत का परिदृश्य बहुत बड़ा है, बहुत जयादा | इतना कि जगजीत सिंह महज़ एक मामूली नाम हो | इतना मामूली कि लोग सुनते भी न हों | जगजीत सिंह कहीं खो गए | उनका संग्रह कंप्यूटर स्पेस की भेंट चढ़ गया | दोस्तों के बीच रुआब बनाने को नए नाम मिल गए | लेकिन आज अचानक सुनकर सभी कुछ जैसे फिर से सचेत हो गया | मुझे महसूस होता है कि दर्द को शक्ल मिलती है जब मैं जगजीत सिंह सुनता हूँ |



Friday, April 29, 2011

आज केवल ट्रेसी चैपमैन 5 - द प्रॉमिस

आज केवल ट्रेसी चैपमैन



If you wait for me then I'll come for you
Although I've traveled far
I always hold a place for you in my heart
If you think of me If you miss me once in awhile
Then I'll return to you
I'll return and fill that space in your heart
Remembering
Your touch
Your kiss
Your warm embrace
I'll find my way back to you
If you'll be waiting
If you dream of me like I dream of you
In a place that's warm and dark
In a place where I can feel the beating of your heart

Remembering
Your touch
Your kiss
Your warm embrace
I'll find my way back to you
If you'll be waiting
I've longed for you and I have desired
To see your face your smile
To be with you wherever you are

Remembering
Your touch
Your kiss
Your warm embrace
I'll find my way back to you
If you'll be waiting
I've longed for you and I have desired
To see your face, your smile
To be with you wherever you are

Remembering
Your touch
Your kiss
Your warm embrace
I'll find my way back to you
Please say you'll be waiting

Together again
It would feel so good to be
In your arms
Where all my journeys end
If you can make a promise If it's one that you can keep, I vow to come for you
If you wait for me and say you'll hold

यह मेरी लिस्ट में नम्बर एक था, है और रहेगा

आज केवल ट्रेसी चैपमैन 4 - एट दिस पौइंट इन माई लाइफ

आज केवल ट्रेसी चैपमैन





Done so many things wrong I don't know if I can do right
Oh I, Oh I've
Done so many things wrong I don't know if I can do right

At this point in my life
I've done so many things wrong I don't know if I can do right
If you put your trust in me I hope I won't let you down
If you give me a chance I'll try

You see it's been a hard road the road I'm traveling on
And if I take your hand I might lead you down the path to ruin
I've had a hard life I'm just saying it so you'll understand
That right now, right now, I'm doing the best I can
At this point in my life

At this point in my life
Although I've mostly walked in the shadows
I'm still searching for the light
Won't you put your faith in me
We both know that's what matters
If you give me a chance I'll try

You see I've been climbing stairs but mostly stumbling down
I've been reaching high always losing ground
You see I've been reaching high but always losing ground
You see I've conquered hills but I still have mountains to climb
And right now right now I'm doing the best I can
At this point in my life

Before we take a step
Before we walk down that path
Before I make any promises
Before you have regrets
Before we talk commitment
Let me tell you of my past
All I've seen and all I've done
The things I'd like to forget
At this point in my life

At this point in my life
I'd like to live as if only love mattered
As if redemption was in sight
As if the search to live honestly
Is all that anyone needs
No matter if you find it

You see when I've touched the sky
The earth's gravity has pulled me down
But now I've reconciled that in this world
Birds and angels get the wings to fly
If you can believe in this heart of mine
If you can give it a try
Then I'll reach inside and find and give you
All the sweetness that I have
At this point in my life

At this point in my life

आज केवल ट्रेसी चैपमैन 3 - ओवर इन लव

आज केवल ट्रेसी चैपमैन





बस एक उदास धुन जो बताती है सब ख़त्म हुआ, रुखसत की जाए.

आज केवल ट्रेसी चैपमैन 2 - आई एम यूअर्स

आज केवल ट्रेसी चैपमैन




When all my hopes and dreams
Have been betrayed
I stand before you
My hands are empty

I am yours
If you are mine

When I fall and stumble
Flat on my face
When I'm shamed and humbled
In disgrace

I am yours
If you are mine

When voices call me
To question my faith
When misperception
Taints my love with hate

I am yours
If you are mine

When time decides
It won't stop for me
When the hawks and vultures
Are circling

I am yours
If you are mine

आज केवल ट्रेसी चैपमैन 1 - द ब्रिजेज़ वी बर्न कम बैक वन डे टू हौंट यू

आज केवल ट्रेसी चैपमैन





All the bridges that you burn
Come back one day to haunt you
One day you'll find you're walking
Lonely


Baby I
Never meant to hurt you
Sometimes the best intentions
Still don't make things right


But all my ghosts they find me
Like my past they think they own me
In dreams and dark corners they surround me
Till I cry I cry


Let me take this time to set the record straight
Let me take this time to take it all back
Let me take this time to tell you how I felt
Let me take this time to try and make it right


But you can
Walk away
Run alone
Spend all your time
Thinking about the way things used to be
If love feels right
You work it out
You don't give it up
Baby


Anybody tell you that
Anybody tell you that
Anybody tell you that


You should take some time maybe sleep on it tonight
You should take some time baby heed the words I said
You should take some time think about your life
You should take some time before you throw it all away


I ain't got the time
To sit here and wait around
But I got the time
If you say I'm what you want

\

Thursday, April 28, 2011

मैटर्स ऑफ़ द हार्ट


एक और गाना मेरी प्रिय गायिका ट्रेसी चैपमैन का



बोल ये रहे -

I lose my head
From time to time
I make a fool of myself
In matters of the heart
We should have been holding each other
Instead we talked
I make a fool of myself
In matters of the heart
But I asked before
Your reply was kind and polite
One wants more
When one's denied
I make a fool of myself
In matters of the heart
I won't call it love
But it feels good to have passion in my life
If there's a battle
I hope my head always defers to my heart
In matters of the heart
I guess I'm crazy to think
I can give you what you don't want
I make a fool of myself
In matters of the heart
I've made myself sick
I can't think of anything else
I can't sleep at night
I make a fool of myself
In matters of the heart
I wish that I had the power
To make these feelings stop
I lose all self control
In matters of the heart
I can't believe
It's so hard to find someone
To give affection to
And from whom you can receive
I guess it's just the draw of the cards
( From: http://www.elyrics.net/read/t/tracy-chapman-lyrics/matters-of-the-heart-lyrics.html )
In matters of the heart
You caught me off guard
Somehow you reached me
Where I thought I had nothing left inside
I've learned a lesson I've been edified
In matters of the heart
I've spent my nights
Where the sleeping dogs lie
Not by your side
It feels so lonely
Once again I've left too much to chance
In matters of the heart
Here I sit
I'm feeling sorry for myself
It's quite a sight
But I have you to thank
For reminding me
We're all alone in this world
And in matters of the heart
I'm already missing you
Although we won't say good-byes
Until tomorrow afternoon
Maybe when and if I see you again
We'll see eye to eye
In matters of the heart
I have no harsh words for you
I have no tears to cry
If the moon were full
I'd be howling inside
It only hurts
In matters of the heart
If today were my birthday
I'd be reborn
As Bronte's bird a bird that could fly
And all accounts would be settled
In matters of the heart
Matters of the heart

काम करती है औरत

काम करती है औरत

माया एन्जेलू

मुझे बच्चों की देखभाल करनी है
कपड़ों की मरम्मत करनी है
फ़र्श पर पोंछा लगाना है
खाने की शॉपिंग करनी है
तब चिकन फ़्राई करना है
शिशु को सुखाना है
सब को खाना खिलाना है
बगीचे से झाड़ झंखाड़ उखाड़ने हैं
कमीज़ों में इस्तरी करना है
बच्चों को कपड़े पहनाने हैं
कैन को काटा जाना है
मुझे इस झोपड़ी की सफ़ाई करनी है
तब बीमारों को देखना है
और कपास तोड़कर लानी है.

मुझ पर चमको, धूप
बारिश, बरसो मुझ पर
हौले से गिरो ओस की बूंदो
और फ़िर से ठण्डक पहुंचाओ मेरी बरौनियों को

तूफ़ान, मुझे यहां से कहीं उड़ा ले चलो
अपनी सबसे ख़ौफ़नाक हवा के साथ
तैरने दो मुझे आसमान के आरपार
जब तक कि मैं आराम कर सकूं

धीरे गिरो, बर्फ़ के फ़ाहो
मुझे ढंक दो सफ़ेदी से
ठण्डे बर्फ़ीले चुम्बन
और आज की रात आराम करने दो मुझे

सूरज, बारिश, ढलवां आसमान
पहाड़, समुद्रो, पत्तियो, पत्थरो,
तारों की रोशनी, चांद की आभा
बस तुम्हीं हो जिन्हें अपना कह सकती हूं मैं.

माया एन्जेलू की इस कविता को पढ़ते हुए मुझे बेसाख़्ता अपनी सबसे प्रिय गायिका ट्रेसी चैपमैन का गाया गीत वूमैन्स वर्क लगातार याद आता गया. उसे भी यहां लगाने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूं:


ट्रेसी चैपमैन का गीत

सामाजिक चेतना और मानवीय सरोकारों के गीत गाने वाली ट्रेसी चैपमैन आज के लोकप्रिय अंग्रेजी गायक-संगीतकारों की भीड़ में अलग खडी नज़र आती हैं। Fast Car (1988) से अपना पेशेवर कैरियर शुरू करने वाली ट्रेसी को एकाधिक बार ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। उन की मखमली आवाज़ की ईमानदारी, उनके गीतों के संजीदा बोल और ताम झाम से रहित उनका संगीत फिलहाल तो अद्वितीय है। प्रस्तुत है १९९२ में गाया उनका गीत 'Woman's Work' । बहुत छोटा सा गीत है लेकिन सारी दुनिया की स्त्रियों के दुःख दर्द को बयान करता है। कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि इसे सुन कर आप को अपने घर-पड़ोस-गाँव की माएं, बुआएं, दादियाँ और अन्य स्त्रियाँ याद आने लगें।



गीत के बोल हैं:

Early in the morning she rises
The woman's work is never done
And it's not because she doesn't try
She's fighting a battle with no one on her side

She rises up in the morning
And she works 'til way past dusk
The woman better slow down
Or she's gonna come down hard

Early in the morning she rises
The woman's work is never done

गीत यहां से डाउनलोड करें -
http://www.divshare.com/download/14693432-1d2

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - ११

(पिछली किस्त से जारी)

"कुछ नहीं मामी."

"तुम्हारी चालें में अच्छी तरह समझती हूं. मुझे उल्लू बनाने की कोशिश मत करना. खबरदार कभॊ पेद्रो के नज़दीक फटकने की भी कोशिश की तो."

मामा एलेना की धमकी के कारण वह जानबूझकर पेद्रो से दूर रही. लेकिन उसके चेहरे से खुशी के भावों को हटा पाना असम्भव था. अचानक इस शादी का उसके लिए एक विशेष महत्व हो गया.. अब पेद्रो और रोसौअरा को एक मेज़ से दूसरी मेज़ पर जाकर मेहमानों से बात करते, वाल्ज़ करते या केक काटते देखकर तीता पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. अब वह जानती थी कि पेदो उस से प्यार करता था. दावत खत्म होने की प्रतीक्षा उसे मारे डाल रही थी क्योंकि वह भागकर नाचा को सब कुछ बताना चाहती थी. कारेन्यो की ’एटीकेट मैन्युएल’ के हिसाब से वह तब तक मेज़ से उठ ही नहीं सकती थी. सो वह आसमान को देखति रही और क्र्क खाती रही. वह अपने आप में इतनी मशगूल थी कि उसने देखा नहीं - उसके इर्द-गोर्द अजीब सी बात हो रही थी. केक का टुकड़ा खाते ही हर मेहमान का दिल इच्छाओं से भर आया. यहां तक कि पेद्रो जो हमेशा दुरुस्त रहता था, अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया. मामा एलेना जिन्होंने अपने पति की मौत पर एक आंसू तक नहीं बहाया था, चुपके-चुपके सुबक रही थीं. लेकिन यह रुदन एक अजीब तरह के नशे का पहला लक्षण था - दर्द और कुण्ठा का अजीब तीखा नशा - जल्दी ही तमाम मेहमान बगीचे में, बालकनी में और बथरूम में बिखरे पड़े थे और अपने भूले-बिसरे प्यार को याद कर रहे थे.हर कोई. कई लोग समय पर बाथरूम नहीं पहुंच पाए और वे भी बालकनी में कई और लोगों के साथ खड़े हो गए, जहां सामूहिक रूप से उल्टियां की जा रही थीं. केवल एक ही व्यक्ति इस से बच पाया. तीता पर केक का कोई असर नहीं हुआ. अपना केक खत्म करते ही वह दावत से उठकर चली गई- नाचा को बताने के लिए कि पेद्रो केवल उसी से प्यार करता है. नाचा के चेहरे पर आने वाली खुशी की कल्पना करती हुई तीता ने अगल-बगल हो रही गतिविधियों पर ध्यान ही नहीं दिया. उस के हर कदम के साथ हालत बिगड़ती जा रही थी,

उल्टी करने की कोशिश करती हुई रोसौरा अपनी जगह से उठ खड़ी हुई.

