Thursday, April 30, 2015

अमां डॉ. साब ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिये लंबी नहीं - सुनील शाह की याद

बरेली में रहने वाले डॉ. एहतेशाम हुदा मेरे मित्र हैं. अभी बीती २८ अप्रैल की सुबह दिवंगत हुए परमसखा सुनील शाह के लिए उन्होंने यह लिखकर भेजा है. जस का तस शेयर कर रहा हूँ.


तुम बहुत याद आओगे गुरु

अबे क्या चूतियापा लगा रखा है, बड़ी झन्नाटेदार ख़बर है यार, आदमी है या पजामा, लो कल्लो बात, जितना कमाओ उतना उड़ा दो, अंग्रेजी हमारी तुम से अच्छी है बेटे, तुम निखट कद्दू हो, हीरो तो हम ही हैं गुरु, मियां तुम से नाए होगा, अमा नया क्या है, अमा घोर गरम है ये बिरयानी तो, अमा एक बार चल लो विदेश यात्रा पर हमारे साथ ज़िन्दगी झंड से प्रचंड हो जायेगी, अबे ये इटली के जूते हैं तुम्हारे अब्बा ने भी नहीं देखे होंगे. वैसे तो देखे हम ने भी नहीं थे जुगाड़ से झपट लिये, मियाँ स्कार्पियो के चक्कर में मत पढ़ो कोई सुर्रा गाड़ी लो, अमां अकेले अकेले उड़ा रहे हो मट्टन हम कद्दू छान रहे हैं ...

ऐसे ही पता नहीं कितने हज़ारो देसी मुहावरो से तुम्हारी बात की शुरुआत होती थी. और अंत में कहते थे कुछ नया हो तो बताना तुरंत भेजना.

तुम्ही कहते थे अमां डॉ. साब ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिये लंबी नहीं.

तुम्हारा हर एक जुमला कानो में गूँज रहा है ...और तुम चुपके से कान में आकर कह रहे हो अमां छोड़ो भी चूतियापा मत करो, एक आंसू भी मत गिराना वरना समझूँगा अपनी यारी में कसर रह गई. अच्छा चलो ज़रा मोटर साइकिल निकालो तो ... कैंट घूम कर आते हैं, वहीं वाकिंग स्ट्रीट पर बैठ कर मेरी मौत का शोक मनाना बेटे ... तुम तो कहते थे भैया तुम निपट लोगे किसी दिन तो कद्दू कोई फर्क नहीं पड़ेगा अपने ऊपर ...अब सन्नाटे में क्यों हो मेरी जान ... अबे हमारा नाम सुनील शाह है मर कर भी ज़िंदा रहेंगे ... और हाँ भैयू के मट्टन चाप का ध्यान रखना बस कोई और वसीयत नहीं है, बढ़ा गोश खोर है यार अपना ये लौंडा भैयू. और हाँ सुनो जब भी नए जूते या गाड़ी लो तो एक बार दिल से याद करना आ जाऊंगा बताने. यार डाक्टर इतना मातम नहीं करते भाई ... तुम तो खूब लकड़ी करते थे मेरे आज क्यों क्या हो गया ...

अमा आज तो लगता है हम जीत गए बकैती में तुम से ... अबे तुमने एक गाड़ी के चक्कर में पूरी-पूरी रात नेट पर काली करायी है हमारी. गुरु इसी का नाम दुनिया है हम जैसे ज़्यादा दिन तक यहाँ अच्छे नहीं लगते वरना खुदा को कौन याद करेगा.

ओके सुनील भैया ... जो कहा उसका ख्याल रखूँगा आते रहना ख्यालों-ख़्वाबों में और चूतियापा बघारते रहना. खुदा को यही मंज़ूर था तो ये ही सही. फिर कद्दू काटा तुमने डॉ ...

अबे ये कहो जब तक रहे ज़िन्दादिली से रहे और लोगो के दिलो पर राज किया तुम्हारे सुनील भैया ने ...

चलो अब निकलो यहाँ से काटो जब याद करोगे आ जाऊंगा बस अब खुश. कित्ते चेप हो यार मरने के बाद तो पीछा छोड़ दो कम से कम ...

चलो चलो चलो ... कट लो.


ओके भाई खुदा हाफ़िज़ ... हमेशा-हमेशा के लिये.

Tuesday, April 14, 2015

इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है


कुमार गन्धर्व जी के स्वर में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछिन्दरनाथ) का एक भजन -



शून्य गढ़ शहर शहर घर बस्ती कौन सूता कौन जागे है
लाल हमरे हम लालान के तन सोता ब्रह्म जागे है

जल बिच कमल कमल बिच कलिया भँवर बास न लेता है
इस नगरी के दस दरवाजे जोगी फेरी नित देता है

तन की कुण्डी मन का सोटा ज्ञानकी रगड लगाता है
पांच पचीस बसे घट भीतर उनकू घोट पिलाता है


अगन कुण्ड से तपसी तापे तपसी तपसा करता है
पाँचों चेला फिरे अकेला अलख अलख कर जपता है

एक अप्सरा सामें उभी जी, दूजी सूरमा हो सारे है
तीसरी रम्भा सेज बिछावे परण्या नहीं कुँवारी है

परण्या पहिले पुत्तुर जाया मात पिता मन भाया है
शरण मच्छिन्दर गोरख बोले एक अखण्डी ध्याया है