Saturday, August 21, 2010
न किसी का आंख का नूर हूं
असद ज़ैदी जी के हवाले से उस्ताद आशिक़ अली ख़ान साहब पेशावर वाले उर्फ़ बीरा आशिक पर एक संक्षिप्त परिचयात्मक पोस्ट लगाई थी. आज उनकी आवाज़ में एक ग़ज़ल बहादुरशाह ज़फ़र की:
1 comment:
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
said...
वाह... आनंद आ गया।
August 21, 2010 at 6:25 PM
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वाह... आनंद आ गया।
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