उसने उबकाई को काबू पाने का प्रयास किया पर्वह काफ़ी मुश्किल था.. उसको अब एक ही चिन्ता थी - अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की गन्दगी से अपनी शादी की पोशाक को बचा पाना, पर अचानक वह फिसली और सर से पांव तक उलती में सन गई. सड़ांध की नदी में वह अवश कई गज बहती गई और पेद्रो की भयाक्रान्त आंखों के सामने ज्वालामुखी की तरह उसके मुंह से बड़ी मात्रा में उल्टी निकलने लगी.रोसौरा ने खट्टे मन से शिकायतें कीं इ उसकी शादी तबाह हो गई और दुनिया की कोई भी ताकत उसे यह मानने को यैयार नहीं कर सकती थी कि तीता ने जान बूझ कर केक में कोई चीज़ नहीं मिलाई थी.

रात भर रोसौरा कराहती रही और उस चादर का ख्याल भी उसे नहीं आया जिसे काढ़ने में इतना समय लगा था. पेद्रो ने तुरन्त कहा कि वे अपनी सुहागरात फिर कही मना लेंगे. लेकिन उनकी सुहागरात महीनों तक नहीं हो सकी जब एक बार हिम्मत कर के रोसौरा ने उस से कहा कि वह बिल्कुल ठीक हो चुकी है. उस रत, जब पेद्रो को आभास हुआ कि वह इस वैवाहिक ज़िम्म्जेदारि से नहीं बच सकेगा, वह उस बिस्तर पर झुका जिस पर शादी की चादर फैली हुई थी और उसने प्रार्थना की -

"ईश्वर, यह किसी वासना के लिए नहीं बल्कि एक शिशु के लिए होगा जो तुम्हारा सेवक होगा."

तीता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस दुर्भाग्यपूर्ण विवाह को पूर्ण होने में इताअ समय लगा होगा पर उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था.

तीता की चिन्ता थी अपनी जान बचाने की. शादी की रात मामा एलेना ने उसे इतना पीटा जितना वह कभी नहीं पिटी थी. अपने ज़ख़्मों के भर जाने की प्रतीक्षा में वह दो हफ़्ते बिस्तर पर लेटी रही थी. मामा एलेना ने वहशियों की तरह उसे इसलिए पीटा कि उन्हें यकीन था तीता ने नाचा के साथ मिलकर केक में उल्टी करने वाली दवाई मिलाई थी. तीता उन्हें यह विश्वास नहीं दिला पाई कि उसने केवल एक अतिरिक्त चीज़ केक में मिलाई थी - वे आम्सू जो केक बनाते समय उसकी आंखों से निकले थे, इसका सबूत नाचा भी नहीं दे पाई - शादी की रात जब तीता नाचा को ढूंढ़ने निकली थी उसने नाचा को मरा हुआ पाया. नाचा की आंखें खुली हुई थीं, दवा वाली पत्तियां उसके माथे पर धरी हुई थीं और उसके हाथों ने उसके मंगेतर की तस्वीर को कसकर जकड़ा हुआ था.

(अध्याय दो समाप्त - आगे से अध्याय तीन ग़ुलाब की पंखुड़ियों के सॉस में पकी बटेर)

असाधारण स्त्री

माया एन्जेलू की कविताओं की सीरीज़ में आज उनकी दूसरी कविता­


असाधारण स्त्री

ख़ूबसूरत स्त्रियां हैरत करती हैं कहां है मेरा रहस्य.
न तो मैं आकर्षक हूं न मेरी देहयष्टि किसी फ़ैशन मॉडल जैसी
लेकिन जब मैं उन्हें बताना शुरू करती हूं
वे सोचती हैं मैं झूठ बोल रही हूं.
मैं कहती हूं
कि यह मेरी बांहों की पहुंच में है
मेरे नितम्बों के पसराव में
मेरे मुड़े हुए होंठों में
कि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

मैं एक कमरे में प्रवेश करती हूं
ऐसे अन्दाज़ से जैसे आप चाहें
एक आदमी की तरफ़
जिसके गिर्द लोग होते हैं
या घुटनों के बल उसके सामने.
तब वे मेरे चारों तरफ़ इकठ्ठा हो जाते हैं
जैसे मधुमक्खियों का कोई छत्ता होऊं मैं.
मैं कहती हूं
यह मेरी आंखों की लपट में
मेरी कमर की लचक में
और मेरे पैरों की प्रसन्नता में है
कि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.


ख़ुद आदमियों को अचरज होता है
उन्हें क्या दीखता है मुझमें
वे इतनी मशक्कत करते हैं
पर वे नहीं छू सकते
मेरे भीतरी रहस्य को.
जब मैं दिखाने की कोशिश करती हूं
वे कहते हैं वे अब भी मुझे नहीं देख सकते
मैं कहती हूं
यह मेरी पीठ की चाप में है
मेरी मुस्कान के सूर्य में है
मेरे स्तनों की सैर में है
मेरी अदा की गरिमा में है.
मैं एक स्त्री हूं.

असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

अब तुम समझ रहे हो
क्यों मेरा सिर झुका हुआ नहीं है
मैं चिल्लाती नहीं उछल कूद नहीं मचाती
न मुझे बहुत ज़ोर से बोलना होता है.
जब आप मुझे गुज़रता हुआ देखें
इसने आपको भर देना चाहिए गर्व से.
मैं कहती हूं
यह मेरी एड़ियों की खटखट में है
मेरे केशों के मुड़ाव में है
मेरी हथेली में है
परवाह किए जाने की मेरी ज़रूरत में है
क्योंकि मैं एक स्त्री हूं
असाधारण तरीके से
एक असाधारण स्त्री
वह हूं मैं.

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - १०

(पिछली किस्त से जारी)


"क्या तुमने तीता को देखा? बेचारी. उसकी बहन उसके प्रेमी से शादी करने जा रही है. एक दिन मैंने उन दोनों को बाज़ार में एक दूसरे का हाथ थामे हुए देखा था. वे बहुत ख़ुश लग रहे थे."

"क्या बात करती हो? पाकीता का कहना है कि एक दिन चर्च में उसने पेद्रो को तीता को प्रेमपत्र देते हुए देखा था - ख़ुशबू वगैरह के साथ."

"लोग कह रहे हैं कि वे एक ही मकान में रहने वाले है. अगर मैं मामा एलेना की जगह होती तो ऐसा हरगिज़ न होने देती."

"पता नहीं कैसे वो ये सब सहन कर ले रही हैं, कितनी बातें हो रही हैं पूरे इलाके में."

तीता ने इन बातों की ज़रा भी परवाह नहीं की. वह पराजित की भूमिका निभाने के लिए नहीं बनी थी, वह विजेता की मुद्रा ओढ़ेगी. एक महान अभिनेत्री की तरह उसमे अपना हिस्सा बख़ूबी निभाया, उन ची़ओं के बारे में सोचते हुए जिनका शादी, पादरी, चर्च, अंगूठी वगैरह से कोई लेना-देना नहीं था.

उसे याद आया एक दिन जब वह नौ साल की थी उसने लड़कों के साथ खेलने का फ़ैसला किया था. हालांकि उसे लड़कों के साथ खेलने की इजाज़त नहीं थी पर वह अपनी बहनों के खेलों से ऊब चुकी थी. गाम्व के कुछ लड़कों के साथ भागकर वह रियो ग्रान्दे नदी तक पहुंची. वहां तेज़ तैरने की बाज़ी लग गई. इसमें वह जीत गई थी - उसे याद आया उसे अपने ऊपर कितना गर्व हुआ था उस दिन.

एक और शान्त रविवार को उसने एक अन्य जीत हासिल की थी . वह चौदह की थी और अपनी बहनों के साथ घोड़ागाड़ी की सवारी पर निकली थी, जब एक शरारती लड़के ने पटाख़े चला दिए. घोड़े गांव की दिशा से बाहर भागते चले गए.

तीता ने कोचवान को एक तरफ़ धकेला और अकेले उन घोड़ों कॊ काबू किया. जब तक गांव के चार घुड़सवार उनकी मद को पहुंचते सब ठीक हो चुका था - उन्हें भयंकर आश्चर्य हुआ कि तीता ने अकेले ...

गांव वालों ने क्या ज़बरदस्त स्वागत किया था उसका.

तीता ने अपना ध्यान ऐसी ही स्मृतियों की तरफ़ लगाए रखा ताकि उसके चेहरे पर सन्तुष्ट मुस्कराहट बनी रह सके. लेकिन अब शादी के चुम्बन का समय था और रोसौरा को बधाई देनी थी. पेद्रो जो रोसौरा के साथ खड़ा था, उस से बोला -

"और मैं, क्या मुझे बधाई नहीं दोगी?"

"क्यों नहीं! मुझे उम्मीद है तुम प्रसन्न रहोगे."

पेद्रो इस समय उसके काफ़ी नज़दीक खड़ा था -जितना परम्परा अनुमति देती थी उस से अधिक. इस मौके का फ़ायदा उठाकर पेद्रो उसके कान में फुसफुसाया -

"मुझे उम्मीद है मैं प्रसन्न रहूंगा क्योंकि इस शादी के माध्यम से मैंने वह पा लिया है जो मैं चाहता था - तुम्हारे नज़दीक रह पाने का अवसर क्योंकि मैं केवल तुम्हें सच्चा प्यार करता हूं."

ताज़ी हवा की तरह थे ये शब्द तीता के लिए. जो आग बिल्कुल बुझ चुकी थी वह दुबारा जल गई. पिछले कुछ महीनों तक उसे अपनी भावनाओं को लगातार छिपाना पड़ा था पर अब उसके चेहरे पर खुशी और सन्तोष के भाव स्पष्ट थे. उसकी आन्तरिक ख़ुशी जो मर चुकी थी, पेद्रो की गरम सांस से पुनर्जीवित हो उठी, जो उसकी गरदन पर पड़ रही थी. उसके गरम हाथों का उसकी पीठ पर स्पर्श, उसका सीना तीता की छातियों से सटा हुआ ... वह हमेशा पेद्रो की बांहों में रह सकति थी पर मामा एलेना की तीखी निगाह देखकर वह एकदम से अलग हो गई. मामा एलेना तीता के पास आईं -

"क्या कहा पेद्रो ने तुमसे?"

(जारी - अगली किस्त में अध्याय दो का समापन)

Wednesday, April 27, 2011

मैं जानती हूं क्यों गाती है पिंजरे में बन्द चिड़िया


४ अप्रैल १९२८ को सेन्ट लुईस, मिसौरी में जन्मी थीं माया एन्जेलू. लेखिका, कवयित्री, इतिहासकार. गीतकार, नाटककार, नृत्यांगना, मंच व फ़िल्म निर्देशिका, अभिनेत्री और जनाधिकार कार्यकत्री हैं. उन्हें सबसे ज़्यादा ख्याति अपनी आत्मकथात्मक पुस्तकों "ऑल गॉड्स चिल्ड्रन नीड शूज़", "द हार्ट ऑफ़ अ वूमन", "सिन्गिंग एंड स्विंगिंग एंड गैटिंग मैरी लाइक क्रिसमस", "गैदर टुगैदर इन माई नेम" और "आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स" सि मिली. "आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स" को राष्ट्रीय पुरुस्कार के लिए नामांकित किया गया. उनके कई काव्य संग्रह भी हैं जिनमें से एक को पुलित्ज़र पुरुस्कार के लिए नामित किया गया था.

