Thursday, May 12, 2011

कौन हैं मुमिआ अबू-जमाल? - १


पिछले कई वर्षों से न्यूयॉर्क, लॉस एंजेल्स. सान फ़्रान्सिस्को, शिकागो, फ़िलाडेल्फ़िया जैसे प्रमुख अमेरिकी नगरों में मुमिआ अबू-जमाल की रिहाई के लिए अनेक प्रदर्शनों और जन सभाओं का आयोजन हुआ. अमेरिका ही नहीं यूरोप के भी कई शहरों में इस सिलसिले में आयोजन किए गए. दुनिया के प्रमुख अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं में भी हाल के वर्षों में इस सिलसिले पर लगातार चर्चा होती रही. सबने मुमिआ अबू-जमाल के साथ न्याय करने की मांग की. अमेरिका के इतिहास में पहली बार बराक ओबामा के रूप में किसी अश्वेत के राष्ट्रपति होने से कईयों को उम्मीद थी कि शायद मुमिआ अबू-जमाल के साथ न्याय हो, हालांकि मुमिआ की सोच इस से अलग थी.

मुमिआ अबू-जमाल कौन हैं? काले लोगों के इस नायक के बारे में भारत में बहुत कम जानकारी है.

मुमिआ अबू-जमाल अमेरिका के एक पत्रकार हैं जो १९८२ से जेल में पड़े हुए हैं. उन्हें फ़िलाडेल्फ़िया में एक गोरे पुलिस अधिकारी की हत्या के मामले में मौत की सज़ा दी गई. १७ अगस्त १९९५ को रात दस बजे उन्हें फांसी दी जानी थीलेकिन अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के कारण ऐसा नहीं हो सका. एक बार फिर १९९८ में उन्हें फांसी दिए जाने कि तारीख़ का ऐलान किया गया लेकिन इस बार भी जनमत के दबाव के कारण इस सज़ा को अमल में नहीं लाया जा सका. मुमिआ अबू-जमाल एक पत्रकार होने के साथ-साथ ब्लैक पैन्थर पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं लेकिन उनकी पहचान एक ऐसे पत्रकार के रूप में ही लोगों के बीच है, जिसने हमेशा अन्याय और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. वर्षों तक वह ब्लैक जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष पद पर रहे हैं. अख़बारों में लिखने के साथ-साथ उनके रेडियो कार्यक्रम काफ़ी लोकप्रिय रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें "बेज़ुबानों की ज़ुबान" कहा जाता रहा है. पिछले २८ वर्षों से जेल में रहने के बावजूद उनका लेखन जारी है और अख़बारों में अभी भी उनके नियमित स्तम्भ प्रकाशित हो रहे हैं. इसके लिए उनके समर्थकों को लम्बी अदालती लड़ाई भी लड़नी पड़ी और अन्त में अदालत ने यह फ़ैसला दिया कि किसी कैदी की भी अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं छीनी जा सकती.

अपने जेल जीवन के दौरान मुमिआ की दो किताबें "लाइव फ़्रॉम डैथ रो" और "डैथ ब्लॉसम्स" प्रकाशित हुईं जिनका दुनिया की आठ भाषाओं में अनुवाद हुआ. फ़रवरी २००३ में उनकी नई पुस्तक रिलीज़ हुई. एक अन्य पुस्तक "रेस फ़ॉर जस्टिस" भी काफ़ी लोकप्रिय हुई जिसे उनके वकील ने लिखा है. इस पुस्तक में मुमिआ अबू-जमाल के प्रकरण पर रोशनी डालने के साथ-साथ यह भी बताया गया है कि अमेरिकी न्याय प्रणाली किस हद तक नस्लवाद से ग्रस्त है.

मुमिआ को हत्या के जिस मामलेमें फंसाया गया है वह भी काफ़ी चर्चा में रहा है. इसकी वजह यह है कि पहले तो अनेक च्श्मदीद गवाहों ने बताया कि हत्या किसी और ने की है और बाद में ख़ुद एक व्यक्ति ने गोली चलाने की बात स्वीकार की. जब भी मुमिआ के वकीलों ने इन गवाहों के बयान दर्ज़ करने की अपील की, जजों ने इस अपील को ठुकरा दिया.

संक्षेप में घटना इस प्रकार है. ९ दिसम्बर १९८१ को मुमिआ अबू-जमाल फ़िलाडेल्फ़िया में अपनी कार में जिस समय जा रहे थे उन्होंने देखा कि एक पुलिस अधिकारी उनके भाई विलियम कुक को बुरी तरह पीट रहा है. मुमिआ ने सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी की और बीच बचाव के लिए उधर लपके. अब तीनों के बीच गुत्थमगुत्था हो रही थी. इस बीच वहां कुछ लोग भी इकठ्ठा हो गए थे. इसके बाद क्या हुआ इसकी जानकारी मुमिआ को होश आने पर अस्पताल में हुई. उनके सीने में गोली लगी थी और पता चला इस हादसे में डैनियल फ़ॉक्नर नामक पुलिस अधिकारी की गोली लगने से मौत हुई. मुमिआ पर फ़ॉक्नर की हत्या का आरोप लगाया गया.