१९५९ में डॉ. मार्टिन लूथर किंग के आग्रह पर उन्होंने सदर्न क्रिस्चियन लीडरशिप कॉन्फ़्रेन्स का उत्तरी निदेशक बनना स्वीकार किया. १९६१ से १९६२ तक वे मिश्र के काहिरा में द अरब ऑब्ज़र्वर की सह सम्पादिका बनीं, जो उस समय समूचे मध्य पूर्व में इकलौता अंग्रेज़ी साप्ताहिक था. १९६४ से १९६६ तक वे अकरा, घाना में अफ़्रीकन रिव्यू की फ़ीचर सम्पादिका रहीं. १९७४ में वे वापस अमेरिका लौटीं जहां जेरार्ड फ़ोर्ड ने उन्हें द्विशताब्दी कमीशन में नामित किया और उसके बाद जिमी कार्टर ने उन्हें कमीशन फ़ॉर इन्टरनेशनल वूमन ऑफ़ द ईयर में जोड़ा. विन्स्टन सालेम विश्वविद्यालय, नॉर्थ कैरोलाइना में उन्होंने प्रोफ़ेसर ऑफ़ अमेरिकन स्टडीज़ का आजीवन पद सम्हाला.

हॉलीवुड की पहली अश्वेत महिला प्रोड्यूसर होने के नाते एन्जेलू ने खासा नाम कमाया है. लेकिन वर्तमान संसार उन्हें उनके प्रतिबद्ध काव्यकर्म के लिए जानता है और सलाम करता है.

आज पढ़िये उनकी एक कविता. बाकी कल से लगातार.


मैं जानती हूं क्यों गाती है पिंजरे में बन्द चिड़िया

एक आज़ाद चिड़िया फुदकती है
हवा की पीठ पर और तैरती जाती है धारा के साथ
जब तक कि धारा ख़त्म नहीं हो जाती. तब वह डुबोती है अपने पंखों को
सूरज की नारंगी किरणों में
और आसमान को अपना बताने की हिम्मत करती है.

लेकिन एक चिड़िया जो अकड़ती हुई चलती है अपने संकरे पिंजरे में
बमुश्किल देख पाती है गुस्से की सलाखों के पार
उसके पंख छांट दिए गए हैं और पांव बंधे हैं
सो वह गाने के लिए खोलती है अपना गला.

पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है एक भयावह थरथराहट के साथ
उन चीज़ों के बारे में जो अजानी हैं लेकिन अब भी जिनकी लालसा की जा सकती है
और उसकी लय सुनाई देती है सुदूर पहाड़ी में क्योंकि
पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है आज़ादी का गीत.

आज़ाद चिड़िया सोचती है एक दूसरी बयार के बारे में
और मुलायम रिवायती हवा
बहती है उसांसे भरते पेड़ों से होकर
और एक चमकीली भोर में घासदार मैदान पर
इन्तज़ार करता है मुटाया कीड़ा और दावा करता है कि आसमान उसका है

लेकिन पिंजरे में बन्द चिड़िया खड़ी रहती है स्वप्नों की कब्रगाह पर
उसकी परछाईं चीखती है एक दुःस्वप्न में
उसके पंख छांट दिए गए हैं और पांव बंधे हैं
सो वह गाने के लिए खोलती है अपना गला.

पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है एक भयावह थरथराहट के साथ
उन चीज़ों के बारे में जो अजानी हैं लेकिन अब भी जिनकी लालसा की जा सकती है
और उसकी लय सुनाई देती है सुदूर पहाड़ी में क्योंकि
पिंजरे में बन्द चिड़िया गाती है आज़ादी का गीत.

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - ९

(पिछली किस्त से जारी)


फ़ौन्डेन्ट आइसिंग के लिए:

८०० ग्राम चीनी का बुरादा
६० बूंदें नींबू का रस और पर्याप्त पानी

चीनी और पानी को एक बरतन में घोल कर गरम करें, लगातार हिलाएं जब तक कि वह उबलने लगे. इसे छानकर दूसरे बरतन में डालें और दुबारा गरम करें, नींबू का रस डालें और पकाएं जब तक कि चाशनी तैयार न हो जाए. साथ ही बरतन के किनारों को भीगे कपड़े द्र पोंछते रहें ताकि चीनी सूख न जाए. अब इस मिश्रण को किसी नम बरतन में डालें थोड़ा पानी छिड़कें और ज़रा ठण्डा होने दें.

जब यह ठण्डा हो जाए, इसे लकड़ी के चम्मच से फेंटें जब तक यह क्रीम जैसा न दिखाई देने लगे.

केक को आइस करने के लिए फ़ौन्डेन्ट में एक चम्मच दूध मिलाकर मुलायम होन्व तक गरम करें, एक बूंद खाने का लाल रंग मिलाएं और केक के केवल ऊपरी भाग की इस फ़ैन्डेन्ट से आइसिंग करें.

"बच्ची, मैंने इसे पहले ही मिला दिया है, देखती नहीं यह कितना गुलाबी हो चुका है?"

"नहीं तो ..."

"अब जाकर सो जाओ मेरी बच्ची. मैरिन्गे आइसिंग मैं ख़ुद तैयार कर लूंगी. केवल बरतन जानता है उबलते हुए सूप को कैसा लगता है.ल्र्किन मैं जानती हूंतुम्हें कैसा महसूस हो रहा है. और रोना बन्द करो. तुम मैरिन्गे को ज़्यादा ही गीला कर दे रही हो. फ़िर यह जम भी नहीं पाएगा - अब चलो - जाओ."

नाचा ने तीता पर चुम्बनों की बौछार करते हुए उसे रसोई से बाहर कर दिया. इन नए आंसुओंको तीता नहीं समझ पाई, लेकिन वे निकल चुके थे और उन्होंने मैरिन्गे का वान्छित गाढ़ापन बदल दिया था. अब केक की मैरिन्गे आइसिंग ल्करना दूने परिश्रम का काम होगा. अब नाचा को यह करना था कि जल्दी से जल्दी इस काम मो पूरा कर के सो सके. मैरिन्गे आइसिंग के लिए दस अण्डों की सफ़ेदी और पांच सौ ग्राम चीनी फेंटनी होती है जब तक कि गाढ़ी चाशनी न तैयार हो जाए.

मैरिन्गे को फेंट चुकने के बाद नाचा को ख़्याल आया कि अपनी उंगलियॊम में लगी हुई आइसिंग को चख कर देखे कि कहीं तीता के आंसुओं ने उसका स्वाद तो बदल नहीं दिया है. चखने पर उसने पाया कि स्वाद में कोई बदलाव नहीं आया है.लेकिन बिना किसी मनःस्थिति के नाचा का मन इच्छाओं से भर उठा. एक के बाद उसकी स्मृति में वे तमाम शादियां आती गईं जिनके लिए उसने खाना तैयार किया था. दे ला गार्ज़ा परिवार की हर शादी में वह इस भ्रम के साथ खाना बनाती गई कि अगली शादी उसकी होगी. कम से कम इसका भ्रम तो रहता ही था. पिचासी की उमर में रोने का कोई अर्थ नहीं था - खासतौर पर उस शादी के लिए जो हुई ही नहीं, हालांकि उसका एक मंगेतर था. हां था एक मंगेतर उसका. लेकिन मामा एलेना की मामा ने उसका बोरिया-बिस्तर बांधकर भगा दिया था. तब से नाचा बस दूसरों की शादियों की खुशियां मनाया करती थी - बरसों से, बिना शिकायत किए. तो अब क्या शिकायत थी उसे? य्श कोई मज़ाक हो सकता था पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया. अपनी सामर्थ्यानुसार उसने केक को मैरिन्गे आइसिंग से सजायाऔर अपने कमरे में चली आई - उसके दिल में एक तीखा दर्द था. वह पूरी रात रोती रही और अगली सुबह इस लायक नहीं थी कि शादी के किसी भी काम में मदद दे पाती.

नाचा की जगह लेने को तीता कुछ भी कर सकती थी पर तीता को न केवल विवाह की रस्म के समय उपस्थित रहना थाअ बल्कि यह भी निश्चित करना था कि उसका चेहरा उसकी भावनाओं को छिपाए रहे. उसे लगा वह ऐसा कर पाएगी जब तक कि उसकी आंखें पेद्रो सी आंखों से न टकराएं. ऐसा होने पर शान्त और स्थिरचित्त होने का उसका दावा बिखर कर रह जाता.

उसे मालूम था कि अपनी बहन रोसौरा के स्थान पर स्वयं वह लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बनी हुई थी. मेहमान न केवल एक सामाजिक रस्म निबटा रहे थे, वे तीता की यातना को भी देखना चाहते थे.लेकिन वह उन्हें सन्तुष्ट नहीं होने देगी. बिल्कुल नहीं. चर्च में चलते हुए उसने तमाम लोगों की फुसफुसाहटें सुनीं जो उसकी पीठ पर घाव करती रहीं.

(जारी)

हर चुम्बन होता है एक मुल्क जिसका अपना इतिहास, अपना भूगोल


ईराकी कवयित्री दुन्या मिखाइल की दो और कविताएं:

मैं जल्दी में थी

कल मैंने खो दिया एक मुल्क
मैं जल्दी में थी,
और ग़ौर नहीं कर सकी कब अलग हुआ वह मुझसे
किसी भुलक्कड़ पेड़ की टूटी शाख की मानिन्द.
कृपा करके, अगर कोई इसके पास से होकर गुज़रे
और इससे टकरा जाए
शायद आसमान की तरफ़ मुंह खोले
किसी सूटकेस में
या किसी उघड़े घाव की तरह
उकेरा गया किसी चट्टान पर,
या उत्प्रवासियों के कम्बलों में लिपटा हुआ,
या किसी हारे हुए
लॉटरी के टिकट की तरह निरस्त,
या हताश भुला दिया गया
किसी सुधारग्रह में,
या बच्चों के सवालों की तरह
निरुद्देश्य भागता हुआ आगे-आगे,
या युद्ध के धुंएं के साथ उठता हुआ,
या रेत पर पड़े किसी हैल्मेट के भीतर लुढ़कता,
या अली बाबा के मर्तबान में चुराकर रखा हुआ,
या पुलिसवालों का भेस बनाए
जिसने क़ैदियों के जगाया
और भाग निकला,
या एक स्त्री के दिमाग़ में उकड़ूं बैठा हुआ
जो मुस्कराने का जतन अरती है,
या बिखरा हुआ
अमेरिका में नए आप्रवासियों के
सपनों की तरह,
अगर कभी कोई टकराए उस से
कृपया मुझे लौटा दे.
कृपया लौटा दें, सर.
लौटा दें कृपया, मादाम.
वह मेरा देश है ...
मैं जल्दी में थी
जब उसे खोया था मैंने कल.

अमेरिका

मेहरबानी कर के मुझ से मत पूछो, अमेरिका
- मुझे याद नहीं
किस कूचे में
किसके साथ
या किस सितारे के नीचे
मुझसे मत पूछो ...
मुझे याद नहीं
लोगों की त्वचाओं का रंग
या उनके दस्तख़त
मुझे याद ही नहीं
कि उनके पास हमारे चेहरे थे
या हमारे ख़्वाब
कि वे गा रहे थे
या नहीं
कि वे बांए से लिखना शुरू कर रहे थे
कि दांए से
या लिख भी रहे थे कि नहीं
घरों में सो रहे थे
या फ़ुटपाथों पर
या हवाई अड्डों में
प्यार करते हुए या नहीं.
मेहरबानी कर के मुझ से मत पूछो, अमेरिका
मुझे उनके नाम याद नहीं
न उनके जन्मस्थान -
घास होते हैं लोग
हर जगह उगा करते हैं, अमेरिका
मत पूछो मुझसे ...
मुझे याद नहीं
क्या बजा था तब,
मौसम कैसा था,
कौन सी भाषा,
या कौन सा झण्डा
मत पूछो मुझसे ...
मुझे याद नहीं
सूरज ने तले कितनी देर चलना पड़ा था उन्हें
और कितनों की मौत हुई
मुझे याद नहीं
नावों की आकृतियां
या पड़ावों की संख्या ...
वे कितने सूटकेस साथ ले गए
या कितने छोड़ गए अपने पीछे
कि वे शिकायतों के साथ पहुंचे
या उन्होंने नहीं की कोई शिकायत.
अपने सवालात बन्द करो अमेरिका
और दूसरे किनारे पर
थके हुओं को
अपना हाथ प्रस्तुत करो.
बिना सवालों
और प्रतीक्षा सूचियों के उसे प्रस्तुत करो.
पूरी दुनिया फ़तह करना किस काम का है अमेरिका
अगर तुम अपनी आत्मा ही गंवाडालो?
किसने कहा कि अगर रात बीत गई बग़ैर उत्तरों के
तो आसमान खो देगा अपने सारे सितारे?
अमेरिका, अपनी प्रश्नावली को नदी के लिए छोड़ दो
अर मुझे छोड़ दो मेरे प्रेमी के साथ.
बहुत लम्बा वक़्त बीत चुका है
सुदूर हिलोरें लेते नदीतट हैं हम दो
और नदी बल खाती बहती है हमारे दरम्यान
उम्दा पकाई गई मछली की तरह
अमेरिका, बहुत लम्बा वक़्त बीत चुका है
(शामों की
मेरी दादी की कहानियों से भी लम्बा)
और हम इशारे का इन्तज़ार कर रहे हैं
कि फेंक दें अपने कवच नदी में.
हम जानते हैं कि नदी
कवचों से अटी पड़ी है
इस आख़िरी वाले से
कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला,
हालांकि कवच को फ़र्क़ पड़ता है ...
क्यों पूछ रहे हो तुम इतने सवालात?
तुम्हें सारी भाषाओं में चाहिए
हमारी उंगलियों के निशान
और मैं बूढ़ी हो गई हूं
अपने पिता से भी बूढ़ी.
जब रेलगाड़ियां नहीं चला करती थीं
शामों को वे मुझे बताया करते थे -
एक दिन हम अमेरिका जाएंगे.
एक दिन जाएंगे हम
और गीत गाएंगे
तर्ज़ुमा किया हुआ या नहीं
स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी के आगे.
मैं आई हूं तुम तक अपने पिता के बग़ैर.
मृतक हिन्दुस्तानी अंजीरों से भी
अधिक तेज़ी से पकते हैं
लेकिन वे कभी बूढ़े नहीं होते अमेरिका.
वे परछाइयों और रोशनी की पालियों में आया करते हैं
हमारे सपनों में
और टूटते सितारों या
इन्द्रधनुष के घुमाव में
प्रकट होते हैं उन मकानों के ऊपर जिन्हें हमने छोड़ दिया है.
अगर हम उन्हें ज़्यादा इन्तज़ार करवाते हैं
तो कभी-कभी वे ग़ुस्सा हो जाते हैं ...
अभी क्या बजा है?
मुझे डर है, अमेरिका
कि मुझे मिलने वाली है तुम्हारी रजिस्टर्ड डाक
इस पल
जो किसी काम की नहीं ...
सो मैं खिलौने की तरह खेलूंगा इस आज़ादी से
जैसे चिढ़ाता हुआ पालतू बिल्ली को.
मैं नहीं जानती
इसके साथ और क्या करूं
इस पल
जो किसी काम की नहीं ...
और वहां सामने वाले तट पर
मेरा प्रेमी
मेरे वास्ते थामे खड़ा है
एक फूल.
और मैं - तुम जानते हो -
नफ़रत करती हूं फीके पड़ चुके फूलों से.
हर रोज़ डाक में चमकती
अपने प्रेमी का हस्तलेख मुझे वाक़ई प्रिय है.
मैं उसे बचा लेती हूं तमाम विज्ञापन के परचों
और "एक के साथ एक मुफ़्त" के विशेष ऑफ़र से
और एक ज़रूरी घोषणा से कि
"इस पत्रिका की सदस्यता लेकर
जीतें एक मिलियन डॉलर"
और बिल चुकाए जाने होते हैं
मासिक किस्तों में.
मुझे प्रिय है अपने प्रेमी का हस्तलेख
हालांकि वह होता जा रहा है दिन-ब-दिन और ज़्यादा डगमग.
हमारे पास बस एक तस्वीर है
बस एक तस्वीर, अमेरिका.
मुझे वह चाहिये.
मुझे वह पल चाहिये
(जो हमेशा पहुंच से परे)
उस तस्वीर में से
जिसे मैं हर कोण से पहचानती हूं -
आसमान का वह घुमावदार क्षण.
कल्पना करो, अमेरिका
अगर हम में से एक उस तस्वीर से निकल जाए
और अल्बम को छोड़ जाए
अकेलेपन से भरकर,
या अगर
जीवन बन जाए बिना फ़िल्म वाला एक कैमरा.
कल्पना करो, अमेरिका!
बिना फ़्रेम के
कल को रात
ले जाएगी हमें,
जानेमन,
कल,
रात ले जाएगी हमें
बिना किसी फ़्रेम के.
हम हमेशा के लिए झिंझोड़ कर जगा देंगे
संग्रहालयों को,
हमारी टूटी घड़ियों की मरम्मत करो
ताकि हम सार्वजनिक चौराहों पर टिकटिक कर सकें
जब भी रेल
हमारी बग़ल से गुज़रे.
कल
जानेमन,
कल,
खिलेंगे हम -
एक पेड़ कॊ दो पत्तियां
हम कोशिश करेंगे
बहुत ज़्यादा शालीन और हरी न हों
और समय के साथ-साथ
हम लुढ़केंगे नर्तकों की तरह
जब हवा हमें ले कर जाएगी
उन जगहों तक
जिनके नाम तक हम भूल चुके होंगे.
हम खुश रहेंगे कछुओं की ख़ातिर
क्योंकि वे अपनी राह पर लगे रहते हैं ...
कल
जानेमन,
कल,
मैं देखूंगी तुम्हारी आंखों को
तुम्हारी नई झुर्रियां देखने को
हमारे भविष्य के सपनों की रेखाएं.
जब तुम चोटी गूंथ रहे होगे मेरे पक चुके बालों की
बरसात
या सूरज
या चन्द्रमा के तले
हरेक बाल जान सकेगा
कि दो बार नहीं होती
कोई भी चीज़,
हर चुम्बन होता है एक मुल्क जिसका अपना इतिहास
अपना भूगोल
और अपनी भाषा
और सुख और उदासी
और युद्ध
और खंडहर
और छुट्टियां
और टिकटिक करती घड़ियां ...
और जानेमन, जब वापस लौटेगा तुम्हारी गर्दन का दर्द
तुम्हारे पास शिकायत करने का समय नहीं होगा
न तुम उसकी परवाह करोगे.
दर्द बना रहेगा हमारे अन्दर
बर्फ़ की मानिन्द लजीला, जो पिघलेगी नहीं.
कल
जानेमन,
कल,
लकड़ी के बक्से में
बजेंगी दो घन्टियां.
दो कांपते हाथों में
वे चमक रही हैं काफ़ी लम्बे समय से,
अनुपस्थिति के कारण
गुत्थमगुत्था.
कल
सफ़ेदी उघाड़कर रख देगी
अपने तमाम रंगों को
जब हम उत्सव मनाएंगे
उसकी वापसी का
जो सफ़ेदी में
खो गया था
या स्थगित हो गया था.
मैं कैसे जानूंगी, अमेरिका.
उतने सारे रंगों में
कौन सा वाला होगा
सबसे उल्लासपूर्ण
कोलाहलभरा
सबसे अलग
या सबसे मिला-घुला?
मैं कैसे जानूंगी, अमेरिका?

(और नदी बल खाती बहती है हमारे दरम्यान/ उम्दा पकाई गई मछली की तरह - यहां टिग्रिस नदी के तटों पर स्थित रेस्त्राओं में मचली पकाए जाने के तरीके का सन्दर्भ है. मछली को जलती लकड़ियों की आंच पर बार-बार पलटा कर पकाया जाता है.)

Tuesday, April 26, 2011

न्यूयॉर्क का अन्तिम संस्कार

समकालीन अरबी कविता के स्तम्भों में एक अली मोहम्मद सईद अस्बार ने अदूनिस के उपनाम से कविताएं कीं. आज अदूनिस से आपका परिचय करवा रहा हूं -



धरती

कितनी बार कहा है तुमने मुझसे
"मेरे पास एक दूसरा देश है"
तुम्हारी हथेलियां भरती हुईं आंसुओं से
और तुम्हारी आंखें
भरती हुईं बिजली से
ठीक जहां सरहदें पास आने को होती हैं
क्या तुम्हारी आंखें धरती को जानती हैं
जब भी वह रोती है या तुम्हारे कदमों में उल्लास भर देती है
इस जगह जहां तुम गीत गा चुके, या वहां
जहां वह तुम्हारे सिवा हरेक राहगीर को पहचानती है
और जानती है कि वह एक है
सूखी हुई छातियां, भीतर से सूखीं,
और यह कि उसे अस्वीकार के अनुष्ठान के बारे में नहीं पता.

क्या तुम्हारी आंखों ने महसूस किया
कि खुद तुम ही धरती हो?

न्यूयॉर्क का अन्तिम संस्कार

धरती को एक नाशपाती
या एक स्तन की तरह सोचो.
ऐसे फलों और मृत्यु के बीच
बची रहती है एक अभियान्त्रिकी तरकीब -
न्यूयॉर्क,
इसे आप एक चौपाया शहर कह सकते हैं
जो हत्या करने को आगे बढ़ रहा है
जबकि सुदूर
अभी से कराहने लगे हैं डूब चुके लोग.
न्यूयॉर्क एक स्त्री है
इतिहास के मुताबिक जिसका एक हाथ
थामे है स्वनतन्त्रता नाम का चीथड़ा
और दूसरा घोंट रहा है धरती का दम.

अण्णा हज़ारे और इरोम शर्मिला

समकालीन यीसरी दुनिया के अप्रैल २०११ के अंक में सम्पादक श्री आनन्द स्वरूप वर्मा जी का लिखा यह सम्पादकीय कई अर्थों में सामयिक और महत्वपूर्ण है. उन्हीं की अनुमति लेकर मैं इसे यहां कबाड़ख़ाने के पाठकों के वास्ते प्रस्तुत कर रहा हूं. कबाड़ख़ाने के मॉडरेटर की हैसियत से मैं यह सूचित करना अपना कर्तव्य समझता हूं कि यह सम्पादकीय भूषणद्वय, महन्त हेगड़े व सदाशिव दिग्विजय सिंह के पुनरावतारों और कालिख की तरह पुच्छ-दन्तहीन अमर झण्डूबघीरे के वेदवाक्यों के डिजिटल स्खलन से पहले लिखा गया था.


अण्णा हज़ारे और इरोम शर्मिला

- आनन्द स्वरूप वर्मा

मणिपुर की इरोम शर्मिला ४ नवम्बर २००० से भूख हड़ताल पर हैं. पिछले साल उनकी भूख हड़ताल के १० वर्ष पूरे हुए. उनकी मांग है कि आर्म्ड फ़ोर्सेज़ स्पेशल पावर एक्ट समाप्त किया जाए जिसने मणिपुर को एक सैनिक छावनी का रूप दे दिया है. इस एक्ट की आड़ में मानव अधिकारों का अन्तहीन हनन तो हो ही रहा हैइसने सेना, पुलिस और नौकरशाही के स्तर पर ज़बरदस्त भ्रष्टाचार को जन म दिया है. इस अर्थ में देखें तो इरोम शर्मिला की लड़ाई अण्णा हज़ारे की लड़ाई से किसी मायने में कम नहीं है.