१ जून १९८२ को मुमिआ पर मुकदमे की कार्रवाई शुरू हुई. अदालती कार्रवाई के दौरान पता चला कि ब्लैक पैन्थर पार्टी के इस सक्रिय कार्यकर्ता और जुझारू पत्रकार के पीछे वर्षों से पुलिस लगी हुई थी. अमेरिका के ख़ुफ़िया विभाग ने अदालत में ८०० पृष्ठों की रिपोर्ट पेश की जिसमें मुमिया के बारे में तब से जानकारी संकलित की गई थी जब वह १७ की उम्र के थे और अपनी पार्टी में सूचना मंत्री का कार्य संभाल रहे थे. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि उनकी गतिविधियों को जानने के लिए ख़ुफ़िया विभाग ने किस तरह उनके फ़ोन टैप किए, उनका पीछा किया और उनकी जासूसी के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए.

मुकदमे के दौरान एक और घटना हुई जिस से पता चलता है कि सरकारी पक्ष मुमिआ के प्रति किस हद तक पूर्वाग्रह से भरा था. अदालत में सरकारी वकील ने मुमिआ से सवाल किया कि "क्या तुमने कभी यह कहा था कि राजसत्ता का जन्म बंदूक की नली से होता है?" मुमिआ ने जवाब दिया - "यह माओ त्से-तुंग का कथन है जिसे आप उद्धृत कर रहे हैं. आप अमेरिका में हैं जिसने यहां की रेड इन्डियन आबादी से उसकी सारी ज़मीन हड़प ली और यह काम ईसाइयत तथा सभ्यता के प्रसार के जरिये नहीं हुआ. मेरे ख़्याल से अमेरिका ने माओ त्से-तुंग के इस कथन को सही साबित कर दिया.मुकदमे के अन्त में जज अलबर्ट साबो ने उन्हें मौत की सज़ा दी.

मुमिआ अबू-जमाल का मुकदमा जिस अदालत में चल रहा था उसमें जूरी की अध्यक्षता न्यायाधीश अल्बर्ट साबो कर रहे थे. साबो को फ़िलाडेल्फ़िया में नस्ली पूर्वाग्रह मानने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है. अप्रैल १९९९ के रिवोल्यूशनरी वर्कर के एक अंक में छपी रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीष अल्बर्ट साबो का मृत्युदण्ड देने में अमेरिका में रिकॉर्ड रहा है. १९९२ में एक पत्रिका ने उन ३५ लोगों के मामलों की छानबीन की जिन्हें साबो ने मौत की सज़ा सुनाई थी और यह पाया था कि अपनी टिप्पणियों, निर्देशों तथा फ़ैसलों के जरिये साबॊ ने शुरू से ही मुत्युदण्ड के पक्ष में बयान दिया. अबू-जमाल के मामले में भी साबो को ज़्यादा चिन्ता इस बात की थी इस पर जल्दी से फ़ैसला सुनाया जाए. १९८२ में सरकार ने मुमिआ के लिएएन्थ्नी जैक्सन नामक एक वकील नियुक्त किया लेकिन मुमिआ के एक अनुरोध पर अदालत ने यह निर्देश दिया कि मुमिआ अपनी पैरवी खुद कर सकते हैं. जज साबो ने यह अधिकार वापस ले लिया. अपने मामले की पैरवी खुद करते समय मुमिआ ने गवाहों से जिस तरह जिरह की उस से जज साबो को काफ़ी दिक्कत हो रही थी. एक अवसर पर जज साबो ने कहा - "मिस्टर जमाल अब यह अदालत के सामने स्पष्ट हो गया कि आप जान बूझ कर इस अदालत की कार्रवाई में बाधा पहुंचाना चाहते हैं. मैंने आपको बार-बार चेतावनी दी है कि अगर आपका यही रवैया बना रहा तो आपको अपनी पैरवी करने के अधिकार से वंचित किया जाएगा. जवाब में मुमिआ अबू-जमाल ने कहा - "आपकी यह चेतावनी मेरे लिए बिल्कुल मायने नहीं रखती. मैं यहां अपनी जान बचाने का संघर्ष कर रहा हूं. क्या इसे आप समझते हैं? मैं अदालत को या जज को खुश करने के लिए नहीं बल्कि अपनी ज़िन्दगी के लिए लड़ रहा हूं. मुझे ऐसा वकील चाहिये जो मेरी पसन्द का हो, जिसमें मेरा विश्वास हो न कि अदालत द्वारा वियुक्त किया गया कोई भी वकील. इसलिए आपकी चेतावनी का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा."

(अगली पोस्ट में समाप्य - समकालीन तीसरी दुनिया के सितम्बर २०१० अंक से साभार)

2 comments:

बाबुषा said...

ऐसे सारे जमालों के साथ खड़े हैं हम ! इंक़लाब जिंदाबाद !
बढ़िया जानकारी !

Ek ziddi dhun said...

Ashok Bhai, apki anumati liye bina is post ko maine facebook par chipkaliya hai sabhar