अण्णा हज़ारे की तरह इरोम शर्मिला भी गांधीवादी विचारों की अनुयायी हैं. २००६ में उन्होंने भी जन्तर मन्तर पर धरना दिया था. मणिपुर से पहली बार वह बाहर निकली थींऔर दिल्ली पहुंचते ही सबसे पहले उन्होंने राजघाट जाकर गांधीजी की समाधि पर फूल चढ़ाए. उन्हें ६ अक्टूबर २००६ को दिल्ली पुलिस ने जन्तर मन्तर से गिरफ़्तार कर लिया और पहले एम्स में और फिर बाद में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां जबरन नाक के रास्ते उनके शरीर में आहार पहुंचाने का काम शुरू हुआ. आज अण्णा हज़ारे के अनशन को कवर करने में लगे अराजनैतिक राजदीप सरदेसाई से लेकर किसी ज़माने के धुर वामपंथी पुण्य प्रसून वाजपेई की कैमरा टीम जो गला फाड़ फाड कर "दूसरी आज़ादी" का जश्न मना रही थी और जिसे अण्णा हज़ारे में गांधी से लेकर भगत सिंह के दर्शन हो रहे थे, वह उस समय कहां थी जब इरोम शर्मिला अपने बेहद कमज़ोर शरीर लेकिन फ़ौलादी संकल्प के साथ जन्तर मन्तर में लेटी हुई थीं. आर्यसमाज से नक्सलवाद और जनता पार्टी से आर्यसमाज तथा फिर आर्यसमाज से माओवाद तक के घुमावदार रास्तों से चढ़ते उतरेते किसी अज्ञात मंज़िल की तलाश में भटक रहे स्वामी अग्निवेश को क्या कभी महसूस हुआ कि इरोम शर्मिला जिस मकसद के लिए लड़ रही हैं उसमें भी वह अपना योगदान कर सकें. बेशक अगर २००६ में टेलीविज़ल कैमरों की बटालियन वहां तैनात होती तो ढेर सारे कैमरोन्मुखी आंदोलनकारी वहां नज़र आते. हिंसात्मक आंदोलनों की व्यर्थता को रेखांकित करने के मकसद से जो लोग यह प्रचारित करने में सारी ताकत लगा रहे हैं कि शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन के जरिये सरकार को झुकाया जा सकता है जो अण्णा हज़ारे ने महज़ चार दिनों में कर दिखाया उनकी पीलियाग्रस्त आंखों को इरोम शर्मिला का दस वर्षों का आंदोलन क्यों नहीं दिखाई दे रहा है.

प्रख्यात बुद्धिजीवी नोम चोम्स्की ने काफ़ी पहले अपने महत्वपूर्ण लेख मैन्यूफ़ैक्चरिंग कॉंसेन्ट में बताया था कि किस प्रकार मीडिया जामत को अपने ढंग से हांकता और आकार देता है. किस तरह से वह अपने वर्णनों, आख्यानों, झूठों और फ़रेबों को सच मानने के लिए जनमत को प्रेरित करता है. पिछले कुछ वर्षों से जब से भारत में टेलीविज़न चैनलों की बाढ़ आ गई है, हम इसकी मनमानी को देख और झेल रहे हैं. नोम चोम्स्की ने जहां मीडिया के इस पहलू को उजागर किया था वहीम एक दूसरे बुद्धिजीवी ओटावा विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर माइकेल चोसुदोव्स्की ने "मैन्यूफ़ैक्चरिंग डिदेन्ट" के जरिये बताया किकिस प्रकार आज के पूंजीवाद के लिए ज़रूरी हैवह जनतन्त्र के भ्रम को बनाए रखे. उनका कहना है कि "कॉरपोरेट घरानों के एलीट वर्ग के हित में है कि वे विरोध और असहमति के स्वर को उस हद तक अपनी व्यवस्था का अंग बनाए रखें जब तक वे बनी बनाई सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा न पैदा करें. इसका मकसद विद्रोह का दमन करना नहीं बल्कि प्रतिरोध आन्दोलनों को अपने सांचे में ढालना होता है. अपनी वैधता बनाए रखने के लिए कॉरपोरेट जगत विरोध के सीनित और नियन्त्रित स्वरूपों को तैयर करता है ताकि कोई उग्र विरोध न पैदा हो सके जो उनकी बुनियाद और पूंजीवाद की संस्थाओं को हिला दे." दूसरे शब्दों में कहें तो डिसेन्ट (असहमति) के निर्माण का मकसद अपनी व्यवस्था को बचाए रखने के लिए सेफ़्टी वाल्व तैयार करता है.

अण्णा हज़ारे ने भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे को उठाया वह निश्चित तौर पर एक ऐसा मुद्दा था जिसके लिए आन्दोलन की वस्तुगत स्थितियां पूरी तरह तैयार थीं और जिस से हर तबके के लोग घुटन महसूस कर रहे थे. फिर भी यह मुद्दा ऐसा नहीं था जो व्यवस्था की चूलें हिला देता और जिसे चैनलों ने इस तरह पेश किया गोया कोई मुक्ति आन्दोलन चल रहा हो. क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान अन्धराष्ट्रवाद फैलाने की होड़ में लगे मीडिया बांकुरों ने अचानक एक ऐसा मुद्दा पा लिया जिस पर वे चौबीसों घन्टे शोर कर सकें. सैकड़ों की भीड़ को हज़ारों की भीड़ बताकर और लोकपाल विधेयक के बरक्स जनलिकपाल विधेयक कोनए संविधान निर्माण जैसा दिखा कर इन्होंने अण्णा हज़ारे के कद को इतना ऊंचा करना चाहा जितना कि खुद उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. पूरे देश में तो नहीं लेकिन दिल्ली और बंबई सहित प्रमुख शह्रों में जहां इन चैनलों को देखा जा रहा था लोगों के अन्दर इस "दूसरे स्वतन्त्रता आन्दोलन" में भाग लेने की होड़ पैदा की गई और इसमें चैनलों को सफलता भी मिली.

इस पूरे प्रकरण में कुछ बातें , जो अब तक धुंधले रूप में सामने आती थीं बहुत खुलकर दिखाई देने लगीं. देश की अस्सी प्रतिसत आबादी के प्रति उपेक्षा का भाव रखने वाले इन कॉरपोरेटधर्मी चैनलों ने किन लोगों को सबसे ज़्यादा उद्वेलित किया. अण्णा हज़ारे के समर्थन में जिन लोगों ने आवाज़ें उठाईं उनके नामों को देखें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अण्णा के स्वर में स्वर मिलाने वालों का पाखण्ड खुद ही सामने आ जाएगा. ये नाम हैं अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, रितिक रोशन, फ़रहान अख़तर, प्रियंका चोपड़ा, मधुर भंडारकर,अनुपम खेर, रितेश देशमुख, शाहिद कपूर, विपाशा बसु, जूही चावला, राहुल बोस, विवेल ओबेरॉय. दिया मिर्ज़्ज़, प्रीतीश नन्दी आदि आदि. ये बम्बई के फ़िल्म जगह के लोग थे जिन्हें इतना तो पता है कि बॉलीवुड में काले धन की क्या भूमिका है पर जिनमें से नब्बे प्रतिशत लोगों को मालूम ही नहीं होगा कि लोकपाल विधेयक/ जन लोकपाल विधेयक है क्या. क्या इन लोगों पर चैनलों पर पदा लिए गए हिस्टीरिया का प्रभाव था? जेल में सज़ा काट रहे बिहार के माफ़िया पप्पू यादव ने अन्ना के समर्थन में अनशन शुरू किया. गज़ब का समां था - नरेन्द्र मोदी की बिरादरी से लेकर भाकपा-माले (लिबरेशन) सब अण्णा के समर्थन में जन्तर मन्तर पहुंचे.

लेकिन अण्णा हज़ारे को समर्थन देने वालों में जब देश के कॉरपोरेट घरानों की सूची पर निगाह गई तो लाअ कि सारा कुछ वैसा ही नहीं है जैसा दिखाई दे रहा है. कॉरपोरेट घरानों से जो लोग अण्णा के समर्थन में खुलकर सामने आए वे थे बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज, गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन आदि गोदरेज, महिन्द्रा एन्ड महिन्द्रा के ऑटोमोटिव एन्ड फ़ार्म इक्विपमेन्ट सैक्टर के अध्यक्ष पवन गोयनका, हीरो कॉरपोरेट सर्विसेज़ के अध्यक्ष सुनील मुंजाल, फ़िक्की के डायरेक्टर जनरल राजीव कुमार, एसोचाम के अध्यक्ष दिलीप मोदी तथा अन्य छोटे मोटे व्यापारिक घराने. हो सकता हैकि यह अनशन कुछ और दिनों तक चलता तो भ्रष्टाचार विरोधी इस महायज्ञ में आहुति डालने मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी भी पहुंच जाते. जो लोग यह सवाल करते हैं कि अण्णा के आन्दोलन के लिए पैसे कहां से आ रहे हैं या कहां से आएंगे अथवा एन जी ओ सैक्टर की क्या भूमिका है, उनकी मासूमियत पर तरस आता है. अण्णा से पूछो तो उनका यही जवाब होगा कि लनता पैसे देगी लेकिन इस विरोध का निर्माण करने वाली शक्तियां इनई फ़ंडिंग की भी व्यवस्था करती हैं. एक बार फिर हम माइकेल चोसुदोव्स्की के लेख की उन पंक्तियों को देखें जिनमें उन्होंने कहा है कि विरोध की फ़ंडिंग का मतलब है"विरोध आन्दोलन के निशाने पर जो लोग हैं उनसे वित्तीय संसाधनों को उन तक पहुंचाने की व्यवस्था करना जो विरोध आन्दोलनों को संगठित कर रहे हैं." किसी व्यापक जनान्दोलन की आशंका का मुकाबला करने के लिए मुद्दा आधारित विरोध आन्दोलनों को बढ़ावा दिया जाता है और इस के लिए धनराशि जुटाई जाती है" अपने इस लेख में उन्होंने यह भी बतलाआ है कि किस तरह सत्ता के भीतरी घेरे में सिविल सोसाइटी के नेताओं को शामिल किया जाएगा.

पिछले कुछ वर्षों से इस व्यवस्था को चलाने वाली ताकतें इस बात से बहुत चिंतित हैं कि भारत के मध्य वर्ग और खास तौर पर शहरी मध्यवर्ग का रुझान तेज़ी से रेडिकल राजनीति की तरफ़ हो रहा है और उसे वापस पटरी पर लाने के लिए देश के स्तर पर कोई ऐसा नेतृत्व नहीण है जिसकी स्वच्छ छवि हो और जिसे राजनैतिक निहित स्वार्थों से ऊपर उठा हुआ चित्रित किया जा सके. अण्णा हज़ारे के रूप में उसे एक ऐसा व्यक्ति मिल गया है जिसके नेतृत्व को अगर कायदे से प्रोजेक्ट किया जाए तो वह तेज़ी से रेडिकल हो रही राजनीति पर रोक लगा सकता है. इसमें सत्ताधारी वर्ग, जिस में देश के कॉरपोरेट घराने तो हैं ही, मध्य वर्ग का ऊपरी तबका भी है, का हित पूरी तरह जुड़ा हुआ है. अण्णा हज़ारे के मंच पर दिखने वाले प्रतीक पहली नज़र में हिन्दुत्ववाद का एहसास कराते हैं. एक समाचार के अनुसार आर एस एस के महासचिव सुरेश जोशी ने अण्णा हज़ारे को अपना समर्थन व्यक्त करते हुए एक पत्र लिखा जिसे संगठन के प्रवक्ता राम माधव ने उन तक पहुंचाया. यह अनायास ही नहीं है कि २४ मार्च को भाजपा नेता वैंकैया नायडू ने एक वक्तव्य में कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ शंखनाद के लिए आज जेपी जैसे एक नेता की ज़रूरत है. जन्तर मन्तर से उत्साहित अण्णा की योजना है पूरे देश में सभाएं करने और किसी बड़े आन्दोलन की भूमिका तैयार करने की. ऐसे में चार दिनों के अनशन्न और उस से पैदा सवालों पर गम्भीरता से विचार करना बहुत ज़रूरी है.

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - ८

(पिछली किस्त से जारी)


फ़िलिंग के लिए -

१५० ग्राम खुबानी का पेस्ट
१५० ग्राम चीनी का बुरादा

फ़िलिंग बनाने की विधि -

खुबानी के पेस्ट को थोड़े से पानी के साथ उबलने तक गरम करें. अब इसे एक बरतन में चीनी के साथ गरम करें. इसे धीमे धीमे चलाएं ताकि यह मुरब्बे जैसा दीखने लगे. इसे थोड़ा सा ठण्डा करें और केक के बीच की परत पर फैला दें. जाहिर है केक को पहले ही परतों में काट किया जाना चाहिए.

भाग्यवश नाचा और तीता न पहले से ही कई मर्तबान भर कर फलों के मुरब्बे तैयार कर रखे थे - खुबानी, अनन्नास इत्यादि के. यह काम उन्होंने शादी के महीना भर पहले ही कर लिया था और अब उन्हें फ़िलिंग के लिए मुरब्बे बनाने की ज़रूरत नहीं थी.

वे अक्सर काफ़ी मात्रा में फलोंके मुरब्बे बनाया करती थीं - उन फलों के जो उन दिनों उग रहे होते थे. यह काम वे रसोई के पिछवाड़े किया करती थीं जहां तांबे के एक बड़े बरतन में मुरब्बा बनाया जाता था. बरतन को आग के ऊपर रखा जाता और मिश्रण को चलाने के लिए उन्हें अपनी बांहों को पुराने कपड़ों से ढंकना पड़ता था ताकि गरम बुलबुलों से उनकी त्वचा जल न जाए.

जिस क्षण तीता ने म्रब्बे का मर्तबान खोला, खुबानियों की महक ने उसे उस दोपहर के बीच पहुंचा दिया जब यह मुरब्बा बनाया गया था. तीता किचन गार्डन से खुबानियां अपनी स्कर्ट में रखकर ला रही थी क्योंकि वह टोकरी लाना भूल गई थी. तीता अपनी स्कर्ट को आगे उठाकर खुबानियां रसोई में ला रही थी कि पेद्रो से टकराकर हक्कीबक्की हो गई. पेद्रो अपनी घोड़ागाड़ी तैयार करने बाहर निकल रहा था. उसे शहर जाकर कई निमन्त्रण देने थे. जिस व्यक्ति को यह काम करना था वह उस दिन नहीं आया सो यह काम पेद्रो को करना था. जब नाचा ने पेद्रो को रसोई में घुसते देखा, वह बहाना बनाकर रसोई से बाहर चली गई. अचम्भे में तीता से कुछ खुबानियां नीचे गिर गईं. पेद्रो तुरन्त नीचे झुककर उन्हें उठाने लगा. झुकते समय उसने तीता की अनावृत्त टांग का एक हिस्सा देख लिया.

ताकि पेद्रो उसकी टांग न देख पाए तीता ने अपना स्कर्ट नीचे गिरा दिया. ऐसा करते ही सारी खुबानियां पेद्रो के सिर पर जा गिरीं.

"माफ़ करना पेद्रो, क्या तुम्हें चोट लगी?

"नहीं नहीं. चोट तो तुम्हें मैंने पहुंचाई है. दर असल मैं कहना चाहता हूं कि मेरी इच्छा ..."

"मैंने कोई स्पष्टीकरण तो नहीं मांगा."

"तुम्हें मुझे कुछ कहने का मौका देना होगा ..."

"मैने एक बार ऐसा किया था और मुझे झूठ ही सुनने को मिला. अब और कुछ सुनने की मेरी इच्छा नहीं है ..."

इसके साथ ही तीता रसोई से भागकर उस कमरे में पहुंची जहां चेन्चा और गरत्रूदिस उस चादर को काढ़ रहे थे जो खास शादी के लिए तैयार की जा रही थी. वह एक सफ़ेद रेशमी चादर थी जिसके बीच में वे एक जटिल नमूना काढ़ रहे थे. इस हिस्से में कुछ भाग खुला हुआ था. कढ़ाई इस तरह थी कि सुहागरात के समय दुल्हन के केवल जननांग इस खुले भाग के ठीक नीचे हों. राजनैतिक अस्थिरता के दौर में भी उन्हें भाग्यवश फ़्रैन्च सिक मिल गई थी. क्रान्ति के कारण सुरक्षित यात्रा करना असम्भव हो गया था. वह तो एक चीनी स्मगलर की कृपा रही जो उन्हें यह कपड़ा मिल सका. मामा एलेना ने अपनी किसी भी बेटी को शहर भेजने का खतरा मोल नहीं लिया था, जहां से वे रोसौरा की पोशाक का कपड़ा वगैरह ले कर आतीं. यह चीनी आदमी बेहद चालाक था. उत्तर की क्रान्तिकारी सेना द्वारा जारी किए गए नोटों को वह राजधानी में ले लेता था, हालांकि बेची हुई चीज़ों की कीमत के सामने वे नोट बेकार होते थे परन्तु उत्तर में इन नोटोंकी पूरी कीमत मिलती थी जहां वह इनके बदले सामान खरीदा करता था.

उत्तर में वह राजधानी से जारी किए गए नोट स्वीकार कर लेता - यहां इन नोटों की कीमत वैसी ही होती थी जैसी राजधानी में क्रान्तिकारी सेना द्वारा जारी किए गए नोटों की. अन्ततः उसने पूरी क्रान्ति को बेचकर लाखों बना लिए. लेकिन यहां महत्वपूर्ण यह है कि उसकी कृपा से रोसौरा अपनी सुहागरात के दिन सबसे महीन सबसे बेहतरीन कपड़े का आनन्द ले सकती थी.

तीता जैसे समाधिस्थ होकर उस कपड़े की चमकदार सफ़ेदी को देखती रही. हालांकि यह केवल कुछ सेकेण्ड ही रहा, लेकिन यह आंखों को चौंधिया देने को काफ़ी था. वह जहां भी देखती उसे केवल सफ़ेद रंग ही दिखाई दे रहा था. जब उसने रोसौरा को देखा, जो कुछ निमन्त्रण लिख रही थी, तीता को केवल एक बर्फ़ीला प्रेत नज़र आया. लेकिन तीता ने अपने भावों को जाहिर नहीं होने दिया - न ही किसी और ने उसकी स्थिति पर ध्यान दिया.

वह मामा एलेना के हाथों और डांट नहीं खाना चाहती थी. जब लोबो परिवार रोसौरा को उपहार देने आया, तीता कुछ देख नहीं पा रही थी. तीता यह भी नहीं जान पा रही थी कि रोसौरा को कौन बधाई दे रहा है. उसे तो केवल सफ़ेद कपड़ों में लिपटे प्रेत नज़र आ रहे थे. किस्मत से पाकीता लोबो की तीखी आवाज़ ने उसे अपनी समस्या का समधान दे दिया और बिना परेशानी के उसने लोबो परिवार का अभिवादन किया.

बाद में जब वह उन्हें छोड़ने रैन्च के प्रवेशद्वार तक गई तो उसे भान हुआ उसने ऐसी रात पहले कभी नहीं देखी थी - ंखों को अन्धा कर देने वाली चमकीली सफ़ेद रात.

अब वह केक की आइसिंग बनाते हुए अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसे भय था फिर से वैसा ही होगा.चीनी की सफ़ेदी देखकर उसे डर लगा. वह खुद को शक्तिहीन पा रही थी. उसे लग रहा था कि सफ़ेद रंग कभी भी उसकी चेतना पर छा जाएगा और बचपन की तमाम स्मृतियां उसे घसीट रही थीं. मई के महीने वर्जिन मैरी को अर्पित किए जाने वाले सफ़ेद्फूलों की स्मृतियां, सफ़ेद कपड़े पहने कई लड़कियों के साथ वह चर्च के भीतर गी थी जहां सफ़ेद फूलौर सफ़ेद मोमबत्तियां वेदी के ऊपर रखी हुई थीं. सफ़ेद चर्च के शीशों से छनकर सफ़ेद रोशनी भीतर फैली हुई थी. उस चर्च में हमेशा वह यह सोचकर प्रवेश किया करती थी कि एक दिन वह किसी पुरुष की बांहों में उस चर्च में आएगी. टिता ने न केवल इस विचार को रोकना था, बल्कि उन सारी स्मृतियों को भी जिनसे उसे इतना दर्द पहुंचा था. उसे अपनी बहन की शादी के केक की आइसिंग तैयार करनी थी. बेहद श्रम करते हुए उसने आइसिंग बनाना शुरू किया.

(जारी)

घर में है अभाव, इसीलिए पृथ्वी लगती है काला धुआं - सुकान्त की कविता बरास्ते नीलाभ ४

सुकान्त का परिचय यहां देखे


हरकारा

हरकारा दौड़ चला, दौड़ चला,
बजती है रात में इसीलिए घण्टी की रुनझुन!
हरकारा चल दिया बोझ लिये ख़बरों का हाथ में।
हरकारा चल दिया है, हरकारा,
रात की राहों में चलता है हरकारा, मानता नहीं वह निषेध कोई मन में,
दिग से दिगन्त तक दौड़ चला हरकारा,
नयी ख़बर लाने का ज़िम्मा है उस पर।

हरकारा! हरकारा!
जाने-अनजाने का
बोझ आज काँधे पर
चल रहा है हरकारा चिट्ठी और ख़बरों से लदा हुआ जहाज़ एक,
हरकारा चल रहा है, शायद हो जाय भोर।
और भी तेज़ी से, और भी तेज़ी से, यह हरकारा दुर्जय दुर्वार आज,
उसके जीवन के सपने सरीखा सरकता है वन, पीछे छूटता।
बाक़ी है, शेष है राह अभी - होता है लाल शायद पूरब का वह कोना।
नि:स्तब्ध रात के सितारे झमकते हैं नभ में,
कितनी तेज़ी से भागता है यह हरकारा हिरन की तरह।
कितने गाँव, कितने रास्ते छूट-छूट जाते हैं
हरकारा भोर में पहुँच ही जायेगा शहर।
हाथ की लालटेन करती है टुन-टुन-टुन जुगनू देते हैं आकाश,
डरो मत हरकारे! रात की कालिमा से अब भी भरा है आकाश!

इसी तरह जीवन के बहुत-से वर्षों को पीछे छोड़ कर,
पृथ्वी का बोझ भूखे हरकारे ने पहुँचा दिया "मेल" पर,
थकी हुई साँस से छुआ है आकाश, भीगी है मिट्टी पसीने से,
जीवन की सारी रातें ख़रीदीं हैं उन्होंने बहुत सस्ते में।
बड़े दुख में, वेदना में, अभिमान और अनुराग से
घर में उसकी प्रिया जागती है अकेली उनींदे बिस्तर पर।
रानार! रानार!
कब होंगे शेष ये बोझ ढोने के दिन
कब बीतेगी रात, उदित होगा सूरज?
घर में है अभाव, इसीलिए पृथ्वी लगती है काला धुआं
पीठ पर रुपयों का बोझ, फिर भी यह धन कभी नहीं जायेगा छुआ,
निर्जन है रात, रास्ते में हैं कितनी ही आशंकाएँ, फिर भी दौड़ता है हरकारा।
डाकू का डर है, उससे भी ज़्यादा डर जाने कब सूरज उग आये
कितनी चिट्ठियाँ लिखते हैं लोग -
कितनी सुख में, प्रेम में, आवेग में, स्मृति में, कितने दुख और शोक में,
मगर इसके दुख की चिट्ठी मैं जानता हूँ कोई कभी नहीं पढ़ पायेगा,
इसके जीवन का दुख जानेगी सिर्फ़ रास्ते की घास,
इसके दुख की कथा नहीं जानेगा कोई शहर और गाँव में,
इसकी कथा ढँकी रह जायेगी रात के काले लिफ़ाफ़े में।
हमदर्दी से तारों की आँखें टिमटिमाती हैं -
यह कौन है जिसे भोर का आकाश भेजेगा सहानुभूति की चिट्ठी -
रानार! रानार! क्या होगा यह बोझा ढो कर ?
क्या होगा भूख की थकान में क्षय हो -हो कर ?
रानार! रानार! भोर तो हुई है - आकाश हो गया है लाल,
उजाले के स्पर्श से कब कट जायेगा यह दुख का काल ?

हरकारे! गाँव के हरकारे!
समय हुआ है नयी ख़बर लाने का।
शपथ की चिट्ठी ले चलो आज,
कायरता को पीछे छोड़,
पहुँचा दो यह नयी ख़बर
प्रगति की ’मेल‘ में।
दिखेगा शायद अभी-अभी प्रभात
नहीं, देर मत करो और,
दौड़ चलो, दौड़ चलो और तेज़ी से
ओ दुर्दम हरकारे!

बयान

अन्त में हमारे सोने के देश में उतरता है अकाल,
जुटती है भीड़ उजड़े हुए नगर और गाँव में
अकाल का ज़िन्दा जुलूस
हर भूखा जीव ढो कर ले आता है अनिवार्य समता।

आहार के अन्वेषण में हर प्राणी के मन में है आदिम आग्रह
हर रास्ते पर होता है हर रोज़ नंगा समारोह
भूख ने डाला है घेरा रास्ते के दोनों ओर,
विषाक्त होती है हवा यहाँ-वहाँ व्यर्थ की लम्बी साँसों से
मध्यवर्ग का धूर्त सुख धीरे-धीरे होता है आवरणविहीन
बुरे दिनों की घोषणा करता है नि:शब्द।
सड़कों पर झुण्ड-दर-झुण्ड डोलती हुई चलती है कंगालों की शोभा-यात्रा
आतंकित अन्त:पुरों से उठती है दुर्भिक्ष की गूँज।
हर दरवाज़े पर बेचैन उपवासी प्रत्याशियों के दल,
निष्फल प्रार्थना-क्लान्त, भूख ही है अन्तिम सम्बल;
राजपथ पर देख कर लाशों को भरी दोपहरी में
विस्मय होता है अनभ्यस्त अँखों को।
लेकिन इस देश में आज हमला करता है ख़ूँख़ार दुश्मन,
असंख्य मौतों का स्रोत खींचता है प्राणों को जड़ से
हर रोज़ अन्यायी आघात करता है जराग्रस्त विदेशी शासन,
क्षीणायु कुण्डली में नहीं है ध्वंस-गर्भ के संकट का नाश।
सहसा देर गयी रात में देशद्रोही हत्यारे के हाथों में
देशप्रेम से दीप्त प्राण ढालते हैं अपना रक्त, जिसका साक्षी है सूरज;
फिर भी प्रतिज्ञा तैरती है हवा में अकेले,
यहाँ चालीस करोड़ अब भी जीवित हैं,
भारत भूमि पर गला हुआ सूरज झरता है आज -
दिग-दिगन्त में उठ रही है आवाज़,
रक्त में सु़र्ख टटकी हुई लाली भर दो,
रात की गहरी टहनी से तोड़ लाओ खिली हुई सुबह
उद्धत प्राणों के वेग से मुखर है आज मेरा यह देश,
मेरे उध्वस्त प्राणों में आया है आज दृढ़ता का निर्देश।
आज मज़दूर भाई देश भर में जान हथेली पर लिये
कारख़ाने-कारख़ाने में उठा रहे तान।
भूखा किसान आज हल के नुकीले फाल से
निर्भय हो रचना करता है जंगी कविताएँ इस माटी के वक्ष पर।
आज दूर से ही आसन्न मुक्ति की ताक में है शिकारी,
इस देश का भण्डार जानता हूँ भर देगा नया यूक्रेन।
इसीलिए मेरे निरन्न देश में है आज उद्धत जिहाद,
टलमल हो रहे दुर्दिन थरथराती है जर्जर बुनियाद।
इसीलिए सुनता हूँ रक्त के स्रोतत में आहट
विक्षुब्ध टाइ़फून-मत्त चंचल धमनी की।
सुनता हूँ बार-बार विपन्न पृथ्वी की पुकार,
हमारी मज़बूत मुट्ठियाँ उत्तर दें उसे आज।
वापस हों मौत के परवाने द्वार से,
व्यर्थ हों दुरभिसन्धियाँ लगातार जवाबी मार से।

शत्रु एक है

आज यह देश विपन्न है; निरन्न है जीवन आज,
मौत का निरन्तर साथ है, रोज़-रोज़ दुश्मनों के हमले
रक्त की अल्पना आँकते हैं, कानों में गूँजता है आर्तनाद;
फिर भी मज़बूत हूँ मैं, मैं एक भूखा मज़दूर।
हमारे सामने आज एक शत्रु है : एक लाल पथ है,
शत्रु की चोट और भूख से उद्दीप्त शपथ है।
कठिन प्रतिज्ञा से स्तब्ध हमारे जोशीले कारख़ाने में
हर गूँगी मशीन प्रतिरोध का संकल्प बताती है।
मेरे हाथ के स्पर्श से हर रोज़ यन्त्र का गर्जन
याद दिलाता है प्रण की, धो डालता है अवसाद,
विक्षुब्ध यन्त्र के सीने में हर रोज़ युद्ध की जो घोषणा है
वह लड़ाई मेरी लड़ाई है, उसी की राह में रुक कर गिनने हैं दिन।
निकट के क्षितिज में आता है दौड़ता हुआ दिन, जयोन्मत्त पंखों पर -
हमारी निगाह में लाल प्रतिबिम्ब है मुक्ति की पताका का
अन्धी रफ़्तार से हरकतज़दा मेरा हाथ लगातार यन्त्र का प्रसव
प्रचुर-प्रचुर उत्पादन, अन्तिम वज्र की सृष्टि का उत्सव।।

(ये सभी अनुवाद नीलाभ ने मूल बांग्ला से किए हैं)

Monday, April 25, 2011

बौलो बीर, बौलो उन्नतो मौमोशीर


नज़रुल गीति मैंने पहले पहल १९९२ में नैनीताल में अपने अतिप्रिय संगीतकार मित्र ज़ुबैर से सुनी थी. विद्रोहॊ कवि के रूप में विख्यात काज़ी नज़रुल इस्लाम के गीतों को अनूप घोषाल की आवाज़ में ज़ुबैर ने मुझे इस शैली से रू-ब-रू कराया था. बाद में उसी साल जब मेरे पहले कविता संग्रह का विमोचन हुआ तब भी उस ने श्रोताओं के सम्मुख नज़रुल गीति सुनाई थी. बाद में जब वह वापस आने मुल्क बांग्लादेश लौट गया, उसके आग्रह पर उसके पिता जी ने मेरे लिए नज़रुल से सम्बन्धित चार-छः किताबें भेजीं थीं. इनमें प्रमुख थे ढाका के नज़रुल इन्स्टीट्यूट की वार्षिकी के दो शुरूआती अंक. ज़ुबैर के सान्निध्य में कुछेक महीनों की ग़ैरसंजीदा क्लासेज़ में जो कामचलाऊ बांग्ला सीखना शुरू किया था उस पर अचानक ग्रहण लग गया. ज़ुबैर चला गया ढाका और मैं वेनेज़ुएला.

काज़ी नज़रुल इस्लाम (२५ मई १८९९-२९ अगस्त १९७६) कवि थे, संगीतकात थे, क्रान्तिकारी थे और दार्शनिक. सामाजिक कठमुल्लेपन और दमन का विरोध तो उनकी कविताओं का प्रतिनिधि स्वर है. उनकी कविता और तेवरों ने उन्हें बिद्रोही कोबी के रूप में स्थापित कर दिया.

एक गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मे नज़रूल ने प्रारम्भिक धार्मिक शिक्षा पाते हुए स्थानीय मस्जिद में मुअज़्ज़िन का काम किया. इस दरम्यान उन्होंने संगीत, साहित्य और रंगमंच इत्यादि का ज्ञान अर्जित किया. ब्रिटिश आर्मी में गए. वापस आकर कलकत्ते में बतौर पत्रकार स्थापित हुए. ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफ़त करते हुए उन्होंने बिद्रोही, भांगार गान और धूमकेतु जैसी क्रान्तिकारी रचनाएं प्रकाशित करवाईं. इस वजह से उन्हें जब-तब जेल की हवा खानी पड़ी. जेल में रहते हुए नज़रुल ने राजबन्दीर जबानबन्दी नामक रचना की जिसमें उन्होंने कठमुल्लेपन, अन्धविश्वास पर आधारित परम्पराओं और सामाजिक ह्रास जैसे विषयों पर विचार किया गया था.

एक विद्रोही कवि के तौर पर उनकी छवि इतनी बड़ी बन चुकी है कि लोग उनके काव्य के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को भूल जाया करते हैं. उन्होंने कोई तीन हज़ार गीत लिखे (जिनमें अधिकांश प्रेमगीत हैं) और विशेषज्ञ इस बात की तस्दीक करते हैं कि नज़रुल रवीन्द्रनाथ टैगोर से अधिक गेय हैं.

कुल ४३ की आयु में नज़रुल का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने लगा और वे एकान्तप्रेमी बन गए. बांग्लादेश सरकार के आग्रह पर वे १९७२ में ढाका चले गए जहां चार साल बाद उनकी मृत्यु हो गई.

मैं कोशिश में हूं कि नज़रुल से सम्बन्धित कुछ आधिकारिक सामग्री हिन्दी में मुहैया करवा सकूं. खास तौर पर उनके मीठे प्रेम गीत. आज काज़ी शब्यसाची की आवाज़ में सुनिए सुनिए उनकी विख्यात कविता बिद्रोही -



नीचे फ़िलहाल इसका अंग्रेज़ी तर्ज़ुमा. (पुनश्च: काज़ी नज़रुल इस्लाम पर इसे आख़िरी पोस्ट न समझा जाए)

Say, Valiant,
Say: High is my head!

Looking at my head
Is cast down the great Himalayan peak!
Say, Valiant,
Say: Ripping apart the wide sky of the universe,
Leaving behind the moon, the sun, the planets
and the stars
Piercing the earth and the heavens,
Pushing through Almighty’s sacred seat
Have I risen,
I, the perennial wonder of mother-earth!
The angry God shines on my forehead
Like some royal victory’s gorgeous emblem.

Say, Valiant,
Ever high is my head!

I am irresponsible, cruel and arrogant,
I an the king of the great upheaval,
I am cyclone, I am destruction,
I am the great fear, the curse of the universe.
I have no mercy,
I grind all to pieces.
I am disorderly and lawless,
I trample under my feet all rules and discipline!
I am Durjati, I am the sudden tempest of ultimate summer,
I am the rebel, the rebel-son of mother-earth!

Say, Valiant,
Ever high is my head!

I am the hurricane, I am the cyclone
I destroy all that I found in the path!
I am the dance-intoxicated rhythm,
I dance at my own pleasure,
I am the unfettered joy of life!
I am Hambeer, I am Chhayanata, I am Hindole,
I am ever restless,
I caper and dance as I move!
I do whatever appeals to me, whenever I like,
I embrace the enemy and wrestle with death,
I am mad. I am the tornado!
I am pestilence, the great fear,
I am the death of all reigns of terror,
I am full of a warm restlessness for ever!

Say, Valiant,
Ever high is my head!

I am creation, I am destruction,
I am habitation, I am the grave-yard,
I am the end, the end of night!
I am the son of Indrani
With the moon in my head
And the sun on my temple
In one hand of mine is the tender flute
While in the other I hold the war bugle!
I am the Bedouin, I am the Chengis,
I salute none but me!
I am thunder,
I am Brahma’s sound in the sky and on the earth,
I am the mighty roar of Israfil’s bugle,
I am the great trident of Pinakpani,
I am the staff of the king of truth,
I am the Chakra and the great Shanka,
I am the mighty primordial shout!
I am Bishyamitra’s pupil, Durbasha the furious,
I am the fury of the wild fire,
I burn to ashes this universe!
I am the gay laughter of the generous heart,
I am the enemy of creation, the mighty terror!
I am the eclipse of the twelve suns,
I herald the final destruction!
Sometimes I am quiet and serene,
I am in a frenzy at other times,
I am the new youth of dawn,
I crush under my feet the vain glory of the Almighty!
I am the fury of typhoon,
I am the tumultuous roar of the ocean,
I am ever effluent and bright,
I trippingly flow like the gaily warbling brook.
I am the maiden’s dark glassy hair,
I am the spark of fire in her blazing eyes.
I am the tender love that lies
In the sixteen year old’s heart,
I am the happy beyond measure!
I am the pining soul of the lovesick,
I am the bitter tears in the widow’s heart,
I am the piteous sighs of the unlucky!
I am the pain and sorrow of all homeless sufferers,
i am the anguish of the insulted heart,
I am the burning pain and the madness of the jilted lover!
I am the unutterable grief,
I am the trembling first touch of the virgin,
I am the throbbing tenderness of her first stolen kiss.
I am the fleeting glace of the veiled beloved,
I am her constant surreptitious gaze.
I am the gay gripping young girl’s love,
I am the jingling music of her bangles!
I am the eternal-child, the adolescent of all times,
I am the shy village maiden frightened by her own budding youth.
I am the soothing breeze of the south,
I am the pensive gale of the east.
I am the deep solemn song sung by the wondering bard,
I am the soft music played on his lyre!
I am the harsh unquenched mid-day thirst,
I am the fierce blazing sun,
I am the softly trilling desert spring,
I am the cool shadowy greenery!
Maddened with an intense joy I rush onward,
I am insane! I am insane!
Suddenly I have come to know myself,
All the false barriers have crumbled today!
I am the rising, I am the fall,
I am consciousness in the unconscious soul,
I am the flag of triumph at the gate of the world,
I am the glorious sign of man’s victory,
Clapping my hands in exultation I rush like the hurricane,
Traversing the earth and the sky.
The mighty Borrak is the horse I ride.
It neighs impatiently, drunk with delight!
I am the burning volcano in the bosom of the earth,
I am the wild fire of the woods,
I am Hell’s mad terrific sea of wrath!
I ride on the wings of the lightning with joy and profound,
I scatter misery and fear all around,
I bring earth-quakes on this world!
I am Orpheus’s flute,
I bring sleep to the fevered world,
I make the heaving hells temple in fear and die.
I carry the message of revolt to the earth and the sky!
I am the mighty flood,
Sometimes I make the earth rich and fertile,
At another times I cause colossal damage.
I snatch from Bishnu’s bosom the two girls!
I am injustice, I am the shooting star,
I am Saturn, I am the fire of the comet,
I am the poisonous asp!
I am Chandi the headless, I am ruinous Warlord,
Sitting in the burning pit of Hell
I smile as the innocent flower!
I am the cruel axe of Parsurama,
I shall kill warriors
And bring peace and harmony in the universe!
I shall uproot this miserable earth effortlessly and with ease,
And create a new universe of joy and peace.
Weary of struggles, I, the great rebel,
Shall rest in quiet only when I find
The sky and the air free of the piteous groans of the oppressed.
Only when the battle fields are cleared of jingling bloody sabres
Shall I, weary of struggles, rest in quiet,
I the great rebel.
I am the rebel eternal,
I raise my head beyond this world,
High, ever erect and alone!

जैसे चॉकलेट के लिए पानी - ७


(पिछली किस्त से जारी)

उसे बस दो ही अन्डॆ और फेंटने बाकी थे. बाक़ी सारी चीज़ें तैयार थीं - बस केक बनना था. बीस तरह के व्यंजन तैयार हो चुके थे और खाने से पहले वाले एपीटाइज़र भी. रसोई में तीता, नाचा और मामा एलेना ही थे. चेन्चा, गरत्रूदिस और रोसौरा वैडिंग ड्रेस में आख़िरी टांके लगाने में मशगूल थीं. चैन की सांस लेती हुई नाचा ने दो बचे हुए अण्डों में से एक को तोड़ने के लिए उठाया ही था इ तीता चिल्लाई -

"नहीं!"

तीता ने केक को फेंटना बन्द कर दिया और अण्डे को अपने हाथों में पकड़ लिया., आवाज़ बिल्कुल साफ़ थी, उसे अण्डे के भीतर से चूज़े की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. उसने अण्डे को अपने कानों के पास ले जा कर उस आवाज़ को और ज़ोर से सुना. मामा एलेना ने अपने काम रोक कर अधिकारपूर्ण आवाज़ में कहा -

"क्या हुआ? क्यों चिलाईं तु?"

"क्योंकि अण्डे के भीतर एक चूज़ा है. नाचा ने उसे नहीं सुना पर मैंने सुना."

चूज़ा? क्या पागल हो गई हो? ऐसा आज तक नहीं हुआ!"

दो लम्बे-लम्बे कदमों के साथ ही मामाएलेना तीता के बग़ल में आ खड़ी हुईं. उन्होंने तीता के हाथ से अण्डा लेकर फोड़ दिया. टिता ने जितना हो सकाअ था कस कर आंखें बन्द कर लीं.

"आंखें खोलो और देख लो अपना चूज़ा."

तीता ने धीमे-धीमे आंखें खोलीं. तीता ने देखा कि जिसे वह चूज़ा समझ रही थी वह ताज़ा अण्डा था.

"एक बात और ध्यान से सुनो, तीता. तुम मेरे धैर्य की परीक्षा ले रही हो. मैं तुम्हें ऐसे पागलॊं की तरह व्यवहार नहीं करने दूंगी. यह पहली और आख़िरी बार है. बरना जान लो तुम्हें पछताना पड़ेगा."

तीता की समझ में नहीं आया कि उस रात उसे क्या हो गया था. जो आवाज़ उसने सुनी थी वह थकान के कारण थी या उसे कोई भ्रम हुआ था. उस समय तीता को यही करना था कि वह केक को फेंटती रहती क्योंकि मामा एलेना के धैर्य की प्रतीक्षा लेने की उसे कोई इच्छा न थी.

जब आख़िरी दो अण्डे भी फेंट लिए जाएं, नीबू के छिलकों को भी फेंट लें जब मिश्रण काफ़ी गाढ़ा हो जाए, फेंटना बन्द कर पहले से फेंटा हुआ आटा भी उसमें मिला लें. लकड़ी की चम्मच से इस पूरे मिश्रण को एकसार बना लें. आख़िर में एक बरतन पर घी चुपड़क, थोड़ा सा आटा फैला कर, उसमें सारा मोश्रण डालकर तीस मिनट तक बेक करें.

तीन दिन तक लगातार बीस तरह के व्यंजन पका चुकने के बाद नाचा थक चुकी थी. केक को ओवन में डालने का इन्तज़ार उससे नहीं हो रहा था ताकि उसके बाद वह आराम कर सके. आज तीता भी हमेशा जैसी सहायक नहीं थी. ऐसा नहीं था कि उसने कोई शिकायत की थी - पर जैसे ही मामा एलेना रसोई से अपने कमरे की तरफ़ गईं - तीता ने एक लम्बी सांस छोड़ी. नाचा चम्मच अपने हाथ से नीचे रखा और तीता को गले से लिपटा लिया -

"अब हम रसोई में अकेले हैं. चलो मेरी बच्ची, अब जितना मर्ज़ी चाहो रो लो क्योंकि कल मैं यह नहीं चाहूंगी कि कोई तुम्हें रोता हुआ देखे. कम से कम रोसौरा तो हर्गिज़ नहीं."

नाचा ने तीता को काम करने से रोक दिया क्योंकि उसे लगा तीता कभी भी अचेत हो सकती है. अलबत्ता तीता की मनःस्थितिके लिए उसके पास शब्द नहीं थे लेकिन नाचा जानती थी तीता से अब काम नहीं हो पाएगा. असल में अब उस से भी यह सब नहीं हो सकता था. नाचा को रोसौरा के खाने की आदतें पसन्द नहीं थीं - बचपन से ही वह अपनी नापसन्द चीज़ों को मेज़ पर ही छोड़ देती थी या खाना तेकीला को खिला देती थी. तेकीला, रैन्च के कुत्ते, पुल्के का पिता था. वहीं तीता कुछ भी खा लेती थी. तीता को केवल कम उबले अण्डे नहीं भाते थे जिन्हें मामा एलेना उसे जबरन खिलाया करती थीं. तीता उन सारी चीज़ों को खा लिया करती थी रोसौरा जिन्हें देखकर भयभीत हो जाया करती. रोसौरा और नाचा कभी नज़दीक नहीं रहे थे. दर असल नाचा को रोसौरा नापसन्द थी और दो बहनों की प्रतिद्वन्द्विता अब इस मुकाम पर खत्म हो रही थी जब रोसौरा की शादी उस व्यक्ति से हो रही थी जिसे तीता प्यार करती थी. रोसौरा निश्चित तो नहीं थी पर उसे लगता था कि तीता के लिए पेद्रो पा प्यार कभी ख़त्म नहीं होगा. नाचा हमेशा तीता के पक्ष में होती थी और तीता का दर्द कम करने के लिए कुछ भी करने को सदैव तत्पर. अपने एप्रन से उसने उन आंसुओं को पोंछा जो तीता के गाल पर लुढ़क रहे थे और बोली -

"अब , मेरी बच्ची, हमें केक बनाना चाहिए."

इस काम में थोड़ा अधिक देर लग गई क्योंकि मिश्रण गाढ़ा नहीं हो पा रहा था. यह इस वजह से था कि तीता का रोना बन्द नहीं हुआ था.

सो, तीता और नाचा, एक दूसरे से लिपटे हुए तब तक रोते रहे जब तक कि सारे आंसू खत्म नहीं हो गए. उसके बाद तीता बिना आंसुओं के रोती रही, जो, कहते हैं ज़्यादा दर्द करता है. लेकिन कम से कम अब केक का मिश्रण गीला नहीं हो रहा था. अब वे अगली प्रक्रिया शुरू कर सकते थे - यानी फ़िलिंग तैयर करना.

(जारी)

काली मौतों ने आज बुलाया है स्वयंवर में - सुकान्त की कविता बरास्ते नीलाभ -3


सुकान्त का परिचय यहां देखे

यूरोप के प्रति

वहाँ अभी मई का महीना है, बर्फ़ के गलने के दिन,
यहाँ आग बरसाता वैशाख है, निद्राहीन।
शायद वहाँ शुरू हो गयी है मन्थर दक्खिनी हवा,
यहाँ वैशाखी लू के थपेड़े धावा बोलते हैं।
यहाँ-वहाँ फूल उगते हैं आज तुम्हारे देश में,
कैसे-कैसे रंग, कितनी विचित्र रातें देखने को मिलती हैं,
सड़कों पर निकल पड़े हैं कितने लड़के-लड़कियाँ घर छोड़ कर
इस वसन्त में, कितने उत्सव हैं, कितने गीत गाये जा रहे।
यहाँ तो सूख गये हैं फूल, मटमैली धूल में;
चीख़-पुकार करता है सारा देश, चैन ख़त्म हो चुका है,
कड़ी धूप के डर से लड़के-लड़कियाँ बन्द हैं घरों में,
सब ख़ामोश : शायद जागेंगे वैसाखी तूफ़ान में,
बहुत मेहनत, बहुत लड़ाई करने के बाद।
चारों ओर क़तार-दर-क़तार हैं तुम्हारे देश में फूलों के बा़ग़,
इस देश में युद्ध, महामारी, दुर्भिक्ष जलता है हड्डी-हड्डी में,
इसीलिए आग बरसाते ग्रीष्म के मैदान में छीन लेती है नींद
बेपरवाह प्राणों को; आज दिशा-दिशा में लाखों-लाख लोग होते हैं इकट्ठा --
तुम्हारे मुल्क में मई का महीना है, यहाँ तूफ़ानी वैशाख।

प्रस्तुत

काली मौतों ने आज बुलाया है स्वयंवर में
कई दिशाओं में कई हाथों को हिलते देखता हूँ इस बड़ी-सी दुनिया में
डरा हुआ मन खोजता है आसान रास्ता, निष्ठुर नेत्र;
इसलिए ज़हरीले स्वाद से भरी इस दुनिया में
सिर्फ़ मन के द्वन्द्व निरन्तर फैलाते हैं आग।

अन्त में टूटे हैं भ्रम, आया है ज्वार मन के कोने में
तेज़ भौहें तनी हैं कुटिल फूलों के वन में
अभिशापग्रस्त वे सभी आत्माएँ आज भी हैं बेचैन
उनके सम्मुख लगाया है प्राणों का मज़बूत शिविर
ख़ुद को मुक्त किया है आत्म-समर्पण में।

चाँद के सपने में धुल गया है मन जिस समय के दौरान
उसे आज दुश्मन जान कर लिया है पहचान
धूर्तों की तरह शक्तिशाली नीच स्पर्द्धाएं
मौक़ा पाने पर आज भी मुझे झपट सकती हैं
इसीलिए सतर्क हूँ, मन को गिरवी नहीं रखा मैंने।

बीते हैं असंख्य दिन प्राणों के व्यर्थ रुदन में
नर्म सोफ़े पर बैठ कर क्रान्तिकारी चेतना के उद्बोधन में
आज लेकिन जनता के ज्वार में आयी है बाढ़
प्यासे मन में रक्तिम पथ के अनुसरण की कामना,
कर रही है पृथ्वी पहले की राह का संशोधन।

उठाया है हथियार अब सामने दुश्मन चाहिए
क्योंकि महामारण का निर्दयी व्रत लिया है हमने आज
जटिल है संसार, जटिल है मन का सम्भाषण
उनके प्रभाव में रखा नहीं मन में कोई आसन,
आज उन्हें याद करना भूल होगी यह जानता हूँ मैं।

(ये सभी अनुवाद नीलाभ ने मूल बांग्ला से किए हैं)